BRICS Summit 2024 Agenda Explained: 34 देशों ने ब्रिक्स में शामिल होने की इच्छा जताई: वैश्विक शक्तियों को ऐसे कर रहा बैलेंस
आज इस स्टोरी में हम BRICS की अहमियत के बारे में जानेंगे। साथ ही जानेंगे इस पर दुनियाभर की नजर क्यों है। दुनिया के कई देश इसका सदस्य क्यों बनना चाहते हैं…
जहा दूसरे विश्वयुद्ध में ज्यादातर देशों के पास जितना सोने का भंडार होता था। वो देश उतनी ही वैल्यू की करेंसी जारी करते थे। 1944 में दुनिया के 44 देशों के डेलिगेट्स मिले और अमेरिकी डॉलर के मुकाबले सभी करेंसी का एक्सचेंज रेट तय किया। क्योंकि उस वक्त अमेरिका के पास सबसे ज्यादा सोने का भंडार था। और वो दुनिया की सबसे बड़ी और स्थिर अर्थव्यवस्था था।
अमेरिकी डॉलर दुनिया की सबसे मजबूत करेंसी कैसे बना?
मान लीजिए भारत को पाकिस्तान की करेंसी पर भरोसा नहीं है। ऐसे में वो पाकिस्तानी करेंसी में व्यापार नहीं करेगा। ऐसी ही समस्या के लिए 1944 में तमाम देशों ने मिलकर डॉलर को बेस करेंसी बनाया था। यानी भारत पाकिस्तान से डॉलर में कारोबार कर सकता है। क्योंकि उसे पता है कि अमेरिकी डॉलर डूबेगा नहीं और जरूरत पड़ने पर अमेरिका डॉलर के बदले सोना दे देगा।
डॉलर दुनिया की सबसे सुरक्षित करेंसी बन चुका था। लेकिन 1970 की शुरुआत में कई देशों ने डॉलर के बदले सोने की मांग शुरू कर दी। ये देश अमेरिका को डॉलर देते और उसके बदले में सोना लेते थे। इससे अमेरिका का सोने का भंडार खत्म होने लगा है।
डॉलर की पावर के दम पर अमेरिका बैठे-बिठाए कैसे अरबों कमाता है?
जब हम कोई भी चीज़ खरीदते है तो सबसे पहले उस का मूल्य चुकाते है। जैसे- कैश, ऑनलाइन बैंकिंग, UPI ट्रांसफर। ऐसे ही दुनियाभर के देश आपस में व्यापार करने के लिए अमेरिका के SWIFT नेटवर्क का इस्तेमाल करते हैं। इस से ही अमेरिका बैठे बिठाये करोडो अरबो कमा लेता है। अमेरिकी डॉलर कई कारणों से रुपए से ज़्यादा महंगा है। भारत खुद निर्यात करने के बजाय अमेरिका से वस्तुओं का आयात करता है, यही वजह है कि निर्यात की संख्या के कारण डॉलर का मूल्य अधिक है।
डॉलर को रिप्लेस करने के लिए चीन-रूस क्या कोशिशें कर रहे हैं?
रूस दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल और गैस का उत्पादन करने वाला देश है। उसके सबसे बड़े खरीदार यूरोपीय देश हैं। अप्रैल 2022 में रूस ने नेचुरल गैस खरीदने वाले यूरोपीय यूनियन के देशों से कहा कि वो डॉलर या यूरो के बजाय बिल का भुगतान रूबल में करें।
डॉलर को युआन से रिप्लेस करने के लिए चीन की कोशिशें
SWIFT की ही तरह चीन के सेंट्रल बैंक पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना ने CIPS नाम का सिस्टम बनाया है। इस पेमेंट सिस्टम से करीब 117 देशों के 1551 बैंक जुड़ चुके हैं। पिछले साल इस सिस्टम के जरिए 123.06 ट्रिलियन युआन (चीन की करेंसी) से ज्यादा का ट्रांजैक्शन हुआ। इस एग्रीमेंट के तहत 2 देशों को व्यापार करने के लिए हर बार SWIFT सिस्टम की जरूरत नहीं है। एक फिक्स अमाउंट का ट्रेड वो देश अपनी करेंसी में कर सकते हैं।
1 अक्टूबर 2024 को एक थिंकटैंक प्रोग्राम में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि भारत ने कभी डॉलर को निशाना नहीं बनाया है। क्योंकि यह देश की आर्थिक राजनीति या रणनीतिक नीति का हिस्सा नहीं रहा है। भारत की ऐसी कभी कोई नीयत नहीं रही है। ये जरूर है कि भारत के कुछ पार्टनर्स को डॉलर में व्यापार करने में कठिनाई हो रही है।
डी-डॉलराइजेशन से भारत को फायदा होगा या नुकसान?
डी-डॉलराइजेशन से भारत की अमेरिकी मॉनेटरी पॉलिसी और डॉलर पर निर्भरता कम होगी। साथ ही भारत के फॉरेन रिजर्व में दूसरी करेंसी का हिस्सा बढ़ेगा। इसके लिए भारत को धीरे-धीरे और सावधानी के साथ डी-डॉलराइजेशन का कदम लेना होगा। अगर भारत और रूस के बीच रूबल और रुपए में ट्रेड होता है। तो भारत को फायदा होगा। लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान हमने दिखा है कि भारत ने रुपए में रूस से क्रूड ऑयल खरीदा लेकिन कुछ समय बाद रूस को घाटा होने लगा क्योंकि उसके पास बहुत ज्यादा रुपया इकट्ठा हो गया। जिसका वो कहीं इस्तेमाल नहीं कर पा रहा था। दरअसल रूस से भारत इम्पोर्ट ज्यादा करता है। और एक्सपोर्ट कम।
भारत ये नहीं चाहेगा कि BRICS देशों में चीन के युआन का महत्व बढ़े और उसे सभी देश स्वीकार करें क्योंकि भारत का चीन की करेंसी में विश्वास नहीं है।
नए देशों के शामिल होने से कितना बदलाव होगा
BRICS में नए देशों के शामिल होने से इसकी ताकत बढ़ी है। UAE, ईरान इजिप्ट इथियोपिया के जुड़ने BRICS देशों का बाजार बढ़ा है। UAE जैसी तेज गति से बढ़ती अर्थव्यस्था इससे जुड़ी है जिसकी ग्लोबल निर्यात क्षमता 2% से भी अधिक है। इन देशों के साथ आने से BRICS के कुल लैंड एरिया और जनसंख्या में बढ़ोतरी हुई है। साथ ही इस संगठन की संयुक्त सैन्य क्षमता में भी इजाफा हुआ है। हालांकि, BRICS कोई सैन्य संगठन नहीं है।
हालांकि भारत इसके विस्तार को लेकर हिचकिचाता रहा है। इसकी प्रमुख वजह ये है कि इसका सदस्य बनने का नियम अभी तय नहीं हुआ है। फिलहाल BRICS में जो देश हैं उनका बड़ा आधार अर्थव्यवस्था है। ऐसे में बड़ा सवाल है कि नए सदस्यों को इकोनॉमी के आधार पर शामिल किया जाए या जियोग्राफी के आधार पर।
34 देशों ने ब्रिक्स में शामिल होने की इच्छा जताई
BRICS समिट से पहले 18 अक्टूबर को रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने बताया कि 34 देशों ने ब्रिक्स में शामिल होने की इच्छा जताई है। इससे पहले पिछले साल भी लगभग 40 देश इसमें शामिल होने की इच्छा जता चुके हैं।