बोधगया में 20वें अंतरराष्ट्रीय त्रिपिटक पाठ समारोह का उद्घाटन, शेखावत ने शांति और करुणा की वंदना की
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केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने बोधगया के महाबोधि मंदिर में 20वें अंतरराष्ट्रीय त्रिपिटक पाठ समारोह का शुभारंभ किया। उन्होंने शांति, करुणा और पाली धम्म पाठ के महत्व पर जोर दिया और भारत को वैश्विक बौद्ध विरासत का संरक्षक बनाने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता जताई।
बोधगया : शांति, करुणा और प्रज्ञा का सनातन केंद्र – शेखावत

बोधगया केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने कहा कि “शांति से बढ़कर कोई सुख नहीं है” और बोधगया इसी शांति, करुणा और प्रज्ञा का सनातन केंद्र है। यह स्थल केवल इतिहास का प्रतीक नहीं, बल्कि मानव सभ्यता की आध्यात्मिक यात्रा का पथ-प्रदर्शक भी है।
मंगलवार को महाबोधि मंदिर के पवित्र परिसर में आयोजित 20वें अंतरराष्ट्रीय त्रिपिटक पाठ समारोह का शुभारंभ केंद्रीय मंत्री शेखावत ने किया। हजारों भिक्षु-भिक्षुणियों और श्रद्धालुओं की उपस्थिति में बोधिवृक्ष की छाया पाली श्लोकों की गूंज से प्रतिध्वनित हुई।
त्रिपिटक पाठ: अलौकिक अनुभव और वैश्विक संदेश
अपने उद्बोधन में शेखावत ने कहा कि जिस स्थल पर सिद्धार्थ ने बुद्धत्व प्राप्त किया, वहां विश्वभर के बौद्ध समुदाय का एक स्वर में धम्म पाठ अत्यंत प्रेरक और दुर्लभ दृश्य है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भारत न केवल बुद्ध की जन्मभूमि है, बल्कि एशिया और विश्व को जोड़ने वाला आध्यात्मिक और सांस्कृतिक केंद्र भी है।
त्रिपिटक पाठ का संदेश स्पष्ट है—धम्म सीमाओं और राष्ट्रीयताओं से परे है। जब विभिन्न देशों के भिक्षु एक साथ पाली धम्म पाठ करते हैं, तब भाषा, रंग और परंपरा का भेद समाप्त हो जाता है। केवल करुणा, शांति और बुद्ध का मार्ग शेष रहता है।
भारत को वैश्विक बौद्ध राजधानी बनाने का प्रयास

शेखावत ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बोधगया को वैश्विक बौद्ध जगत की आध्यात्मिक राजधानी बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसके लिए तीन प्रमुख कदम उठाए गए हैं—
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पाली भाषा को 2024 में शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिलाना, जिससे त्रिपिटक की मूल भाषा को औपचारिक प्रतिष्ठा मिली।
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स्वदेश दर्शन योजना के तहत बौद्ध तीर्थ-परिपथों का विकास, आधुनिक सुविधाओं के विस्तार सहित।
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विदेशों में संरक्षित बौद्ध अवशेषों की भारत वापसी के प्रयास, जिससे वैश्विक बौद्ध देशों से भारत के सांस्कृतिक संबंध मजबूत हुए।
शेखावत ने कहा कि इन प्रयासों से भारत वैश्विक बौद्ध विरासत का संरक्षक बनता है।
अंतरराष्ट्रीय सहभागिता और सांस्कृतिक समागम
इस वर्ष समारोह में श्रीलंका, थाईलैंड, म्यांमार, वियतनाम, लाओस, कंबोडिया, नेपाल, सिंगापुर, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, मलेशिया, भूटान सहित 15 देशों के भिक्षु-भिक्षुणियों ने भाग लिया। उनके सामूहिक पाठ ने पूरे परिसर को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर दिया।
भारत के 17 बौद्ध संगठनों ने पहली बार सह-आयोजक के रूप में भाग लिया। दस दिनों तक चलने वाले इस समारोह में—
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ध्यान सत्र
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सांस्कृतिक प्रस्तुतियां
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पाली शिक्षण
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थेरवाद संवाद
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अंतरराष्ट्रीय गतिविधियां
आयोजित की जाएंगी। यह कार्यक्रम 12 दिसंबर तक जारी रहेगा।
आयोजकों और स्वयंसेवकों को शेखावत का आभार
शेखावत ने आयोजकों, स्वयंसेवकों और भिक्षुओं के प्रति विशेष आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि उनकी साधना और समर्पण के बिना यह विशाल और दिव्य उत्सव संभव नहीं हो पाता। यह समारोह मानवता को यह संदेश देता है कि शांति, करुणा, अहिंसा और सद्भाव आज भी सर्वोच्च मूल्य हैं।
बोधगया: आध्यात्मिक पर्यटन और वैश्विक बौद्ध संगठनों का केंद्र
शेखावत ने बताया कि भारत बौद्ध संगठनों और तीर्थयात्रियों के अनुभव, संसाधन और संस्कृति को जोड़कर बोधगया को वैश्विक बौद्ध केंद्र बनाने की दिशा में लगातार काम कर रहा है। इस पहल से न केवल धर्म और संस्कृति का संरक्षण होता है, बल्कि आध्यात्मिक पर्यटन और स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिलता है।
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