100 मीटर ऊँचाई तक सीमित करने का प्रस्ताव पर्यावरण व समाज के लिए घातक : विधायक डूंगर राम गेदर
सूरतगढ़ विधायक डूंगर राम गेदर ने अरावली पर्वत श्रृंखला को 100 मीटर ऊँचाई तक सीमित करने के प्रस्ताव को पर्यावरण, जल सुरक्षा, जैव विविधता और आदिवासी अधिकारों के लिए गंभीर खतरा बताया। राष्ट्रपति को पत्र लिखकर हस्तक्षेप की मांग की।
अरावली को 100 मीटर ऊँचाई तक सीमित करने का प्रस्ताव पर्यावरण व समाज के लिए घातक – विधायक डूंगर राम गेदर
राष्ट्रपति महोदया से तत्काल हस्तक्षेप की मांग, अरावली को बताया राजस्थान की जीवन-रेखा
सूरतगढ़ विधायक डूंगर राम गेदर ने अरावली पर्वत श्रृंखला को केवल 100 मीटर ऊँचाई आधारित परिभाषा में सीमित करने के प्रस्ताव पर गहरी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने इस प्रस्ताव को पर्यावरणीय, सामाजिक और संवैधानिक दृष्टि से अत्यंत खतरनाक बताते हुए भारत की महामहिम राष्ट्रपति महोदया को पत्र लिखकर तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है।
विधायक गेदर ने कहा कि अरावली पर्वत श्रृंखला राजस्थान के लिए मात्र पर्वत नहीं, बल्कि राज्य की जल सुरक्षा, पर्यावरण संतुलन, जैव विविधता और करोड़ों लोगों की जीवन-रेखा है। ऐसे में इसे केवल ऊँचाई के एक सीमित मानक में बांधना न केवल अवैज्ञानिक है, बल्कि भविष्य के लिए विनाशकारी भी सिद्ध हो सकता है।
90 प्रतिशत अरावली पहाड़ियाँ कानूनी संरक्षण से होंगी बाहर
अपने पत्र में विधायक गेदर ने स्पष्ट किया कि यदि अरावली को केवल 100 मीटर ऊँचाई तक सीमित कर दिया गया, तो राजस्थान की लगभग 90 प्रतिशत अरावली पहाड़ियाँ कानूनी संरक्षण से बाहर हो जाएंगी। इसका मुख्य कारण यह है कि राज्य की अधिकांश अरावली पहाड़ियाँ 100 मीटर से कम ऊँचाई की हैं।
उन्होंने कहा कि यह प्रस्ताव अप्रत्यक्ष रूप से उन क्षेत्रों को खुली छूट देगा, जहां आज तक अरावली के नाम पर पर्यावरणीय संरक्षण लागू है। इससे न केवल पहाड़ियाँ, बल्कि उनसे जुड़े जंगल, जलस्रोत और स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र भी खतरे में पड़ जाएगा।
अवैध खनन और वनों के विनाश का रास्ता खुलेगा
विधायक गेदर ने चेतावनी दी कि इस निर्णय से निचली पहाड़ियों और वन क्षेत्रों में अवैध और अनियंत्रित खनन को सीधा बढ़ावा मिलेगा। पहले से ही कई क्षेत्रों में खनन माफिया सक्रिय हैं और यदि कानूनी संरक्षण हटता है, तो स्थिति और भयावह हो सकती है।
उन्होंने कहा कि खनन गतिविधियों से वन आवरण नष्ट होगा, वन्यजीवों का आवास खत्म होगा और जैव विविधता को अपूरणीय क्षति पहुंचेगी। अरावली क्षेत्र में मौजूद दुर्लभ वनस्पतियां और जीव-जंतु पूरी तरह समाप्त होने की कगार पर आ सकते हैं।
आदिवासी और ग्रामीण समुदायों की आजीविका पर संकट
विधायक गेदर ने कहा कि अरावली क्षेत्र में बड़ी संख्या में आदिवासी एवं ग्रामीण समुदाय निवास करते हैं, जिनकी आजीविका सीधे तौर पर जंगल, भूमि और प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर है। प्रस्तावित परिभाषा से इन समुदायों के पारंपरिक अधिकारों और रोजगार पर सीधा प्रभाव पड़ेगा।
उन्होंने कहा कि खनन और अंधाधुंध विकास से इन क्षेत्रों में विस्थापन, सामाजिक असंतोष और आर्थिक असमानता बढ़ेगी, जो संविधान के मूल भावना के भी खिलाफ है।
भूजल पुनर्भरण और जलवायु संतुलन के लिए अत्यंत आवश्यक है अरावली
विधायक गेदर ने जोर देते हुए कहा कि अरावली पर्वतमाला भूजल पुनर्भरण, मरुस्थलीकरण नियंत्रण और जलवायु संतुलन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। अरावली के कारण ही राजस्थान के कई क्षेत्रों में भूमिगत जल स्तर संतुलित बना हुआ है।
उन्होंने चेताया कि यदि अरावली के बड़े हिस्से से संरक्षण हटाया गया, तो जल स्रोतों का तेजी से क्षरण होगा, नदियां और कुएं सूखेंगे और भविष्य में गंभीर जल संकट उत्पन्न होगा, जिसका असर केवल राजस्थान ही नहीं, बल्कि आसपास के राज्यों पर भी पड़ेगा।
केवल ऊँचाई के आधार पर परिभाषा अवैज्ञानिक
विधायक गेदर ने कहा कि किसी पर्वतीय क्षेत्र की पहचान केवल ऊँचाई के आधार पर करना वैज्ञानिक और पारिस्थितिक दृष्टि से पूरी तरह गलत है। पर्वत श्रृंखलाओं की पहचान उनके भूगर्भीय गठन, जैव विविधता, जल संरक्षण क्षमता और पारिस्थितिक भूमिका के आधार पर की जानी चाहिए।
उन्होंने कहा कि अरावली जैसी प्राचीन पर्वतमाला के साथ इस तरह का व्यवहार करना आने वाली पीढ़ियों के भविष्य से खिलवाड़ करने जैसा है।
संवैधानिक और नीतिगत हस्तक्षेप की मांग
विधायक गेदर ने महामहिम राष्ट्रपति महोदया से आग्रह किया कि अरावली पर्वत श्रृंखला की परिभाषा को वैज्ञानिक, भौगोलिक और पारिस्थितिक आधार पर निर्धारित किया जाए तथा इसके प्रभावी संरक्षण के लिए आवश्यक संवैधानिक और नीतिगत पहल की जाए।
उन्होंने कहा कि यदि समय रहते निर्णय नहीं लिया गया, तो इसके दुष्परिणाम देश को दशकों तक भुगतने पड़ेंगे।
“अरावली बचेगी — तभी आने वाली पीढ़ियाँ सुरक्षित रहेंगी”
अपने बयान के अंत में विधायक डूंगर राम गेदर ने कहा,
“अरावली बचेगी — तभी हम और आने वाली पीढ़ियाँ सुरक्षित रहेंगी।”
उन्होंने सभी पर्यावरण प्रेमियों, जनप्रतिनिधियों और नीति निर्माताओं से इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करने और अरावली के संरक्षण के लिए एकजुट होने की अपील की।
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