Fahmi Badayuni Death: शायरी के बादशाह ने ली अंतिम सांस: सोशल मीडिया पर कई शायरियां होती थी वायरल
72 वर्ष की आयु में मशहूर अंतरराष्ट्रीय शायर फहमी बदायूंनी ने अंतिम सांस ली। उन्होंने कल बिसौली में स्थित अपने घर पर अंतिम सांस ली। वह लंबे समय से बीमारी से जूझ रहे थे। आज उन का अंतिम संस्कार किया जाएगा। शोक की इस घड़ी में उनके चाहने वाले उन्हें अपनी यादों में जिंदा रखेंगे।
4 जनवरी 1952 को बिसौली कस्बे में मोहल्ला पठान टोला में जन्मे पुत्तन खां फहमी ने पढ़ाई करने के बाद पहले लेखपाल की नौकरी की लेकिन नौकरी में उनका दिल नहीं लगा। इसके बाद 80 के दशक में शायरी में कदम रखा। पहले बिसौली व आसपास के मुशायरों में भाग लिया।
शेरो-शायरी के मंचों पर भी फहमी साहब काफी लोकप्रिय थे। अपनी खास अदा में जब वह शेर पढ़ते तो सुनने वाले मंत्रमुग्ध हो जाते थे। कहा जाता है कि फहमी बदायूंनी की शायरी उर्दू साहित्य की नई नस्ल के लिए जमीन तैयार करने वाली शायरी है, जिस पर आने वाले समय में युवा शायरों की अच्छी-खासी आबादी गजल कहेगी। फहमी बदायूंनी के निधन के बाद उन्हें चाहने वाले उन्हीं के शेरों के जरिए उन्हें याद कर रहे हैं।
उन की एक मसूर शायरी है ……..
मर गया हम को डांटने वाला, अब शरारत में जी नहीं लगता …, दिल से साबित करो जिंदा हो, सांस लेना कोई सबूत नहीं…। पूछ लेते वो बस मिज़ाज मिरा कितना आसान था इलाज मिरा…परेशांन है वो झूटा इश्क कर के वफा करने की नौबत आ गई है…और काश वो रास्ते में मिल जाए मुझ को मुंह फेर कर गुजरना है…
उनकी शायरी सरलता और गहराई का संगम थी। जो हर वर्ग के लोगों को अपनी ओर खींचती थी। उनके निधन पर उर्दू साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई है। फहमी बदायूंनी की कविताओं और शायरी में आम बोलचाल की भाषा में गहरी भावनाएं व्यक्त होती थीं।
इमरान प्रतापगढ़ी ने जताया शोक
फहमी बदायूंनी के निधन पर कांग्रेस नेता और शायर इमरान प्रतापगढ़ी ने भी शोक व्यक्त किया। उन्होंने एक्स पर लिखा, “अलविदा फहमी बदायूंनी साहब, आपका जाना उर्दू अदब का बड़ा नुकसान है।” फहमी बदायूंनी का जन्म 4 जनवरी 1952 को बदायूं जिले के बिसौली में हुआ था। उनकी जिंदगी संघर्षों से भरी रही जिसमें उन्होंने लेखपाल की नौकरी करते हुए भी अपनी शायरी जारी रखी। लेकिन जल्द ही उन्होंने नौकरी छोड़ दी और पूरी तरह से शायरी को समर्पित कर दिया।
सोशल मीडिया पर वायरल होती रही शायरी
फहमी बदायूंनी की रचनाएँ सोशल मीडिया पर भी काफी वायरल हुईं। उनके शेर जो छोटी-छोटी पंक्तियों में गहरी भावनाएँ व्यक्त करते थे। ने उन्हें युवाओं के बीच भी लोकप्रिय बना दिया। उनके शेरों में ऐसी सादगी थी जो हर किसी के दिल को छू जाती थी। खासकर उनके ये शेर हमेशा याद किए जाते रहेंगे: “पूछ लेते वो बस मिजाज मिरा, कितना आसान था इलाज मिरा।”
उर्दू साहित्य में हमेशा जिंदा रहेगा योगदान
फहमी बदायूंनी का योगदान उर्दू साहित्य में सदैव याद रखा जाएगा। उनकी शायरी ने उर्दू अदब को एक नई दिशा दी और आने वाली पीढ़ियां उनकी गज़लों पर अपनी रचनाएं लिखेंगी। उनके निधन से उर्दू साहित्य जगत को जो नुकसान हुआ है। उसकी भरपाई संभव नहीं है।
साहित्य की दुनिया में उर्दू को अदब का बड़ा स्तंभ माना जाता है। प्रतिष्ठित उर्दू को मुकम्मल करने में शायरी और नज़्मों का बड़ा योगदान रहा है। शायरी में दिल से निकलने वाले अल्फ़ाज़ गुलशन के ऐसे फूल हैं। जो हमेशा रूह और सांसों की खुश्बूओं के साथ महकते रहेंगे।
उन की शायरीयो के माध्यम से उन को हमेशा याद किया जाऐगा।