लोक कला के धरोहरबर प्रसिद्ध अलगोजा वादक रामनाथ चौधरी को मिला सर्वोच्च सम्मान
उदयपुर। राजस्थान की माटी की सुरीली आवाज और लोक संगीत की जीवंत धरोहर, प्रख्यात अलगोजा वादक रामनाथ चौधरी को उनके छह दशक से अधिक के अतुल्य योगदान के लिए वर्ष 2025 का ‘डॉ. कोमल कोठारी लाइफटाइम अचीवमेंट लोक कला पुरस्कार’ प्रदान कर सम्मानित किया गया। पश्चिमी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र (डब्ल्यूजेडीसीसी), संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा आयोजित एक भव्य एवं गरिमामय समारोह में यह प्रतिष्ठित पुरस्कार उन्हें प्रदान किया गया।

राज्यपाल हरिभाऊ बांगड़े ने किया सम्मानित, गुलाबचंद कटारिया रहे विशेष अतिथि
समारोह की शोभा बढ़ाते हुए राज्यपाल श्री हरिभाऊ बांगड़े ने मंच से रामनाथ चौधरी को 2.5 लाख रुपये की नकद सम्मान राशि, प्रशस्ति पत्र एवं एक रजत पट्टिका प्रदान कर उनका अभिनंदन किया। इस ऐतिहासिक क्षण के साक्षी के रूप में पंजाब के राज्यपाल श्री गुलाबचंद कटारिया विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। कार्यक्रम में उदयपुर सांसद मन्नलाल रावत, शहर विधायक ताराचंद जैन, ग्रामीण विधायक फूलसिंह मीणा सहित अनेक जनप्रतिनिधि, कला मर्मज्ञ एवं सांस्कृतिक जगत की विभूतियाँ मौजूद थीं, जिन्होंने श्री चौधरी की कला को साधारण सा वंदन किया।

छह दशकों से साध रहे हैं लोक संगीत की सुरों की तपस्या
इस अवसर पर सभी वक्ताओं ने रामनाथ चौधरी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए उनकी अथक साधना और समर्पण को रेखांकित किया। लगभग छह दशकों से भी अधिक समय से वे अलगोजा जैसे पारंपरिक वाद्य की मधुर तान को न केवल जीवित रखे हुए हैं, बल्कि इसे एक वैश्विक पहचान दिलाने में भी उनका योगदान अविस्मरणीय रहा है। राजस्थान के गाँव-गाँव से निकलकर उनकी अलगोजा की तान ने देश के प्रतिष्ठित मंचों के साथ-साथ विदेशी भूमि पर भी भारतीय लोक कला का डंका बजाया है।
उनकी कला केवल वादन तक सीमित नहीं है, बल्कि लोक संगीत की समृद्ध परंपरा, राग-रागनियों का ज्ञान और नई पीढ़ी को इस विरासत से जोड़ने का उनका निरंतर प्रयास ही उन्हें इस महत्वपूर्ण सम्मान का हकदार बनाता है। उन्होंने अलगोजा वादन की जिस शैली को विकसित किया है, वह आज सैकड़ों युवा कलाकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
डॉ. कोमल कोठारी के सपने को कर रहा है साकार
यह पुरस्कार डॉ. कोमल कोठारी की स्मृति में दिया जाता है, जो स्वयं लोक संस्कृति, लोक वाद्यों और राजस्थान के सांस्कृतिक इतिहास के अनन्य शोधकर्ता और संरक्षक थे। समारोह में डॉ. कोठारी के अतुल्य योगदान को भी याद किया गया। वक्ताओं ने कहा कि यह पुरस्कार उनकी उसी विरासत को आगे बढ़ाने का प्रयास है, जिसमें लोक कला के वरिष्ठ साधकों के आजीवन समर्पण को मान्यता और सम्मान दिया जाता है। रामनाथ चौधरी का नाम इस पुरस्कार से जुड़ना डॉ. कोठारी के सपनों को सच्ची श्रद्धांजलि है।
राजस्थानी लोक कला को मिली नई पहचान

रामनाथ चौधरी को मिला यह सम्मान केवल एक व्यक्ति विशेष का सम्मान नहीं, बल्कि समूचे राजस्थानी लोक-संगीत और पारंपरिक वाद्य कला परंपरा के लिए गौरव का क्षण है। यह पुरस्कार एक स्पष्ट संदेश देता है कि देश की सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ी ये कलाएँ आज भी प्रासंगिक हैं और राष्ट्र इनके रक्षकों को उचित सम्मान देता है। इससे न केवल लोक कलाकारों का मनोबल बढ़ेगा, बल्कि युवा पीढ़ी को भी अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की ओर आकर्षित होने की प्रेरणा मिलेगी।
साधना का सुफल
रामनाथ चौधरी का जीवन निष्ठा, लगन और सादगी का प्रतिमान है। अलगोजा की मिट्टी से जुड़ी सुरों में उन्होंने जो जीवन फूँका है, वह आज एक राष्ट्रीय सम्मान के रूप में उनके सामने है। यह पुरस्कार उनकी अनवरत साधना का सुफल है और साथ ही यह आश्वासन भी कि देश की लोक कलाएँ अपने संवाहकों को कभी विस्मृत नहीं करतीं। उनकी यह उपलब्धि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मार्गदर्शक स्तंभ की तरह है।