INTERGOVERNMENTAL CONSULTATIONS:जर्मन चांसलर का तीन दिवसीय भारत दौरा: PM मोदी ने किया स्वागत:किन मुद्दों पर बातचीत करेंगे मोदी और शॉल्त्स?
जर्मनी के चांसलर ओलाफ शोल्ज 7वें अंतर सरकारी परामर्श (आईजीसी) में शामिल होने के लिए कल रात नई दिल्ली पहुंचे। केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने शोल्ज का हवाईअड्डे पर स्वागत किया। और आज पीएम मोदी से मुलाकात के अलावा शोल्ज भारत-जर्मनी के बीच होने वाली 7वीं आईजीसी में भी शामिल होंगे।PM Narendra Modi met German Chancellor Olaf
जर्मनी के चांसलर ओलाफ शोल्ज 3 दिवसीय भारत दौरे पर आए है। वह 7वें IGC (इंटरगवर्नमेंटल कंसल्टेशंस) के लिए गुरुवार को दिल्ली पहुंचे। बता दे की बीते 2 साल में यह उनका तीसरा भारत दौरा है। पिछले साल वह 2 बार भारत आए थे।
मोदी और शोल्ज करेंगे भारत-जर्मनी आईजीसी बैठक की सह-अध्यक्षता
आईजीसी 2011 में शुरू किया गया था। यह कैबिनेट स्तर पर सहयोग की व्यापक समीक्षा और संबंधों के नए क्षेत्रों की पहचान करने का मंच है। भारत उन चुनिंदा देशों के समूह में शामिल है। जिनके साथ जर्मनी आईजीसी की बैठक आयोजित करता है। दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्ष आज इस अहम बैठक की अध्यक्षता करेंगे। 7 वें आईजीसी में दोनों देश प्रौद्योगिकी सहयोग को और मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करेंगे।
किन मुद्दों पर बातचीत करेंगे मोदी और शॉल्त्स?
जर्मन विदेश मंत्रालय ने कहा, “साल 2000 से ही भारत के साथ हमारे मजबूत संबंध रहे हैं। और जर्मनी की सरकार इस सामरिक साझेदारी को नए स्तर पर ले जाना चाहती है। इसपर अमल करने की दिशा में शुरुआती कदम अगले इंडो-जर्मन इंटरगवर्नमेंटल कंसल्टेशंस में तय किए जाएंगे.”
प्रौद्योगिकी सहयोग के 50 वर्ष
इस साल भारत और जर्मनी विज्ञान और प्रौद्योगिकी सहयोग के 50 वर्ष भी मना रहे हैं। इस सहयोग के तहत दोनों पक्षों ने अंतरिक्ष अनुसंधान, एआई, पृथ्वी और पर्यावरण विज्ञान जैसे वैश्विक और उभरते क्षेत्रों कई महत्वपूर्ण परियोजनाएं शुरू की हैं।
जर्मनी को चीन के विकल्प की तलाश
लिहाजा माना जा रहा है कि जर्मन चांसलर ओलाफ शोल्ज अपनी भारत यात्रा के जरिए न सिर्फ द्विपक्षीय संबंधों को मजबूती देने की कोशिश कर रहे हैं। बल्कि चीन का विकल्प भी तलाशने में लगे है। दरअसल दक्षिण चीन सागर, ताइवान और फिलिपींस के साथ क्षेत्रीय तनाव के मुद्दे को लेकर जर्मनी की अपनी कुछ चिंताएं है। ऐसे में एशिया-पैसिफिक क्षेत्र में स्थिरता के लिए। भारत से बेहतर रणनीतिक साझेदार नहीं हो सकता।
कुछ राजनीतिक विश्लेषक इसे भारत और जर्मनी के संबंधों में इसे ‘साइटनवेंडे’ यानी एक तरह का बड़ा मोड़ बता रहे हैं। उम्मु सलमा बावा नई दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञानी हैं। उन्होंने डीडब्ल्यू की दिल्ली ब्यूरो चीफ सांड्रा पीटर्समान को बताया। “मुझे लगता है कि यूक्रेन में जारी युद्ध और मध्यपूर्व में हो रहे एक अन्य युद्ध के कारण हो रहे राजनीतिक बदलावों ने इस ओर ध्यान खींचा है कि आप अपनी साझेदारी को किस तरह अलग रूप दे सकते हैं।
उन्होंने आगे कहा “मुझे लगता है कि हम यहां साइटनवेंडे शब्द का इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन फिर हमें साइटनविंडे की अवधारणा पर खरा उतरने के लिए काफी कड़ी मेहनत करनी होगी।