राजस्थान के पर्यटन मॉडल से छत्तीसगढ़ में रोजगार और संस्कृति आधारित पर्यटन को मिल सकता है बढ़ावा
राजस्थान के पर्यटन मॉडल चोखी ढाणी पर्यटन मॉडल छत्तीसगढ़ में पर्यटन और स्वरोजगार को बढ़ावा दे सकता है। बस्तर और अन्य क्षेत्रों के पर्यटन स्थलों में इस तरह की पहल से स्थानीय कला, संस्कृति और रोजगार के अवसर बढ़ेंगे, जिससे प्रदेश के सुदूर क्षेत्रों में विकास और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
राजस्थान के पर्यटन मॉडल को छत्तीसगढ़ में अपनाने की जरूरत: बस्तर और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वरोजगार बढ़ेगा
राजस्थान का पर्यटन मॉडल छत्तीसगढ़ के लिए भी मुफीद और प्रेरणास्रोत साबित हो सकता है, बशर्ते इसे स्थानीय संदर्भ में लागू किया जाए। राजस्थान की चोखी ढाणी ऐसी पहल है जो देशी और विदेशी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है। यहाँ केवल राजस्थानी व्यंजनों का आनंद नहीं मिलता, बल्कि वहां की कला, संस्कृति और लोक परंपरा की बेमिसाल झलक भी देखने को मिलती है।
छत्तीसगढ़ का बस्तर और अन्य क्षेत्र पर्यटन और सांस्कृतिक दृष्टि से किसी से कम नहीं हैं, लेकिन इन स्थलों में स्वरोजगार और सांस्कृतिक पर्यटन मॉडल की कमी है।
राजस्थान अध्ययन दौरे का अनुभव
छत्तीसगढ़ के पत्रकारों के दल ने हाल ही में राजस्थान का अध्ययन दौरा किया। बस्तर के वरिष्ठ पत्रकार अर्जुन झा भी इस दल में शामिल थे। उन्होंने राजस्थान के पर्यटन और धार्मिक स्थलों, सांस्कृतिक केंद्रों और चोखी ढाणी के अनुभव साझा किए।
अर्जुन झा के अनुसार, राजस्थान विधानसभा भ्रमण के बाद पत्रकारों ने रात में चोखी ढाणी का दौरा किया। पचासों एकड़ में फैली यह जगह राजस्थानी परंपरा और संस्कृति को जीवंत करने वाले दृश्य पेश करती है। लोक कलाकारों की प्रस्तुतियों ने पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
चोखी ढाणी मॉडल: रोजगार और सांस्कृतिक संरक्षण का संयोजन
चोखी ढाणी केवल पर्यटन स्थल नहीं, बल्कि स्थानीय लोगों और कलाकारों के लिए रोजगार का बड़ा मंच है। इस मॉडल के कई पहलू उल्लेखनीय हैं:
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राजस्थानी लोकनृत्य, संगीत और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के माध्यम से सांस्कृतिक संरक्षण।
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स्थानीय व्यंजन और मिठाइयों के माध्यम से पर्यटकों को पारंपरिक जायके से परिचित कराना।
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स्वरोजगार और स्वालंबन पर आधारित रोजगार मिशन जैसा प्लेटफ़ॉर्म।
राजस्थान सरकार छोटे उद्योगों, स्थानीय दूध और अनाज आधारित व्यंजनों को प्रोत्साहित कर लोगों को स्वावलंबी बनाने और रोजगार देने की दिशा में काम कर रही है।
छत्तीसगढ़ की प्राकृतिक और सांस्कृतिक संपदा
छत्तीसगढ़ का बस्तर क्षेत्र पर्यटन स्थलों और प्राकृतिक सौंदर्य में समृद्ध है:
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चित्रकोट और तीरथगढ़ जलप्रपात, कुटुमसर की ऐतिहासिक गुफाएं।
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भगवान श्रीराम के वनवासकाल के स्मृति चिन्ह, अबूझमाड़ के अनछुए क्षेत्र।
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दंतेश्वरी मंदिर, भगवान गणेश की ऊंची प्रतिमा, अंबिकापुर का मैनपाट।
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रतनपुर का महामाया मंदिर, डोंगरगढ़ का बमलेश्वरी मंदिर और कवर्धा का भोरमदेव मंदिर।
इन स्थलों की प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक महत्त्व राजस्थान की चोखी ढाणी जैसी पहल के साथ और भी अधिक आकर्षक बन सकती है।
छत्तीसगढ़ में चोखी ढाणी जैसी पहल क्यों जरूरी है?
अर्जुन झा ने कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार बस्तर जैसे क्षेत्रों में योजनाओं के माध्यम से विकास कर रही है। लेकिन यदि स्वरोजगार और स्वालंबन पर आधारित पर्यटन मॉडल अपनाया जाए, तो सुदूर क्षेत्रों के लोगों को रोजगार मिलेगा और उन्हें नक्सलवाद से दूर करने में मदद मिलेगी।
राजस्थान के मॉडल से निम्नलिखित लाभ मिल सकते हैं:
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स्थानीय कला, संस्कृति और व्यंजनों का संरक्षण।
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ग्रामीण और आदिवासी समुदायों को रोजगार।
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पर्यटन के माध्यम से प्रदेश की अर्थव्यवस्था को मजबूती।
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स्वालंबन और स्वरोजगार पर आधारित विकास मॉडल।
भविष्य की योजना और सुझाव
छत्तीसगढ़ सरकार को चाहिए कि वह बस्तर और अन्य क्षेत्रों में केंद्रित पर्यटन स्थलों पर सांस्कृतिक और आर्थिक मॉडल लागू करे।
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स्थानीय कलाकारों और कारीगरों के लिए मंच उपलब्ध कराएं।
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लोक व्यंजन, सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ और हस्तशिल्प को पर्यटन का हिस्सा बनाएं।
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पर्यटन स्थलों के आसपास इन्फ्रास्ट्रक्चर और सुविधाओं का विकास करें।
इस तरह की पहल से छत्तीसगढ़ राजस्थान की तरह ही पर्यटकों और स्थानीय रोजगार को जोड़ने वाला राज्य बन सकता है।


