Karnataka Caste Census Update: कर्नाटक सरकार ने क्यों शुरू की जाति जनगणना? जानिए पूरा कारण राज्य सरकार इसे क्यों करवा रही दोबारा
केंद्र सरकार द्वारा देश भर में जातिगत गणना कराने के ऐलान के बाद भी कांग्रेस शासित कर्नाटक में राज्य सराकर ने जातिगत सर्वे शुरू कर दिया है। सरकार के इस फैसले पर राजनीति गरमा गई है। विपक्ष ने निशाना साधते हुए हिंदुओं को बांटने का आरोप लगाया है।

कर्नाटक में जाति जनगणना को लेकर राजनीतिक और सामाजिक बहस के बीच आज कर्नाटक हाईकोर्ट इस मसले पर महत्वपूर्ण सुनवाई करेगा। राज्य में शुरू हुई इस जाति जनगणना को चुनौती देते हुए दायर जनहित याचिका में इसे राजनीतिक मंशा से प्रेरित बताया गया है। वहीं, राज्य सरकार का कहना है कि यह सर्वे कल्याणकारी योजनाओं की सटीक योजना के लिए बेहद जरूरी है।
हाईकोर्ट में आज सुनवाई, अंतरिम रोक की संभावना
कर्नाटक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस विभु बाखरू और जस्टिस सीएम जोशी की खंडपीठ इस मामले में अंतरिम रोक की अपील पर आज सुनवाई करेगी। कोर्ट यह तय कर सकता है कि इस सर्वे पर अस्थायी रूप से रोक लगाई जाए या नहीं। याचिकाकर्ताओं ने सर्वे पर सवाल उठाते हुए इसे संविधान और गोपनीयता के अधिकारों के खिलाफ बताया है।
जाति जनगणना: 7 अक्टूबर तक चलेगा सर्वे
राज्य सरकार द्वारा 17 सितंबर से शुरू किया गया यह सर्वेक्षण 7 अक्टूबर तक चलेगा। शुरुआत में ट्रेनिंग के कारण बेंगलुरु मेट्रोपॉलिटन रीजन (ग्रेटर बेंगलुरु) में कुछ देरी की आशंका है।
इस जाति जनगणना को कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा संचालित किया जा रहा है। इसमें लगभग 1.75 लाख कर्मचारी, विशेषकर सरकारी स्कूलों के शिक्षक, भाग ले रहे हैं। सर्वे में राज्य के 2 करोड़ घरों के करीब 7 करोड़ लोगों को कवर किया जाएगा।
राज्य सरकार जाति सर्वेक्षण क्यों करा रही है?
कर्नाटक सरकार ने इससे पहले वर्ष 2015 में ₹165.51 करोड़ की लागत से एक सामाजिक और शैक्षिक सर्वेक्षण कराया था, लेकिन उसके निष्कर्षों को अवैज्ञानिक बताते हुए खारिज कर दिया गया था। उस सर्वेक्षण में आयोग ने लगभग 1,200 जातियों की पहचान की थी। हालांकि, उस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया।
इस साल जून 2025 की शुरुआत में, राज्य मंत्रिमंडल ने 2015 के सर्वे को औपचारिक रूप से रद्द करते हुए एक नए सर्वेक्षण को मंजूरी दी। यह फैसला कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम, 1995 की धारा 11(1) के तहत लिया गया, जो हर 10 साल में पिछड़े वर्गों की सूची में संशोधन को अनिवार्य बनाता है।

