The Story of Jenabai Daruwalla: अंडरवर्ल्ड की पहली माफिया क्वीन की कहानी: अंडरवर्ल्ड डॉन के लिए मासी बनीं जेनाबाई दारुवाला
आजाद भारत में एक तरफ ये देश की आर्थिक राजधानी के तौर पर विकसित हो रही थी। तो दूसरी तरफ यहां अंडरवर्ल्ड अपने पैर पसार रहा था। मुंबई के अंडरवर्ल्ड की ढेरों कहानियां देश-दुनिया में सुनाई जाती हैं। यहां से निकले तमाम अपराधी जरायम की दुनिया में न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया के कई देशों में राज किए। लेकिन क्या आपको पता है कि कई डॉन जो मुंबई की गलियों और खोलियों से निकलकर दुनिया के कई देशों में अपने गोरखधंधे को न सिर्फ फैलाए बल्कि एक छत्र राज किए। वे सब एक समय एक महिला को सलाम करते थे।
उस महिला को विश्वास में लिए अक्खे मुंबई में कुछ भी गैरकानूनी नहीं हो सकता था। बॉलीवुड विद बुलेट्स में आज जिस महिला की कहानी हम आपको बताने जा रहे है वो अपने आप में खुद का एक अलग रूतबा रखती थी।
वह महिला जिसे वरदराजन मुदलियार, करीम लाला, दाऊद इब्राहिम, छोटा शकील, इब्राहिम कासकर जैसे डॉन मौसी कहकर बुलाते थे। जिसे हाजी मस्तान अपनी बहन कहकर बुलाता था। वह महिला जिसका सरकार भी कुछ नहीं बिगाड़ पाई। जिसका हर आदेश अंडरवर्ल्ड के लिए पत्थर की लकीर हुआ करता था। उस महिला का नाम था जेनाबाई दारुवाला वह अंडरवर्ल्ड की पहली माफिया क्वीन थीं।
अंडरवर्ल्ड की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकार हुसैन जैदी (Hussain Zaidi) की एक किताब है। नाम है माफिया क्वींस ऑफ़ मुंबई (Mafia Queens of Mumbai) इसमें वह जेनाबाई (Jenabai) की कहानी बताते हुए लिखते हैं। साल 1920 के दशक में मुंबई के डोंगरी इलाके में मुसलमान मेमन हलाई परिवार में जेनाबाई का जन्म हुआ था। उसे लोग प्यार से जैनब कहकर बुलाते थे। वह अपने 6 भाई-बहनों में सबसे छोटी थी।
डोंगरी की छोटी से खोली में रहने वाला ये परिवार आर्थिक तौर पर संपन्न नहीं था। पिता सवारियां ढोने का काम करते थे। आजादी की लड़ाई का दौर था तो डोंगरी के लोग भी इसमें शामिल होते थे। जैनब भी छोटी उम्र में उन आंदोलनों में शरीक होने लगी।
उस दौर में छोटी उम्र में ही शादी हो जाया करती थी। जेनाबाई की भी 14 साल की उम्र में शादी हो गई। जेनाबाई शादी के बाद भी आजादी के आंदोलनों में शामिल रहती थीं। इस दौरान वह किसी हिंदू को पुलिस से बचाती तो उनके पति उनकी पिटाई करते। लेकिन जेनाबाई (Jenabai) अपना काम करती रहतीं।
समय बीत रहा था और बीतते-बीतते बंटवारे का दौर आ गया। भारत से पाकिस्तान अलग हो रहा था। देश की जनता इधर-उधर हो रही थी। इसी दौरान जेनाबाई के पति ने उसे पाकिस्तान चलने के लिए कहा। लेकिन जेनाबाई (Jenabai) ने इनकार कर दिया। इससे वह नाराज होकर अकेले ही पाकिस्तान चला गया। जेनाबाई अपने 5 बच्चों के साथ मुंबई के डोंगरी में ही रुक गईं।
जेनाबाई का नया सफर
देश की आजादी के बाद मुंबई राशन की किल्लत हुई। बंटवारे का दंश भी मुंबई पर भारी पड़ा था। महाराष्ट्र सरकार ने गरीबों के लिए सस्ते दर पर राशन की व्यवस्था की यहां जेनाबाई (Jenabai) को व्यापार दिखा। वह चावल के धंधे में उतर गईं। लेकिन जल्द ही उन्हें चावल में कई तरह के धंधे दिखे और वह स्मगलिंग करने लगीं। हालांकि चावल का उनका धंधा चला नहीं लेकिन उन्हें स्मगलिंग का मोटा-मोटी आइडिया हो गया।
बन गईं ‘दारूवाला’
चावल की स्मगलिंग के दौरान ही कुछ दारू बनाने वालों से उनका संपर्क हुआ। उन्हें दारु के धंधे में पैसा दिखा। वह दारू बनाना भी सीख लीं और डोंगरी में ही दारू बनाने से लेकर उसे बेचने का काम शुरू कर दीं। यह काम चल दिया। इलाके में जेनाबाई की धमक हो गईं । जेनाबाई के नाम के आगे दारूवाला जुड़ गया और वह बन गईं जेनाबाई दारूवाला।
20 साल में जेनाबाई ने मुंबई में अपनी धमक जमा ली पैसे भी आ गए। शागिर्द भी हो गए। दारू का व्यापार उनके इशारों पर चलता ही थी। जरायम के कारोबार पर भी जेनाबाई की पकड़ हो गई। सभी बड़े अपराधी जेनाबाई (Jenabai) के संपर्क में रहते और उनका कहना मानते। बड़े-बड़े गैंगवार को जेनाबाई (Jenabai) को शांत करा देतीं और छोटे-छोटे मामलों को भी वह नया मोड़ दिलवा देतीं। कुल मिलाकर पूरे मुंबई में उनका सिक्का चलने लगा।
माफिया क्वीन बन गईं
70 के दशक में मुंबई में कई डॉन बने। इसमें हाजी मस्तान, वरदराजन मुदलियार, करीम लाला से लेकर दाऊद, छोटा शकील तक थे। लेकिन सब जेनाबाई को मासी कहकर ही बुलाते थे। जेनाबाई (Jenabai) की जरायम की दुनिया में जो पकड़ थी। उसका असर इन सभी बड़े डॉन पर दिखता था और वे कभी भी जेनाबाई (Jenabai) के रास्ते में आने की कोशिश नहीं करते थे। वे सभी अपने व्यापार के लिए जेनाबाई से सलाह लेने लगे। जेनाबाई भी शराब के साथ-साथ स्मगलिंग के दूसरे धंधों में हाथ आजमाने लगीं और खूब पैसे कमाईं। यहीं से उन्हें ‘माफिया क्वीन’ (Mafia Queen) कहा जाने लगा।
पुलिस को भी छोड़ना पड़ा
60 के दशक में जेनाबाई को जेनाबाई (Jenabai) को नकली दारू बेचने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. कहा जाता है कि कुछ ही घंटों में पूरे पुलिस महकमे में इसकी चर्चा शुरू हुई और जेनाबाई को पुलिस ने छोड़ दिया। इसके बाद से उसके पुलिस से अच्छे रिश्ते रहने लगे। इसका असर ये हुआ कि हाजी मस्तान भी कभी मुसीबत में पड़ता तो वह जेनाबाई के पास जाता और उसे पूरी मदद मिलती थी।
दाऊद इब्राहिम की मौसी
डोंगरी से दुबई तक किताब में जैदी लिखते हैं। दाऊद इब्राहिम के पिता से जेनाबाई (Jenabai) के अच्छे रिश्ते थे। जेनाबाई (Jenabai) उनके घर भी जाया करती थीं। ऐसे में दाऊद उन्हें मासी कहकर बुलाता था। दाऊद जब जरायम की दुनिया में एंट्री कर रहा था तब भी वह जेनाबाई के इर्द-गिर्द ही रहता था और जेनाबाई को सारी खबर रहती थी।
इमरजेंसी के बाद का मुंबई
एक तरफ इमरजेंसी के बाद देश की राजनीति तेजी से बदल रही थी तो दूसरी तरफ मुंबई का अंडरवर्ल्ड भी तेजी से बदल रहा था। नए-नए डॉन नया-नया बिजनेस कर रहे थे। गैंगवार हो रहा था। अंडरवर्ल्ड कई ग्रुप में बंट चुका था। लेकिन जेनाबाई (Jenabai) एक तरफ से सारा तमाशा देख रही थीं। हाजी मस्तान से लेकर दाऊद तक अपना नेटवर्क बढ़ा रहे थे।
इसी दौरान जेनाबाई (Jenabai) का बड़ा बेटा भी जरायम की दुनिया में तेजी से बढ़ने लगा। अंडरवर्ल्ड में वह भी अपनी पहचान बना ही रहा था कि उसकी गोली मारकर हत्या कर दी गई। जेनाबाई (Jenabai) को इसका बहुत बड़ा धक्का लगा। अपराधियों तक पुलिस और जेनाबाई साथ पहुंचीं लेकिन फिर जेनाबाई (Jenabai) ने हत्यारों को छोड़ दिया और कहा कि इन्हें ऊपर वाला सजा देगा।
धर्म का रास्ता चुन लीं
जेनाबाई (Jenabai) उम्र के एक पड़ाव पर पहुंच गई थीं। ऊपर से बेटे की मौत अब वह धर्म के रास्ते पर आ गई थीं। वह हिंदू-मुसलाम एकता के लिए काम करने लगीं। जहां भी सांप्रदायिक झड़प होती वह हिंदू और मुस्लिम संप्रदाय के रसूखदार लोगों के साथ वहां पहुंचती और एकता की बात करतीं। इसके उनकी छवि तेजी से बदलने लगी।
इस दौरान अपराध की दुनिया से उनकी पकड़ कम होने लगी। दारू का धंधा भी पूरी तरह से बदल गया था। नए तरह के नशे और नए तरह की स्मगलिंग भी शुरू हो चुकी थी। जेनाबाई (Jenabai) इन सबसे दूर हो रही थीं। उनका नेटवर्क भी खत्म हो गया था। ऐसे में हाजी मस्तान से लेकर दाऊद तक जेनाबाई (Jenabai) से दूरी बना लिए थे।
साल 1993 मुंबई धमाका
कहा जाता है कि साल 1993 बम धमाके के बाद जेनाबाई काफी परेशान रहने लगी थीं। उन्हें पछतावा भी था कि अगर उनका नेटवर्क रहता तो इस धमाके की पहले ही उन्हें जानकारी हो जाती और वह इसे रोक सकती थीं। दाऊद को लेकर भी उनकी नाराजगी थी। मुंबई में हुई मौतों ने उन्हें हिला दिया था। वह इससे ऊपर नहीं पाईं। बीमारी बढ़ने लगी और उनका निधन हो गया।