PM Modi Trinidad Visit: पीएम मोदी 3-4 जुलाई को करेंगे त्रिनिदाद और टोबैगो का दौरा: प्रवासी भारतीयों की 180वीं वर्षगांठ पर ऐतिहासिक यात्रा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 3-4 जुलाई 2025 को त्रिनिदाद और टोबैगो की यात्रा करेंगे। यह यात्रा भारतीय प्रवासियों की 180वीं वर्षगांठ पर हो रही है। पीएम मोदी की यात्रा से दोनों देशों के संबंध मजबूत होंगे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 3 और 4 जुलाई 2025 को त्रिनिदाद और टोबैगो की ऐतिहासिक यात्रा पर रवाना होंगे. यह किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री की 1999 के बाद पहली द्विपक्षीय यात्रा होगी और खुद पीएम मोदी की इस देश में पहली आधिकारिक उपस्थिति होगी।
यह यात्रा केवल कूटनीतिक औपचारिकता नहीं है। यह 225 भारतीयों की विरासत का सम्मान है। जो 30 मई 1845 को ‘फतेह-अल-रजाक’ जहाज से इस कैरिबियाई धरती पर पहली बार उतरे थे। वे मजदूर थे, जिन्हें गिरमिटिया कहा जाता था और आज उसी धरती पर उनके वंशज प्रधानमंत्री की अगवानी करेंगे।
त्रिनिदाद की 13.6 लाख की आबादी में 40-45% लोग भारतीय मूल के हैं। और वर्तमान में देश की राष्ट्रपति क्रिस्टीन कार्ला कंगालू और प्रधानमंत्री कमला प्रसाद-बिसेसर दोनों भारतीय मूल की महिलाएं हैं। जो अपनी जड़ों पर गर्व करती हैं और खुद को ‘भारत की बेटियां’ कहती हैं। पीएम मोदी की यह यात्रा न केवल सांस्कृतिक और भावनात्मक बंधनों को मजबूत करेगी, बल्कि व्यापार, तकनीक और विकास के नए रास्ते भी खोलेगी।
गिरमिटिया इतिहास: 1845 से 2025 तक की यात्रा
जब ‘फतेह-अल-रज़ाक’ जहाज त्रिनिदाद के तट पर पहुंचा था तो उसमें सवार 225 भारतीय मजदूरों में अधिकांश उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड से आए थे। उनका मुख्य उद्देश्य था ब्रिटिश उपनिवेश में गन्ने के बागानों में काम करना। अंग्रेजों की तरफ से भारत से कैरेबियन, मॉरिशस, फिजी आदि देशों में सस्ते मजदूर भेजे गए. इन मजदूरों को गिरमिट (agreement) नामक अनुबंध पर ले जाया गया। जहाजों में बेहद कठिन और अमानवीय परिस्थितियों में यात्रा होती थी। आज वही गिरमिटिया वंशज, त्रिनिदाद और टोबैगो की जनसंख्या का लगभग 45% हिस्सा हैं — राजनीति, अर्थव्यवस्था और समाज में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह यात्रा 1999 के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की त्रिनिदाद और टोबैगो की पहली यात्रा है. 3-4 जुलाई को होने वाली इस यात्रा में पीएम मोदी त्रिनिदाद की संसद को संबोधित करेंगे। जो दोनों देशों की साझा लोकतांत्रिक परंपराओं का प्रतीक है. यहां याद दिला दें कि त्रिनिदाद की संसद में स्पीकर की कुर्सी भारत ने ही 1968 में भेंट की थी। जो दोनों देशों के बीच गहरे लोकतांत्रिक रिश्तों का प्रतीक है।
भारत-त्रिनिदाद रिश्तों की एक नई शुरुआत