Andhra Pradesh Principal Cut Girls Hair: स्कूल में देर से आने पर प्रिंसिपल ने छात्राओं के बाल काटे: क्या है पूरा मामला?
स्कूल टाइम से न जाने पर स्कूलों में सजा दी जाती है. कभी उस सजा में स्कूल के मैदान के चक्कर कटवाए जाते हैं, तो कभी क्लास के बाहर खड़ा कर दिया जाता था। लेकिन आंध्र प्रदेश के अल्लूरी सीताराम राजू जिले के एक स्कूल में प्रिंसिपल द्वारा छात्राओं को अनुशासनहीनता के लिए दी गई सजा पर विवाद खड़ा हो गया है।
हुआ ये की स्कूल के प्रिंसिपल ने छात्राओं को स्कूल समय पर न पहुंचने पर धूप में खड़ा करने के बाद उन्हें मारा और फिर उनके बाल काट दिए। यह घटना मदुगुला में स्थित कस्तूरबा बालिका विद्यालय (KGBV) में हुई। जिससे अभिभावकों और सामाजिक संगठनों में गहरी नाराजगी है।
क्या है पूरा मामला?
15 नवंबर शुक्रवार को कार्तिक पूर्णिमा के दिन कुछ छात्राएं पानी की आपूर्ति की कमी के कारण स्कूल देर से पहुंची थीं। छात्राओं का कहना है कि पानी नहीं होने की वजह से वे समय पर प्रार्थना सभा में शामिल नहीं हो पाईं। लेकिन इसके बाद उन्हें प्रिंसिपल की ओर से ऐसी सजा दी गई। जो विवाद का कारण बन गई। प्रिंसिपल ने देर से आने की सजा के रूप में छात्राओं को पहले धूप में खड़ा किया। फिर मारा और अंत में उनके बाल काट दिए।
अभिभावकों ने की सजा की निंदा
इस घटना के बाद छात्राओं के अभिभावकों ने प्रिंसिपल के कृत्य को अपमानजनक और अनुचित बताया। कई अभिभावकों का कहना है कि छात्राओं की देरी छात्रावास में पानी की कमी की वजह से थी। और ऐसी सजा देना बिल्कुल गलत था। उन्होंने यह भी कहा कि स्कूल की प्रशासनिक लापरवाही के कारण छात्राएं देर से आईं। इसलिए प्रिंसिपल का ऐसा व्यवहार अनुचित था।
अधिकारी कर रहे जांच
घटना के बारे में जानकारी मिलते ही, आंध्र प्रदेश के परियोजना अधिकारी वी अभिषेक ने कहा कि जिला शिक्षा अधिकारी (डीईओ) गहन जांच कर रहे हैं और निष्कर्षों के आधार पर जिला प्रशासन उचित कार्रवाई करेगा। वहीं आंध्र प्रदेश राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (APSCPCR) ने भी इस घटना पर चिंता जताई है। आयोग के अध्यक्ष केसली अप्पाराव और सदस्य गोंडू सीताराम ने प्रिंसिपल की सजा की निंदा की और कहा कि अनुशासन के नाम पर इस तरह की कार्रवाई से छात्रों को मानसिक उत्पीड़न का सामना नहीं होना चाहिए।
इस घटना के बाद समाज में यह सवाल उठने लगा है कि क्या बच्चों को अनुशासन सिखाने के लिए इस तरह की कठोर सजा उचित है? सामाजिक कार्यकर्ताओं और शिक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रकार की सजा से बच्चों के मनोबल पर नकारात्मक असर पड़ सकता है और इसे मानसिक उत्पीड़न माना जाना चाहिए।