Rajasthan Assembly By Election 2024: राजस्थान के उपचुनावों में एक बार फिर परिवारवाद: जंग में जीत के लिए पार्टियों ने लगाया परिवारों पर दांव
राजस्थान के उपचुनावों में बस अब कुछ दिन ही शेष रहा गए है। अब जैसे जैसे उपचुनाव पास आ रहे सीटों पर महाभारत शुरू हो गयी है। बात दे की राजस्थान की सात सीटों पर होने वाले विधानसभा चुनाव में प्रचार के लिए अब सिर्फ एक सप्ताह का समय शेष बचा है।
कांग्रेस और भाजपा सहित दोनों क्षेत्रीय दल आरएलपी और बीएपी ने चुनाव प्रचार में पूरी ताकत झोंक दी है। इन उप चुनावों में सभी दल जीत के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं। जिन सात सीटों पर चुनाव होने जा रहे हैं। उन सीटों में से चार कांग्रेस के पास थी। जबकि भाजपा बीएपी और आरएलपी के पास एक एक सीट थी। अब सभी दलों को अपनी अपनी सीट बचाने की चिंता है।
अब ऐसे में पार्टी में मतभेद भी शुरू हो जाते है। इस बार उपचुनाव में भी कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिला। पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा पहले कहते हुए नजर आ रहे थे। जो कार्यकर्ता जमीन स्तर से जुड़ा हुआ है । उसको ही प्रत्याशी बनाया जाएगा। लेकिन कार्यकर्ता को प्रत्याशी बनाना तो दूर परिवारवाद का ही खेल शुरू हो गया। वैसे तो राजस्थान में परिपाटी हमेशा देखने को मिलता है। लेकिन अब फिर से राजस्थान में परिवारवाद हावी हो जाता है। और कार्यकर्ताओं को नाखुश कर दिया जाता है। पॉलिटिक्स में पार्टियों को परिवारवाद से कोई परहेज नहीं है। हां लेकिन यदि एक दूसरे पर बयानी तीर छोड़ने हो तो फिर परिवारवाद वाला हथियार सटीक बैठता है। ऐसी ही कुछ तस्वीर राजस्थान के उप चुनावों में भी है। जहां के चुनावी जंग में परिवार से पार्टियों ने प्रीत लगा ली है।
राजस्थान की सियासत की अगर बात करें तो राजा महाराजाओं के समय से ही परिवार वाद का खेल चलता आ रहा है। सत्ता, सियासत और ‘परिवार’ वाला वादा हमेशा देखने को मिलता है। लेकिन पूरा बहुत कम देखने को मिलता है। हर बार राजस्थान में दोनों ही प्रमुख पार्टियों के शीर्ष नेतृत्व के नेता परिवारवाद की बात से इनकार करते हैं। लेकिन टिकट वितरण के दौरान परिवार वाद का प्यार साफ तौर पर नजर आता है।
जंग में हो जीत, परिवार से पार्टियों ने लगाई प्रीत
चुनावी जंग में हमेशा से परिवारवाद का मद्दा बड़ा रहा है। खासकर कांग्रेस इस आरोप में हमेशा बीजेपी के निशाने पर रही है। लेकिन इस बार प्रदेश में हो रहे उपचुनाव में बीजेपी भी परिवारवाद से अछूती नहीं रही है। 7 सीटों पर हो रहे उपचुनाव में बीजेपी ने दो सीटों पर परिवार वाला दांव खेला जबकि कांग्रेस ने 3 सीटों पर परिवार के सदस्यों को मैदान में उतारा है।
दौसा विधानसभा सीट
प्रदेश की हॉट सीट मानी जा रही दौसा में कांग्रेस और बीजेपी को बागियों का डर नहीं। लेकिन अब बीजेपी में परिवारवाद और सामान्य सीट पर एसटी को टिकट देने से सर्व समाज में नाराजगी बात की बात सामने आ रही है। 2 लाख 63 हजार से अधिक मतदाता वाली इस सीट पर मंत्री पद से इस्तीफा दे चुके किराड़ी लाल मीणा के भाई जगमोहन मीणा चुनावी मैदान में है। वहीँ कांग्रेस के लिहाज से कभी पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट की लोकसभा सीट रही है। पायलट इस सीट पर मजबूती से चुनावी प्रचार में जुट गए है। ऐसे में यह सीट हाई प्रोफ़ाइल बन गई है।
अब तक उदयपुर का हिस्सा रही सलूंबर सीट अब खुद अपने आप में जिला हो गई है। आदिवासियों की संख्या अधिक होने के कारण यह भी आरक्षित सीट है। लेकिन यहां सामान्य वर्ग की अन्य जातियां जैसे जैन, ब्राह्मण, राजपूत और मूल ओबीसी की जातियां भी ठीकठाक संख्या में हैं। यही कारण है कि इस सीट पर आदिवासी पार्टियों के बजाए कांग्रेस और भाजपा के बीच ही मुकाबला होता आया है। दिवंगत विधायक अमृतलाल मीणा यहां से लगातार तीसरी बार विधायक बने थे। इस बार भाजपा ने उनकी पत्नी शांतादेवी को टिकट देकर अनूसूचित जनजाति के साथ ही सामान्य वर्ग के अपने परंपरागत वोट बैंक के सहारे जीत की उम्मीद की है।