ट्रम्प का फोन, मोदी का मलेशिया दौरा कैंसिल: भारत ने US की प्रेशर पॉलिटिक्स रोकी

भारत ने अमेरिकी ‘प्रेशर पॉलिटिक्स’ को रोका: पीएम मोदी ने मलेशिया यात्रा स्थगित की
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 20 अक्टूबर को मलेशिया में होने वाले आसियान समिट में हिस्सा लेने वाले थे। इस बीच अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का दिवाली की बधाई के लिए फोन आया, जिसमें दो पक्षों के बीच बातचीत हुई। इसके बाद विदेश मंत्रालय ने सुरक्षा और रणनीति को ध्यान में रखते हुए तय किया कि प्रधानमंत्री क्वालालंपुर नहीं जाएंगे। इसके बजाय वह वर्चुअल माध्यम से समिट को संबोधित करेंगे।
विदेश मंत्रालय के सीनियर अधिकारी ने दैनिक भास्कर को बताया कि प्रधानमंत्री की मलेशिया यात्रा का निर्णय दिवाली के कारण नहीं, बल्कि भारत और अमेरिका के बीच चल रही व्यापार डील से जुड़ा था। मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि जब तक ट्रेड डील अंतिम रूप में नहीं आ जाती, प्रधानमंत्री ट्रम्प से आमने-सामने नहीं मिलेंगे। इसका उद्देश्य अमेरिका के माध्यम से मीडिया द्वारा दबाव बनने से बचना था।
यह पहली बार नहीं है जब प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति से आमने-सामने मिलने से पीछे हटे हैं। पहला मौका था 27 सितंबर को न्यूयॉर्क में UNGA के दौरान, जब ट्रम्प और अन्य विश्व नेताओं के साथ पीएम मोदी ने सीधा संवाद नहीं किया। दूसरा मौका 10 अक्टूबर को गाजा पीस प्लान समिट था, जहां पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और ट्रम्प दोनों की उपस्थिति के कारण मोदी ने प्रतिनिधिमंडल भेजा, खुद नहीं गए। विशेषज्ञों के अनुसार, भारत–पाकिस्तान तनाव और ट्रम्प के अनिश्चित व्यवहार को देखते हुए यह एक सोची-समझी रणनीति थी।

पूर्व भारतीय राजदूत कंवल सिब्बल ने बताया कि यह कदम सही और रणनीतिक था। उन्होंने कहा, “अगर प्रधानमंत्री क्वालालंपुर जाते, तो ट्रम्प से आमने-सामने की मुलाकात होती। ट्रम्प के व्यवहार और बयानबाजी में राजनीतिक जोखिम रहता है। जब तक व्यापार समझौते पर मुहर नहीं लगती, तब तक मुलाकात टालना बेहतर है।”
विदेश नीति विशेषज्ञ ब्रम्हा चेलानी ने कहा कि आसियान समिट में प्रधानमंत्री का शामिल न होना भारत–अमेरिका के व्यापारिक दबाव से दूरी बनाने की रणनीति थी। ट्रम्प ने भारत पर उच्च टैरिफ और सेकेंडरी सैंक्शन लगाकर दबाव डालने की कोशिश की थी। भारत ने स्पष्ट कर दिया कि देश किसी भी दबाव में नहीं आएगा।
भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौता अंतिम चरण में है। दोनों पक्षों ने अधिकांश मुद्दों पर सहमति बना ली है, लेकिन समझौते की कानूनी ड्राफ्टिंग अभी बाकी है। इसके अलावा रूस से तेल आयात और अमेरिका से टैरिफ संबंधी विवाद भी जारी हैं। अप्रैल 2025 में अमेरिका ने भारत पर 25% रेसिप्रोकल टैरिफ लगाया था। अगस्त में अतिरिक्त 25% पेनल्टी टैरिफ रूस से तेल आयात के कारण लगाया गया। कुल मिलाकर, भारत पर अमेरिका का टैरिफ लगभग 50% हो गया।
वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के अनुसार, भारत–अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर 5 दौर की बातचीत हो चुकी है और यह अंतिम चरण में है। समझौते में टैरिफ, नॉन-टैरिफ बाधाएँ और कानूनी दस्तावेजों की अंतिम रूपरेखा तय की जा रही है।
विशेषज्ञों के अनुसार, भारत इस प्रक्रिया में अपने किसानों और घरेलू उद्योग की सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहता है। अमेरिकी दबाव के बावजूद भारत ने स्पष्ट कर दिया कि वह अपने राष्ट्रीय हितों के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाएगा। कनाडा के राजनीतिक विज्ञान विशेषज्ञ डॉ. शिंदर पुरवाल ने कहा कि ट्रम्प की अनिश्चित नीति और बयानबाजी के कारण भारत इस समय किसी भी दबाव का शिकार नहीं होना चाहता।

अंततः, प्रधानमंत्री मोदी का निर्णय एक रणनीतिक चाल थी। अमेरिका के साथ व्यापार समझौते के अंतिम रूप में आने तक वह किसी सार्वजनिक या व्यक्तिगत मुलाकात से परहेज कर रहे हैं। यह कदम भारत की विदेश नीति की स्वायत्तता और आर्थिक हितों की रक्षा के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
Read More: मदन राठौड़ का पलटवार: अशोक गहलोत पर तंज, कांग्रेस पर आरोप

