NEET फर्जी एडमिशन पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, राजस्थान के 11 प्राइवेट डेंटल कॉलेजों पर 110 करोड़ जुर्माना
सुप्रीम कोर्ट ने NEET फर्जी एडमिशन में शामिल राजस्थान के 11 प्राइवेट डेंटल कॉलेजों पर 110 करोड़ का जुर्माना लगाया। कोर्ट ने मानवीय आधार पर बीडीएस छात्रों की डिग्री बचाते हुए 2 साल की नि:शुल्क सेवा अनिवार्य की। जानिए पूरा मामला, कोर्ट की टिप्पणी और जुर्माने का उपयोग।
NEET फर्जी एडमिशन पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
राजस्थान में वर्ष 2016-17 के दौरान हुए बीडीएस (बैचलर ऑफ डेंटल सर्जरी) एडमिशन फर्जीवाड़े पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा और सख्त फैसला सुनाया है। कोर्ट ने नियमों की अनदेखी कर छात्रों को प्रवेश देने वाले राजस्थान के 11 प्राइवेट डेंटल कॉलेजों पर कुल 110 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया है। प्रत्येक कॉलेज से 10-10 करोड़ रुपए वसूले जाएंगे।
हालांकि कोर्ट ने मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए उन छात्रों की डिग्रियां रद्द नहीं कीं, जिन्होंने अपना कोर्स पूरा कर लिया है। लेकिन इसके साथ ही कोर्ट ने भविष्य के लिए कड़ा संदेश भी दिया है।
किन कॉलेजों पर लगा जुर्माना
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह जुर्माना उन 11 निजी डेंटल कॉलेजों पर लगाया गया है, जिन्होंने NEET में शून्य या नेगेटिव अंक लाने वाले छात्रों तक को प्रवेश दे दिया था। यह प्रवेश न केवल नियमों के खिलाफ था, बल्कि मेडिकल शिक्षा की गुणवत्ता और विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े करता है।
छात्रों को राहत, लेकिन सख्त शर्तों के साथ
जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस विजय विश्नोई की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि गलती कॉलेजों और राज्य सरकार की थी, ऐसे में छात्रों को पूरी तरह दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
इसी आधार पर कोर्ट ने कोर्स पूरा कर चुके छात्रों की डिग्री को रद्द नहीं किया, लेकिन राहत के बदले एक बड़ी शर्त रखी। इन सभी डॉक्टरों को राज्य में 2 वर्षों तक नि:शुल्क सेवा (Pro-bono service) देनी होगी।
शपथ पत्र देना अनिवार्य
कोर्ट के आदेश के अनुसार, राहत पाने वाले सभी डॉक्टरों को 8 सप्ताह के भीतर राजस्थान हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार (ज्यूडिशियल) के समक्ष शपथ पत्र देना होगा।
इस शपथ पत्र में उन्हें यह लिखित रूप से देना होगा कि राज्य सरकार द्वारा किसी भी आपात स्थिति, प्राकृतिक आपदा, महामारी या सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट के समय वे बिना किसी वेतन के दो साल तक सेवाएं देंगे।
यदि कोई छात्र शपथ पत्र नहीं देता है, तो उसकी जानकारी सुप्रीम कोर्ट को भेजी जाएगी और उसकी डिग्री की मान्यता खतरे में पड़ सकती है।
पूरा घटनाक्रम: कैसे हुआ फर्जीवाड़ा
यह विवाद वर्ष 2016 में NEET परीक्षा के बाद शुरू हुआ, जब राजस्थान के कई प्राइवेट डेंटल कॉलेजों में सीटें खाली रह गई थीं।
30 सितंबर 2016
राजस्थान सरकार ने आदेश जारी कर NEET के न्यूनतम पर्सेंटाइल में 10 पर्सेंटाइल की छूट दी।
4 अक्टूबर 2016
सीटें फिर भी खाली रहने पर राज्य सरकार ने 5 पर्सेंटाइल की अतिरिक्त छूट दे दी।
5 अक्टूबर 2016
डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया (DCI) ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर इसे नियमों का उल्लंघन बताया और कहा कि पर्सेंटाइल घटाने का अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास है।
6 अक्टूबर 2016
केंद्र सरकार ने राजस्थान सरकार को आदेश वापस लेने को कहा और चेतावनी दी कि ऐसे एडमिशन शुरू से ही अवैध माने जाएंगे।
इसके बावजूद प्राइवेट कॉलेजों ने शून्य और नेगेटिव अंक लाने वाले छात्रों को भी प्रवेश दे दिया।
कोर्ट की सख्त टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि कॉलेजों ने लालच में आकर नियमों की धज्जियां उड़ाईं। कोर्ट ने माना कि सीटें भरने के दबाव में कॉलेजों ने न केवल सरकारी छूट का गलत फायदा उठाया, बल्कि उससे भी आगे जाकर पूरी तरह अयोग्य छात्रों को दाखिला दिया।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह राहत भविष्य के मामलों के लिए नजीर नहीं बनेगी।
कोर्ट में दिए गए तर्क
DCI का पक्ष :
डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया के वकील ने तर्क दिया कि छात्र पूरी तरह निर्दोष नहीं हैं, क्योंकि उन्हें पता था कि यह एडमिशन प्रक्रिया नियमों के खिलाफ है।
छात्रों का पक्ष :
छात्रों के वकील ने कहा कि हाईकोर्ट के अंतरिम आदेशों के भरोसे उन्होंने पढ़ाई पूरी की और अब डिग्री रद्द करना उनके भविष्य के साथ अन्याय होगा।
जुर्माने की राशि का उपयोग
कोर्ट ने निर्देश दिया कि कॉलेजों से वसूली गई राशि राजस्थान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (RSLSA) के पास जमा कराई जाएगी। यह राशि फिक्स्ड डिपॉजिट में रखी जाएगी।
इससे मिलने वाले ब्याज का उपयोग राज्य के वन स्टॉप सेंटर, नारी निकेतन, वृद्धाश्रम और बाल देखभाल संस्थानों के रखरखाव और सुधार में किया जाएगा।
इस पूरी प्रक्रिया की निगरानी राजस्थान हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस द्वारा गठित 5 सदस्यीय समिति करेगी, जिसमें कम से कम एक महिला जज शामिल होंगी।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला मेडिकल शिक्षा में पारदर्शिता और जवाबदेही की दिशा में मील का पत्थर माना जा रहा है। जहां एक ओर दोषी कॉलेजों पर भारी जुर्माना लगाया गया, वहीं दूसरी ओर छात्रों के भविष्य को मानवीय आधार पर सुरक्षित रखा गया।

