Bihar update : बिहार में बाढ़ के लिए क्या नेपाल और चीन जिम्मेदार हैं? कितनी हुई तबाही ? बाढ़ का पानी पीकर जी रहे लोग
29 सितंबर 2024 की सुबह बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के कटौझा घाट पर बागमती नदी खतरे के निशान के करीब थी। दोपहर बाद अचानक जलस्तर तेजी से बढ़ने लगा। इसकी मुख्य वजह नेपाल के कोसी बैराज से छोड़ा जाने वाला पानी था।
बसघटा गांव की ललिता देवी बताती हैं कि देर रात उनके घर में 6 फीट तक पानी भर गया। सड़कें डूब गईं। जिनके पास पक्की छत है, उन्होंने परिवार के साथ चढ़कर जान बचाई। जबकि कच्चे घरों वाले लोग गांव के बाहर किसी ऊंचे स्थान पर जाने के लिए मजबूर हुए। बीते 3 दिनों से ललिता अपने बच्चे और परिवार के साथ रूखा-सूखा खाकर और बाढ़ का पानी पीकर जी रही हैं।
आखिरकार बाढ़ का जिम्मेदार कौन है ?
नेपाल के मौसम विज्ञान विभाग के प्रमुख जगदीश्वर कर्माचार्य ने चीन को बाढ़ के लिए जिम्मेदार बताते हुए कहा था, ‘चीनी सरकार ने हिमनद झीलों और ग्लेशियर फटने से नेपाल में आने वाली बाढ़ को लेकर नेपाल सरकार को जरूरी जानकारी नहीं दी। नेपाल में तिब्बत के ग्लेशियरों से बाढ़ आ सकती है, लेकिन इन खतरों को जानते हुए भी चीन जरूरी डेटा नहीं शेयर कर रहा है।’
‘बागमती की सद्गति!’ किताब के लेखक प्रोफेसर दिनेश कुमार मिश्रा के मुताबिक तिब्बत का पानी सीधे बिहार, UP और असम जैसे राज्यों में पहुंचता है। चीन ने तिब्बत के 8 शहरों बायू, जिशि, लांग्टा, दाप्का, नांग, डेमो, नाम्चा और मेतोक में बड़े-बड़े डैम बनाए हैं।
क्या कहा नेपाल के अधकारीयो ने
नेपाल के अधिकारियों का भी कहना है कि रियल टाइम डेटा शेयर नहीं करने की वजह से जैसे ही ग्लेशियर पिघलने लगता है या तेज बारिश होती है, बिहार और नेपाल में आपदा की स्थिति हो जाती है। हालांकि इस वक्त नेपाल और बिहार में तेज बारिश होने और कोसी बैराज से ज्यादा पानी छोड़ने की वजह से 13 जिलों में बाढ़ आई है।
आखिर बिहार में क्यों हर साल बाढ़ आती है?
गंगा-ब्रह्मपुत्र बेसिन पर बसे होने की वजह से बिहार का लगभग 73% क्षेत्र बाढ़ प्रभावित है। बाढ़ पर रिसर्च करने वाले प्रोफेसर दिनेश कुमार मिश्रा के मुताबिक बिहार में ज्यादा बाढ़ आने की तीन प्रमुख वजहें हैं…
1 बिहार हिमालय के तटीय इलाकों में बसा है। नेपाल और तिब्बत से निकलने वाली नदियों की वजह से पानी आना स्वाभाविक है, यह नेचुरल प्रोसेस है।
2. बड़े-बड़े डैम: तेज बहने वाली नदियों के दायरे को तटबंध, बांध, बैराज ने सीमित कर दिया, जिससे फायदे के बजाय नुकसान ज्यादा हुआ। तटबंधों के बनने से नदियों व लोगों के बीच एक दीवार खड़ी हो गई। जब पहाड़ से ज्यादा पानी इन नदियों में आता है तो दबाव से डैम टूटने का डर रहता है। इन बांधों के टूटने से आसपास के इलाके में बाढ़ आ जाती है। 1976 में कोसी बैराज टूटने से बिहार में 5 लाख से ज्यादा घर बाढ़ में डूब गए थे। इसी तरह 2008 में कुशहा बांध टूटने से 550 लोगों की मौत हुई।
3. बांध बनने से नदियों में ज्यादा गाद जमा होना: उत्तरी बिहार में नेपाल की ओर से आने वाली ज्यादातर नदियां पहाड़ से सतह की ओर आती हैं। इसलिए वो अपने साथ काफी मात्रा में गाद लाती हैं। नदी में जगह-जगह पर बने तटबंधों के कारण ये गाद इकट्ठा हो जाती है। इससे नदी का लेवल ऊपर उठता चला जाता है। इसका परिणाम यह हुआ है कि पानी को नदी से होकर बहने का रास्ता नहीं मिलता है। जिस पानी को समुद्र में जाना चाहिए, वह पानी गांवों में जाता है और बाढ़ का रूप लेता है।
क्या बिहार में बाढ़ रोकने का क्या कोई तरीका नहीं है?
प्रोफेसर दिनेश कुमार मिश्रा के मुताबिक 3 तरह से बिहार में आने वाले बाढ़ को रोका जा सकता है। पूरी ताकत से नदी की धार को रोककर: बाढ़ पर काबू के लिए बिहार में लंबे समय से नदियों पर बांध और डैम बनाए जा रहे हैं। 1953 में नेपाल के पानी से बिहार की बाढ़ को रोकने के लिए सरकार ने कोसी पर डैम बनाने का फैसला किया। उस समय PM पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कोसी बैराज योजना की शुरुआत की। उन्होंने इस परियोजना के शिलान्यास के समय कहा था कि अगले 15 सालों में बिहार की बाढ़ की समस्या पर काबू पा लिया जाएगा।
1965 में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने कोसी बैराज का उद्घाटन किया था। वीरपुर में बैराज बनाकर नेपाल से आने वाली सप्तकोसी के पानी को एक कर दिया गया और बिहार में तटबंध बनाकर नदियों को मोड़ दिया गया, लेकिन बाढ़ की समस्या से निजात नहीं मिली।
बिहार को बाढ़ से बचाने के लिए सरकार क्या कर रही है?
: बिहार में बाढ़ को रोकने के लिए राज्य सरकार और भारत सरकार ने कई कदम उठाए है। कोसी मेची नदी जोड़ योजना: इस योजना के जरिए कोसी को महानंदा की सहायक नदी मेची से जोड़ा जाएगा। इस योजना के तहत 117 किलोमीटर लंबी नहर बनने से सीमांचल के 4 जिलों अररिया, पूर्णिया, किशनगंज और कटिहार को बाढ़ से राहत मिलेगी
कोसी मेची नदी जोड़ योजना
इस योजना के जरिए कोसी को महानंदा की सहायक नदी मेची से जोड़ा जाएगा। इस योजना के तहत 117 साथ ही 2 लाख हेक्टेयर से ज्यादा जमीन की सिंचाई हो सकेगी। हालांकि यह योजना अभी अधूरी है। राज्य सरकार इस योजना पर केंद्र की अनुमति चाहती है, अगर ऐसा हुआ तो 90% पैसा केंद्र सरकार खर्च करेगी। जबकि 10% पैसा राज्य सरकार को खर्च करना होगा
नदी के किनारे मजबूत तटबंध बनाकर बाढ़ रोकने की कोशिश: 2017 तक लगभग 5287 किलोमीटर तटबंधों का निर्माण किया गया। 2018 में बाढ़ सुरक्षा पर 1 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च किए गए। हालांकि, कोसी बाढ़ पर 2008 की रिपोर्ट के अनुसार तटबंधों के कारण नदियों की धारा अवरुद्ध हो गई है, जिससे नदियों को अपना नैचुरल रास्ता बदलने पर मजबूर होना पड़ा है और बाढ़ प्रभावित भूमि 2.5 मिलियन हेक्टेयर से बढ़कर 2004 तक 6.89 मिलियन हेक्टेयर हो गई है।
बिहार इम्बैंकमेंट एसेट मैनेजमेंट सिस्टम यानी BEAMS की शुरुआत: बिहार के नदियों और डैम में जमा पानी का सही और रियल टाइम डेटा जानने के लिए BEAMS की शुरुआत की गई है। इससे बाढ़ को कंट्रोल करना आसान होगा। बिहार जल विभाग के इंजीनियरों को इसके लिए ट्रेनिंग दी जा रही है।
हर साल बाढ़ से बिहार में कितना होता है नुकसान
2007 से 2019 तक बिहार में बाढ़ की वजह से 600 मिलियन डॉलर यानी 5 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की संपत्ति का नुकसान हुआ है। साथ ही साथ इससे 1 करोड़ लोग प्रभावित हुए।
इतना पैसा खर्च करने के बाद भी सरकार बाढ़ को क्यों नहीं रोक सकती सरकार
बिहार की बाढ़ पर ‘बोया पेड़ बबूल का’ किताब लिखने वाले दिनेश मिश्र के मुताबिक बिहार सरकार बाढ़ पर औसतन सालाना 4.7 हजार करोड़ खर्च कर रही है। इसके अलावा केंद्र सरकार भी बिहार और दूसरे बाढ़ प्रभावित राज्यों को रिलीफ फंड जारी करती है। इसके बावजूद बिहार में बाढ़ नहीं थमने की 3 मुख्य वजहें हैं…
1. सरकार बाढ़ रोकने से ज्यादा बाढ़ के बाद रिलीफ पर काम करती है: सरकारी बजट का 60% से ज्यादा हिस्सा बाढ़ के बाद रिलीफ फंड के तौर पर जारी होता है। सरकार बाढ़ को रोकने पर कम और डैमेज कंट्रोल करने पर ज्यादा जोर देती है।
उदाहरण के लिए वित्तीय वर्ष 2023-24 में बिहार सरकार ने नदी प्रबंधन और बाढ़ नियंत्रण के लिए 5947 करोड़ रुपए खर्च किए। इसमें से 3980 करोड़ रुपए बाढ़ पीड़ितों को मुआवजे के रूप में दिया गया था। इसके अलावा सरकारी खजाने का पैसा राहत सामग्री पर भी खर्च हुआ।
2. भ्रष्टाचार: बिहार में पिछले 24 घंटे में बाढ़ से 7 तटबंध टूटने की खबर आ रही है। इनमें दरभंगा के किरतपुर में कोसी नदी पर बना पश्चिमी तटबंध और सीतामढ़ी में बागमती नदी बना तटबंध शामिल है। सोमवार काे नेपाल से ज्यादा पानी आने के कारण चंपारण में पीड़ी रिंग बांध टूट गया। इनमें से ज्यादातर बांध सरकारी निगरानी के अभाव में टूटे हैं। बिहार में बाढ़ के नाम आने वाले पैसों का बड़ा हिस्सा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ता है, जिसके कारण बिहार में बाढ़ आम बात हो गई है।
3. डिजास्टर मैनेजमेंट सिस्टम में मॉडर्न टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल: ओडिशा में 1999 में सुपर साइक्लोन आया था। इस तूफान में 10 हजार से भी ज्यादा लोगों की जान चली गई थी। इसके बाद ओडिशा ने अपने डिजास्टर मैनेजमेंट सिस्टम को मजबूत बनाने पर काम करना शुरू किया।
ओडिशा ने तूफानों से निपटने के लिए कन्वेंशनल और मॉडर्न तरीकों का एक हाइब्रिड मॉडल अपनाया है। इसके तहत ओडिशा ने गांव-गांव में एक लाख से ज्यादा वॉलंटियर्स बनाए। इन्हें आपदा से निपटने के लिए और राहत कार्य के लिए प्रशिक्षित किया गया।
विशेष टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके 870 साइक्लोन शेल्टर हाउस बनाए गए हैं। प्रत्येक शेल्टर हाउस में 1000 लोग रह सकते हैं। इस मैनेजमेंट सिस्टम में सबसे जरूरी 2018 में बनाया गया अर्ली वॉर्निंग सिस्टम है।
ओडिशा आपदा आने से पहले लोगों को वॉर्निंग देने के लिए मॉडर्न सिस्टम बनाने वाला पहला राज्य है। इससे समुद्री किनारे पर बसे 1200 से ज्यादा गांवों में तूफान और सुनामी आने से पहले सायरन और मैसेज के जरिए वॉर्निंग दी जाती है। इन्हीं सब प्रयासों के चलते 2019 में ताकतवर फानी साइक्लोन में ओडिशा में महज 64 लोगों की मौत हो गयी|