जयपुर के दुर्लभजी हॉस्पिटल में शव रोके जाने पर हंगामा, मंत्री किरोड़ीलाल ने सरकार की मॉनिटरिंग पर उठाए सवाल
जयपुर के संतोकबा दुर्लभजी हॉस्पिटल में रविवार (26 अक्टूबर) को एक शव को लेकर बड़ा हंगामा हुआ। मृतक के परिवार ने आरोप लगाया कि हॉस्पिटल ने बिल न चुकाने के कारण शव नहीं सौंपा। इस मामले की जानकारी मिलने पर कृषि मंत्री किरोड़ीलाल मीणा खुद हॉस्पिटल पहुंचे और परिवार की मदद की। मंत्री की पहल के बाद शव परिवार को सौंपा गया, लेकिन इस पूरे घटनाक्रम ने राज्य में निजी अस्पतालों में सरकारी योजनाओं के पालन और मरीजों के अधिकारों पर गंभीर सवाल उठाए हैं।

पूरा मामला
दौसा जिले के रहने वाले 42 वर्षीय विक्रम मीणा का 13 अक्टूबर को बालाजी मोड़, महवा (दौसा) में सड़क हादसा हो गया था। गंभीर स्थिति को देखते हुए उन्हें जयपुर के दुर्लभजी हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। मृतक के परिवार का आरोप है कि अस्पताल ने आयुष्मान भारत और मुख्यमंत्री मातृ वंदना योजना जैसी सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं के तहत इलाज करने से मना कर दिया।
पारिवारिक सदस्यों के मुताबिक, विक्रम का इलाज कैश बेसिस पर किया गया और 13 दिन के भीतर उनका बिल 8 लाख से अधिक हो गया। जब विक्रम की मृत्यु की खबर मिली, हॉस्पिटल प्रशासन ने कहा कि शव केवल बकाया राशि जमा होने के बाद ही सौंपा जाएगा। परिवार ने 6 लाख 39 हजार रुपए जमा करवा दिए थे, लेकिन हॉस्पिटल ने शव देने के लिए अतिरिक्त 1.79 लाख रुपए और मांगे।

मंत्री किरोड़ीलाल की कार्रवाई
इस मामले की जानकारी मिलने पर कृषि मंत्री किरोड़ीलाल मीणा रविवार सुबह करीब 10:30 बजे हॉस्पिटल पहुंचे। उन्होंने परिवार से बात की और हॉस्पिटल प्रशासन से भी संपर्क किया। मंत्री ने स्पष्ट किया कि शव के साथ ऐसा व्यवहार करना “शव के साथ खिलवाड़” है।
किरोड़ीलाल मीणा ने कहा, “प्राइवेट हॉस्पिटल ने पैसे न देने पर डेड बॉडी को 24 घंटे तक नहीं दिया। यह मानवता के खिलाफ है। इस मामले में गांधीनगर थाना पुलिस को निर्देश दिया गया है कि पीड़ित की शिकायत पर हॉस्पिटल प्रशासन के खिलाफ मामला दर्ज किया जाए।”
मंत्री ने अपनी ही सरकार की मॉनिटरिंग की कमजोरी स्वीकार करते हुए कहा कि प्रदेश के निजी हॉस्पिटल सरकारी योजनाओं का लाभ आम जनता तक नहीं पहुंचा रहे हैं। उन्होंने मुख्य सचिव से बात कर इस मामले को गंभीरता से उठाया है।
सरकार और अस्पताल की प्रतिक्रिया
बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ ने इस घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि सरकार ने स्पष्ट रूप से एक व्यवस्था और कानून बना रखा है, जिसका पालन सभी को करना चाहिए। उन्होंने कहा, “कानून की अवहेलना होने पर सरकार कार्रवाई करती है। प्राइवेट हॉस्पिटल को भी मानवता दिखानी चाहिए। धन ही सब कुछ नहीं है। अस्पताल सेवा का केंद्र है और पैसे के आधार पर शव रोकना उचित नहीं है।”
इस बयान से यह स्पष्ट हुआ कि सरकार और निजी हॉस्पिटल के बीच नियम और मानवता के बीच टकराव की स्थिति बनी हुई है।

घटनाक्रम की अहमियत
यह घटना घटना स्वास्थ्य सेवाओं और सरकारी योजनाओं की प्रभावशीलता पर गंभीर सवाल उठाती है। मरीजों के परिवारों के लिए सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं का लाभ पहुँचाना केवल एक नीति नहीं, बल्कि जीवन और मृत्यु के मामलों में न्याय सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
विशेषज्ञों के मुताबिक, इस तरह के मामलों से यह संदेश जाता है कि निजी अस्पतालों में मरीजों और उनके परिवारों की सुरक्षा और सम्मान सुनिश्चित करने के लिए सख्त मॉनिटरिंग की जरूरत है। मरीजों के लिए वित्तीय बोझ और मृत्यु के समय भी इंसानी संवेदनाओं का सम्मान होना अत्यंत आवश्यक है।
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