प्राकृतिक नाले पर अवैध कब्जे का संगीन मामला: शांतिवन में आस्था की आड़ में अतिक्रमण!
राजस्थान के सिरोही जिले के आबूरोड उपखंड स्थित एक निजी संस्थान “शांतिवन तलेटी” द्वारा प्राकृतिक नालों की भूमि पर अवैध कब्जे और निर्माण कार्य का मामला एक बार फिर सुर्खियों में है। परिवादी कांतिलाल उपाध्याय और इकबाल मोहम्मद द्वारा जिला कलेक्टर और पीएलपीसी (Public Land Protection Cell) को दी गई शिकायत में गंभीर आरोप लगाए गए हैं।
शिकायत के अनुसार, गांव दानबाव, पटवार हल्का मानपुर, तहसील आबूरोड में खसरा संख्या 56, 57, 87 और 99 जो कि गै मू (प्राकृतिक नाला) के रूप में दर्ज हैं, उनकी चौड़ाई लगभग 100 फीट तक थी। परंतु शांतिवन संस्थान द्वारा कथित रूप से इन नालों के आकार को छोटा कर उनका मूल स्वरूप समाप्त कर दिया गया है। स्थानीय प्रशासन, यूआईटी आबू रोड (नगर सुधार न्यास) की मिलीभगत से इस भूमि पर मनमोहिनी कॉम्पलेक्स सहित कई भव्य भवनों का निर्माण अवैध रूप से कर दिया गया है।
निर्माणाधीन भवन, JCB से गड्ढे और पुलिया: नियमों की उड़ती धज्जियां
परिवादियों का आरोप है कि खसरा संख्या 279/87 में भी नाले की भूमि पर गहरा गड्ढा खोद कर RCC के खंभों के साथ एक नया अवैध भवन बन रहा है। इस पर जाने हेतु 10-15 फुट चौड़ी अवैध अस्थाई पुलिया भी बना दी गई है, जिससे नाले का बहाव पूरी तरह अवरुद्ध हो गया है।
राजस्व रिकॉर्ड में नाले की भूमि, जमीनी हकीकत में दीवारें
शिकायत में कहा गया है कि खसरा संख्या 98 जो नगर सुधार न्यास के नाम दर्ज है, उसमें भी अवैध दीवारों का निर्माण हो चुका है। ये निर्माण इस प्रकार किए गए हैं कि नाले की चौड़ाई जो पहले 100 फीट थी, अब केवल 10-15 फीट रह गई है।
MOU का उल्लंघन और सुस्त प्रशासन
दिनांक 24.07.2018 को नगर सुधार न्यास आबू और ब्रह्माकुमारी संस्थान के बीच एक एमओयू/लाइसेंस अनुबंध हुआ था जिसमें वन विभाग तलेटी से सार्वजनिक चिकित्सालय भवन तक नाले के सौंदर्यीकरण की बात कही गई थी। शिकायत में आरोप लगाया गया है कि 7 वर्षों के बाद भी इस अनुबंध की शर्तें पूरी नहीं की गईं और नाला अब अस्तित्व ही खोता जा रहा है।
खुली आँखों से ‘आस्था में अतिक्रमण’ को देखता प्रशासन?
शिकायत में सबसे गंभीर आरोप यह है कि स्थानीय प्रशासन और यूआईटी आबू इस पूरे मामले में पूरी तरह से मौन और सहयोगी भूमिका में हैं। ना सिर्फ अवैध निर्माणों को रोका गया, बल्कि नियमन और आवंटन भी उन्हीं जमीनों पर कर दिए गए जो स्पष्ट रूप से प्राकृतिक नालों के रूप में दर्ज थीं।
जनहित में मांग
परिवादियों ने मांग की है कि:
निर्माणाधीन अवैध भवन को तत्काल रोका जाए।
खसरा संख्या 56, 57, 87, 99, और 279/87 की भूमि से सभी अतिक्रमण हटाए जाएं।
अवैध रूप से नियमन किए गए भूखंडों को निरस्त किया जाए।
नालों को उनके मूल प्राकृतिक स्वरूप में पुनः बहाल किया जाए।
क्या कहती है जनता?
स्थानीय निवासियों का कहना है कि नाले की दिशा और चौड़ाई में बदलाव से आने वाले वर्षों में बाढ़, जलभराव, और पर्यावरणीय असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। वहीं दूसरी ओर, प्रशासन की निष्क्रियता को लेकर नाराजगी भी खुलकर सामने आने लगी है।
अंत में सवाल ये उठता है –
“क्या सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज ‘प्राकृतिक नाले’ की जमीनें अब आस्था या प्रभाव के नाम पर निजी भवनों में तब्दील होती रहेंगी?”