NCPCR: मदरसे बंद करने के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट की रोक:नहीं बंद होंगे सरकारी वित्तपोषित मदरसे
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मदरसों को लेकर दो फैसले दिए। पहला- केंद्र और राज्य सरकारों को मदरसे बंद करने के फैसले पर रोक लगा दी। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने पिछले दिनों सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को पत्र लिखकर सभी मदरसों को सरकार की ओर से मिलने वाली फंडिंग और मदरसा बोर्ड को बंद करने की सिफारिश की थी।
यूपी के मदरसा एक्ट को असंवैधानिक घोषित करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने मदरसा एक्ट के प्रावधानों को समझने में भूल की है। हाईकोर्ट का ये मानना कि ये एक्ट धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ गलत है
बेंच ने कहा कि यह रोक अंतरिम है। जब तक मामले पर फैसला नहीं आ जाता तब तक राज्य मदरसों पर कोई कार्रवाई नहीं कर सकेंगे। बेंच ने जमीयत उलेमा-ए-हिंद को उत्तर प्रदेश और त्रिपुरा के अलावा अन्य राज्यों को भी याचिका में पक्षकार बनाने की अनुमति दे दी।
मौलाना खालिद रशीद फिरंगीमहली मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य ने भी सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि एनसीपीसीआर की सिफारिशें धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ थी। शैक्षिक संस्थानों में धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए। मदरसे हर धर्म के छात्रों के लिए खुले हैं। किसी को शिक्षा प्राप्त करने से रोका नहीं जा सकता।
NCPCR ने कहा- मदरसों में शिक्षा के अधिकार कानून का पालन नहीं हो रहा
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने 12 अक्टूबर को कहा था कि ‘राइट टु एजुकेशन एक्ट 2009’ का पालन नहीं करने वाले मदरसों की मान्यता रद्द हो और इनकी जांच की जाए। NCPCR ने सभी राज्यों को लेटर लिखकर कहा था कि मदरसों को दिया जाने वाला फंड बंद कर देना चाहिए। ये राइट-टु-एजुकेशन (RTE) नियमों का पालन नहीं करते हैं।
आयोग ने ‘आस्था के संरक्षक या अधिकारों के विरोधी
बच्चों के संवैधानिक अधिकार बनाम मदरसे’ नाम से एक रिपोर्ट तैयार करने के बाद ये सुझाव दिया था। आयोग ने कहा था कि ‘मदरसों में पूरा फोकस धार्मिक शिक्षा पर रहता है। जिससे बच्चों को जरूरी शिक्षा नहीं मिल पाती और वे बाकी बच्चों से पिछड़ जाते हैं।