High Courts Toilet Shortage: सुप्रीम कोर्ट की सख्ती: देश की अदालतों में टॉयलेट हालात पर सिर्फ 5 हाईकोर्ट ने दी रिपोर्ट, 20 अभी भी चुप
देश की अदालतों में टॉयलेट जैसी बुनियादी सुविधा की हालत पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। बुधवार को कोर्ट ने नाराजगी जताई कि देश के 25 में से 20 हाईकोर्ट ने अब तक ये नहीं बताया कि उन्होंने टॉयलेट की सुविधा सुधारने के लिए क्या कदम उठाए हैं?

सुप्रीम कोर्ट ने 15 जनवरी को अपने फैसले में कहा था कि उचित स्वच्छता तक पहुंच संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है। अदालत ने विभिन्न निर्देश देते हुए सभी उच्च न्यायालयों, राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया था कि वे पुरुषों, महिलाओं, दिव्यांगजनों और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए अलग-अलग शौचालय सुविधाएं सभी अदालत परिसरों और न्यायाधिकरणों में उपलब्ध कराएं। पिछली सुनवाई में चार महीने के भीतर स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने को कहा गया था।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन ने आज सुनवाई के दौरान सभी हाईकोर्ट को रिपोर्ट पेश करने के लिए 8 हफ्ते का समय दिया। सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी है कि अगर इस बार रिपोर्ट नहीं आई तो हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को खुद सुप्रीम कोर्ट में हाजिर होना पड़ेगा। यह मामला वकील राजीब कलिता की एक जनहित याचिका से शुरू हुआ, जिसमें उन्होंने अदालतों में टॉयलेट की खराब स्थिति का मुद्दा उठाया है।
सिर्फ 5 हाई कोर्ट ने दाखिल की रिपोर्ट
बुधवार को पीठ ने यह नोट किया कि केवल झारखंड, मध्य प्रदेश, कलकत्ता, दिल्ली और पटना उच्च न्यायालयों ने ही अब तक अनुपालन रिपोर्ट दाखिल की है। देश में कुल 25 उच्च न्यायालय हैं। कई उच्च न्यायालय अभी तक अपनी शपथ-पत्र/अनुपालन रिपोर्ट दाखिल नहीं कर पाए हैं। हम उन्हें अंतिम अवसर देते हैं कि वे आठ सप्ताह के भीतर रिपोर्ट दाखिल करें। हम यह स्पष्ट कर रहे हैं कि यदि वे ऐसा करने में विफल रहे, तो संबंधित उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरल को व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित होना होगा।
15 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उचित स्वच्छता तक पहुंच को मौलिक अधिकार माना गया है। कोर्ट ने उच्च न्यायालयों, राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों से सभी न्यायालय परिसरों और न्यायाधिकरणों में पुरुषों, महिलाओं, दिव्यांगजनों और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए अलग-अलग शौचालयों की सुविधा सुनिश्चित करने को कहा था। कोर्ट ने चार महीने के भीतर स्थिति रिपोर्ट भी मांगी थी।
अदालत ने कहा था, ‘केवल ऐसे प्रावधान करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि यह तय करने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए कि शौचालयों का रखरखाव पूरे साल किया जाए। ऐसी पहुंच के बिना राज्य/संघ राज्य क्षेत्र कल्याणकारी राज्य होने का दावा नहीं कर सकते।