Nayab Singh Saini Oath Ceremony: हरियाणा के मुख्यमंत्री बने नायब सिंह सैनी, दूसरी बार ली पद की शपथ
जयपुर: हरियाणा में बीजेपी ने लगातार तीसरी बार सरकार बनाई है। 90 सदस्यीय विधानसभा में बीजेपी को 48 सीटें मिलीं, जबकि कांग्रेस को 37 सीटें मिलीं। नायब सिंह सैनी को सर्वसम्मति से मुख्यमंत्री बनाया गया है।
नायब सिंह सैनी का राजनीतिक सफर
54 वर्षीय नायब सिंह सैनी, जो ओबीसी समुदाय से हैं, दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली । चुनाव से पहले बीजेपी ने ऐलान किया था कि यदि वे जीतते हैं, तो सैनी ही मुख्यमंत्री रहेंगे। शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह, जेपी नड्डा और एनडीए के अन्य नेताओं ने भाग लिया।
सैनी का राजनीतिक सफर काफी दिलचस्प रहा है। वह 2014 से 2019 तक मनोहर लाल खट्टर की सरकार में मंत्री रहे और 2019 में कुरुक्षेत्र से लोकसभा चुनाव जीते। मार्च में खट्टर के विधानसभा सीट से इस्तीफा देने के बाद उपचुनाव में सैनी ने यह सीट जीती थी। हाल ही के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने उन्हें कुरुक्षेत्र के लाडवा से टिकट दिया, जहां उन्होंने जीत हासिल की।
मनोहर लाल खट्टर का सहयोग
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, नायब सिंह सैनी और मनोहर लाल खट्टर के बीच नजदीकी संबंध रहे हैं। वे अक्सर एक ही कार में बीजेपी के कार्यों के लिए जाते थे। खट्टर के विश्वासपात्र होने के कारण सैनी को मुख्यमंत्री पद मिला। खट्टर के 9 साल के कार्यकाल के दौरान बीजेपी के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर थी, जिसमें किसान आंदोलन, बेरोजगारी, महंगाई और कानून व्यवस्था जैसे मुद्दे शामिल थे।
इसके बावजूद, सैनी को हरियाणा बीजेपी अध्यक्ष से मुख्यमंत्री बनाया गया। विधायक कृष्ण कुमार बेदी ने सैनी का नाम प्रस्तावित किया, जिसे वरिष्ठ नेता अनिल विज ने समर्थन दिया। हालाँकि, अनिल विज खुद भी मुख्यमंत्री पद की दौड़ में थे लेकिन पार्टी ने सैनी पर भरोसा जताया।
नायब सिंह सैनी की पृष्ठभूमि
नायब सिंह सैनी का जन्म 25 जनवरी 1970 को अंबाला के मिजापुर माजरा में हुआ। उन्होंने 1996 में बीजेपी राज्य मुख्यालय में कंप्यूटर ऑपरेटर के रूप में कार्य किया। सैनी ने बीआर आंबेडकर यूनिवर्सिटी से बीए और एलएलबी की डिग्री प्राप्त की और आरएसएस में भी कार्य किया। उनकी मुलाकात मनोहर लाल खट्टर से हुई। उन्होंने उनके राजनीतिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
हाल ही में सैनी ने चुनाव से ढाई महीने पहले छोटे कार्यकाल में कैबिनेट बैठकें और जनहित के ऐलान कर लोगों तक पहुंचने की कोशिश की। उनका उद्देश्य पिछड़े वर्ग के गैर-जाट वोटों को एकजुट करना और जाट वोटों को विपक्षी दलों में बांटना था। यही रणनीति थी जिसने बीजेपी को खट्टर की जगह ओबीसी नेता सैनी को मुख्यमंत्री बनाने में मदद की।