The Upcoming Brics 2024: न्यू वर्ल्ड ऑर्डर सेट कर रहा ब्रिक्स?: ख़तम हो सकती हैं डॉलर की बादशाहत: ब्रिक्स करेंसी से क्या होगा फायदा
ब्रिक्स देश चाहते हैं कि वे अमेरिकी डॉलर और यूरो पर वैश्विक निर्भरता कम कर आर्थिक हितों के लिए एक नई साझा करेंसी शुरू करें. सबसे पहले 2022 में 14वें ब्रिक्स समिट के दौरान इस नई करेंसी की जरूरत पर पहली बार बात हुई थी।
लेकिन अब फिर से बात सामने आयी है की ब्रिक्स देश एक ऐसी रिजर्व करेंसी शुरू करना चाहते हैं। जो डॉलर के प्रभुत्व को टक्कर दे सके 2nd world war के बाद से ही पूरी दुनिया में डॉलर का बोल बाला रहा है।
ब्रिक्स देशों के बीच इस नई करेंसी को लेकर रजामंदी हो जाती है। तो अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली को चुनौती मिलेगी और साथ ही ब्रिक्स के सदस्य देशों की आर्थिक स्थिति में बड़ा सुधार आएगा।
न्यू वर्ल्ड ऑर्डर सेट कर रहा ब्रिक्स?
BRICS दुनिया के विकासशील देशों का एक मजबूत समूह है। पहले भारत, चीन, रूस, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका ही इसके सदस्य थे। अब इसका विस्ताव किया जा रहा है। 1 जनवरी 2024 से सऊदी अरब, अर्जेंटीना समेत 6 देशों को इस समूह में जोड़ने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई थी। हालांकि बाद में अर्जेंटीना की हाबियर मिलेई की नई सरकार ने BRICS में शामिल होने का इरादा बदल दिया।
हालांकि कुछ लोगों का मानना है। कि नई ब्रिक्स मुद्रा से डॉलर को कोई खतरा नहीं है। उनका कहना है कि डॉलर की स्थिति को खतरे में डालने के लिए इस मुद्रा को दूसरे विकसित देशों द्वारा व्यापक रूप से अपनाया जाना ज़रूरी है।
ब्रिक्स देश क्यों बनाना चाहते हैं अपनी करेंसी
ब्रिक्स देशों के अपनी करेंसी बनाने के पीछे कई कारण हैं। हाल की चुनौतियां और अमेरिका की आक्रामक विदेश नीतियों ने ब्रिक्स देशों को इसके विकल्प तलाशने पर मजबूर कर दिया है। यूक्रेन युद्ध के बाद जिस तरह से रूस को डॉलर में कारोबार करने में परेशानी आई। वहीं हाल ही में इस समूह में शामिल ईरान पिछले कई सालों से अमेरिकी प्रतिबंध झेल रहा है। ब्रिक्स धीरे-धीरे बड़ा हो रहा है और इसमें शामिल होने के लिए 40 से अधिक देशों ने रुचि दिखाई है।
ब्रिक्स करेंसी से क्या होगा फायदा
ब्रिक्स करेंसी की वजह से इसमें शामिल देशों को कई फायदे होंगे। सीमा पार लेन-देन और वित्तीय समावेशन में बढ़ोतरी हो सकती है। ब्लॉकचेन तकनीक डिजिटल करेंसी और स्मार्ट कनेक्ट का फायदा उठाकर वैश्विक वित्तीय प्रणाली में क्रांति लाई जा सकती है। सीमा पार लेन-देन में बिना किसी रुकावट के ब्रिक्स देशों के बीच और अन्य देशों के साथ व्यापार में मदद मिल सकती है।
इससे ब्रिक्स देशों के बीच आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा मिलेगा। वैश्विक मंच पर अमेरिका और अमेरिकी डॉलर का प्रभाव कम होगा । और डॉलर पर निर्भरता के कारण उत्पन्न आर्थिक अस्थिरता का खतरा भी कम किया जा सकेगा।