इंदौर में नेट बैंकिंग ठगी: खाता खुलते ही गायब हुए ₹1 लाख, पुलिस ने IT Act के तहत दर्ज किया मामला
इंदौर के योगेन्द्र जादौन के बैंक ऑफ बड़ौदा खाते से नेट बैंकिंग शुरू होते ही ₹1 लाख ठगी। साइबर सेल ने UPI ऐप से ट्रांजेक्शन की पुष्टि की। लसूड़िया पुलिस ने आईटी एक्ट व धोखाधड़ी की धाराओं में केस दर्ज कर तकनीकी जांच शुरू की।
इंदौर: नेट बैंकिंग सक्रिय करने के कुछ घंटों के भीतर ही खाते से गायब हुए एक लाख रुपए, साइबर ठगी का नया तरीका सामने
इंदौर में एक युवक को नेट बैंकिंग सुविधा शुरू कराने की साधारण प्रक्रिया ने भारी पड़ गई। सेवा सक्रिय होने के महज कुछ घंटों के भीतर ही उसके बैंक खाते से लगभग एक लाख रुपए की रकम गायब हो गई। यह घटना डिजिटल बैंकिंग के इस्तेमाल के दौरान बरती जाने वाली सावधानियों पर एक बड़ा सवाल खड़ा करती है। लसूड़िया पुलिस ने साइबर सेल की तकनीकी जांच के बाद इस मामले में आईटी एक्ट और धोखाधड़ी के मुकदमे दर्ज करके जांच शुरू कर दी है।
कैसे हुई घटना? नेट बैंकिंग एक्टिवेशन बना निशाना

मामला अगस्त 2025 का है। स्कीम नंबर 114 निवासी योगेन्द्र जादौन ने 30 अगस्त को अपने बैंक ऑफ बड़ौदा के खाते के लिए नेट बैंकिंग की सुविधा शुरू कराई। उनकी योजना ऑनलाइन लेनदेन शुरू करने की थी, लेकिन उन्होंने अभी तक कोई यूपीआई ऐप (जैसे पेटीएम, गूगल पे, फोनपे) भी डाउनलोड नहीं किया था। उसी दिन की रात, यानी नेट बैंकिंग एक्टिव होने के तुरंत बाद, उनके खाते से पैसे निकलने लगे।
इस परेशानी को भांपते हुए योगेन्द्र ने तुरंत राष्ट्रीय साइबर हेल्पलाइन 1930 पर शिकायत दर्ज करा दी। लेकिन, जब तक इस शिकायत पर कोई ठोस कार्रवाई होती, तब तक देर हो चुकी थी। 1 से 3 सितंबर के बीच, उनके खाते से फिर कई किस्तों में रकम निकाली गई। कुल मिलाकर पांच दिन के अंदर करीब एक लाख रुपए की धोखाधड़ी हो गई।
पीड़ित का दावा: “मैंने तो यूपीआई ऐप डाउनलोड ही नहीं किया था!”
धोखाधड़ी की पुष्टि होने के बाद योगेन्द्र जादौन ने इंदौर साइबर सेल का रुख किया। साइबर अपराध विशेषज्ञों ने मामले की तकनीकी जांच शुरू की। जांच में पता चला कि पैसे यूपीआई ऐप्लिकेशन के जरिए ही ट्रांसफर किए गए थे। यह बात पीड़ित के लिए और भी चौंकाने वाली थी, क्योंकि उनका कहना था कि उन्होंने खुद कभी कोई यूपीआई ऐप इंस्टॉल ही नहीं किया था।
योगेन्द्र ने हैरानी जताते हुए कहा, “मैंने तो अभी तक किसी यूपीआई ऐप को डाउनलोड ही नहीं किया था। मैं सिर्फ नेट बैंकिंग शुरू कराने बैंक गया था। अगर मेरे पास ऐप नहीं था, तो मेरे खाते से पैसे कैसे ट्रांसफर हुए?” यह सवाल जांच का केंद्रीय बिंदु बन गया।
पुलिस ने दर्ज किया एफआईआर, तकनीकी साक्ष्यों से पकड़े जाएंगे आरोपी
साइबर सेल ने अपनी प्रारंभिक तकनीकी रिपोर्ट तैयार करके मामला लसूड़िया पुलिस थाने को सौंप दिया है। पुलिस ने अज्ञात आरोपियों के खिलाफ आईटी अधिनियम और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धोखाधड़ी और विश्वास के साथ खिलवाड़ से संबंधित धाराओं में प्रकरण दर्ज किया है।
लसूड़िया पुलिस के एक अधिकारी ने बताया, “हमारी जांच शुरू हो चुकी है। हम बैंक से सभी संदिग्ध लेनदेन का विवरण ले रहे हैं। साइबर सेल की रिपोर्ट में ट्रांजेक्शन के डिजिटल निशान (डिजिटल फुटप्रिंट) शामिल हैं, जैसे कि किस आईपी एड्रेस और डिवाइस से लेनदेन हुए। इन तकनीकी साक्ष्यों के आधार पर ही आरोपियों की पहचान की जाएगी और उन्हें गिरफ्तार किया जाएगा।”
विशेषज्ञ बताते हैं संभावित तरीका: ‘ओटीपी’ या ‘क्रेडेंशियल’ हैकिंग
साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, इस तरह की घटनाएं आमतौर पर कुछ खास तरीकों से अंजाम दी जाती हैं:
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फिशिंग कॉल/एसएमएस: आरोपी पीड़ित को बैंक प्रतिनिधि होने का नाटक करके फोन कर सकते हैं और नेट बैंकिंग एक्टिवेशन के बहाने उनका यूजर आईडी, पासवर्ड या वन-टाइम पासवर्ड (ओटीपी) हासिल कर सकते हैं।
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मैलवेयर अटैक: पीड़ित के मोबाइल में कोई दुर्भावनापूर्ण ऐप या लिंक के जरिए स्पाइवेयर इंस्टॉल हो सकता है, जो उसकी कीस्ट्रोक्स (की-लॉगर) या स्क्रीन की जानकारी चुरा लेता है।
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सिम स्वैप फ्रॉड: ठग पीड़ित के मोबाइल नंबर की डुप्लिकेट सिम प्राप्त करके उसके ओटीपी पर कब्जा कर सकते हैं, जिससे वे किसी भी दूसरे डिवाइस पर यूपीआई ऐप रजिस्टर कर सकते हैं।
सावधानी ही बचाव: पुलिस की सलाह
इंदौर पुलिस और साइबर सेल ने नागरिकों से अपील की है कि वे ऑनलाइन लेनदेन में इन बातों का ध्यान रखें:
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कभी भी किसी को अपना ओटीपी, नेट बैंकिंग पासवर्ड या सीवीवी नंबर न बताएं, चाहे वह व्यक्ति खुद को बैंक अधिकारी ही क्यों न बताए।
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अज्ञात नंबर या ईमेल से आए लिंक पर क्लिक न करें।
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बैंकिंग ऐप्स केवल ऑफिसियल ऐप स्टोर (गूगल प्ले स्टोर, एप्पल ऐप स्टोर) से ही डाउनलोड करें।
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खाते में होने वाली हर ट्रांजेक्शन पर एसएमएस अलर्ट सक्रिय रखें।
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संदेह होने पर तुरंत 1930 पर कॉल करें और बैंक से खाता ब्लॉक करवाएं।
यह मामला एक बार फिर यह साबित करता है कि साइबर ठग नए-नए तरीकों से लोगों को फंसा रहे हैं। पुलिस का कहना है कि तकनीकी साक्ष्यों की मदद से जल्द ही इस केस को सुलझाया जाएगा और आरोपियों को सजा दिलाई जाएगी।

