HAL Becomes India’s Third Rocket Maker: HAL बनाएगा भारत का स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल: ISRO-IN-SPACe ने सौंपी जिम्मेदारी
हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ने भारत के स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SSLV) को बनाने का कॉन्ट्रैक्ट हासिल कर लिया है। HAL को यह कॉन्ट्रैक्ट इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (ISRO) और इंडियन नेशनल स्पेस प्रमोशन एंड ऑथराइजेशन सेंटर (IN-SPACe) ने दिया है।

लड़ाकू विमान बनाने के अलावा, अब हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) छोटे भारतीय रॉकेट बनाएगा और साथ ही ऑपरेट भी करेगा. भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe) ने भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र के लिए एक बड़ी उपलब्धि के रूप में, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL), बेंगलुरु को लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (SSLV) तकनीक ट्रांसफर करने की घोषणा की है. यह घोषणा IN-SPACe के अध्यक्ष डॉ. पवन के. गोयनका ने की
ऐसा करने वाली तीसरी कंपनी बनी HAL
इसके साथ, एचएएल अंतरिक्ष तकनीक स्टार्टअप स्काईरूट एयरोस्पेस (हैदराबाद) और अग्निकुल कॉसमॉस (चेन्नई) के बाद भारत में तीसरा रॉकेट निर्माता बन जाएगा।पहले चरण में नौ में से छह कंपनियों को शॉर्टलिस्ट किया गया था। दूसरे चरण में तीन कंपनियों, एचएएल, अल्फा डिजाइन और बीडीएल का चयन एक विशेषज्ञ समिति ने तैयार किया, जिसके सदस्यों में भारत सरकार के पूर्व प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार विजय राघवन और अन्य शामिल थे।
अब आगे क्या करेगी HAL?
अगले दो साल तक ISRO, HAL को SSLV की टेक्निक ट्रांसफर करेगा। इस दौरान HAL को दो प्रोटोटाइप रॉकेट बनाने होंगे और ISRO की सप्लाई चेन का इस्तेमाल करना होगा। हालांकि, HAL इसकी डिजाइन में कोई बदलाव नहीं कर सकता है। हालांकि, दो साल बाद HAL अपनी खुद की सप्लाई चेन चुन सकता है और डिजाइन को बेहतर करने में ISRO की सलाह ले सकता है। कंपनी का टारगेट हर साल 6 से 12 SSLV रॉकेट बनाने का है। जो बाजार की मांग पर निर्भर करेगा।
SSLV क्या है?
स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल यानी SSLV एक छोटा रॉकेट है, जो 500 किलो तक के सैटेलाइट को 400-500 किलोमीटर ऊंची लो-अर्थ ऑर्बिट में ले जा सकता है। यह रॉकेट कम लागत वाला है और जल्दी लॉन्च करने की सुविधा देता है। जो छोटे सैटेलाइट्स के लिए बहुत उपयोगी है।
511 करोड़ रुपये में मिली डील
गोयनका ने कहा कि एचएएल 511 करोड़ रुपये की बोली के साथ सबसे ऊंची बोली लगाने वाली कंपनी बन गई है, जिसने वाणिज्यिक बोली प्रक्रिया में भाग लेने वाले दो अन्य को पीछे छोड़ दिया है। जिसमें एक का नेतृत्व बेंगलुरु स्थित अल्फा डिजाइन और दूसरे का नेतृत्व हैदराबाद स्थित भारत डायनेमिक्स लिमिटेड (बीडीएल) कर रहा था।
HAL को ही क्यों चुना गया
IN-SPACe के अध्यक्ष डॉ. पवन गोयनका ने कहा, “जबकि भारत 2033 के लिए निर्धारित 44 बिलियन डॉलर की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था को साकार करने की ओर देख रहा है, एक मजबूत सार्वजनिक-निजी-भागीदारी मॉडल को सक्षम करना अनिवार्य है. SSLV तकनीक ट्रांसफर भारत के परिवर्तनकारी कमर्शियल अंतरिक्ष खंड में एक महत्वपूर्ण क्षण है। क्योंकि यह एक अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा किसी कंपनी को संपूर्ण तकनीक ट्रांसफर करने का पहला उदाहरण है। इस तकनीक ट्रांसफर समझौते के तहत, HAL के पास स्वतंत्र रूप से SSLV प्रक्षेपणों का निर्माण और कमर्शियल लॉन्च करने की क्षमता होगी।
भारत के लिए क्यों खास?
यह कॉन्ट्रैक्ट भारत के स्पेस सेक्टर में निजी कंपनियों की भागीदारी बढ़ाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। भारत अभी ग्लोबल स्पेस इकोनॉमी में सिर्फ 2% हिस्सा रखता है, लेकिन अगले दशक तक इसे 44 बिलियन डॉलर यानी 3.81 लाख करोड़ रुपए तक ले जाने का टारगेट है। HAL का यह कदम भारत को छोटे सैटेलाइट लॉन्च में ग्लोबल लेवल पर मजबूत बनाने में मदद करेगा।