Rajasthan News: न छात्रों का नामांकन, न पढ़ाई: सरकारी स्कूल में सिर्फ कुर्सी तोड़ रहे शिक्षक
राजस्थान के दौसा जिले की गीजगढ़ ग्राम पंचायत में स्थित एक सरकारी प्राइमरी स्कूल में चार महीने से नया सत्र शुरू हो चुका है, लेकिन अब तक एक भी बच्चे का दाखिला नहीं हुआ है।

राजस्थान के दौसा जिले में स्थित एक सरकारी प्राइमरी स्कूल इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। सिकराय उपखंड के गीजगढ़ ग्राम पंचायत में स्थित इस स्कूल में नया शिक्षा सत्र शुरू हुए चार महीने बीत चुके हैं, लेकिन आज तक एक भी बच्चे ने स्कूल में दाखिला नहीं लिया है। इसके बावजूद स्कूल में दो शिक्षक—एक हेडमास्टर और एक अध्यापक—नियमित रूप से तैनात हैं।
शिक्षक मौजूद, पर पढ़ाने को कोई नहीं
स्कूल में दो शिक्षक तैनात हैं। लेकिन एक भी छात्र न होने के कारण वे पूरे दिन स्कूल में बिना किसी शैक्षणिक कार्य के समय बिताते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि शिक्षक बच्चों को जोड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहे।
मिड-डे मील, वेतन और संचालन पर लाखों खर्च
हालांकि स्कूल में कोई बच्चा नहीं है, फिर भी यहां शिक्षकों के वेतन, मिड-डे मील, सहायिका और सफाईकर्मी जैसी व्यवस्थाओं पर सरकार की ओर से लाखों रुपये खर्च किए जा रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि यह पैसा बिना उपयोग के बर्बाद हो रहा है।
2024 में स्कूल में बच्चों की संख्या 2 थी
गीजगढ़ ग्राम पंचायत में स्कूल पर किया जा रहा ये पूरा खर्च सिर्फ बर्बाद हो रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि यहां बच्चे पहले से ही नहीं है और शिक्षक बच्चों की संख्या बढ़ाने में दिलचस्पी दिखाते भी नजर नहीं आते। गांव वालों ने बताया कि कुछ साल पहले तक स्कूल में बच्चे आते थे। साल 2022 में स्कूल में छह बच्चे थे। साल 2023 में यह संख्या बढ़ी और सात हो गई। लेकिन 2024 में स्कूल में बच्चों की संख्या दो गई।
प्रिंसिपल की सफाई और प्रशासन की चेतावनी
स्कूल के प्रिंसिपल का कहना है कि उन्होंने आसपास की ढाणियों में कई बार सर्वे कर बच्चों को जोड़ने का प्रयास किया, लेकिन अभिभावकों ने अपने बच्चों को निजी या अन्य सरकारी स्कूलों में भेजना पसंद किया।
अभिभावकों का तर्क है कि केवल दो बच्चों की कक्षा में पढ़ाई का माहौल नहीं बनता, इसलिए उन्होंने नाम कटवा दिए।
इस पर ब्लॉक शिक्षा अधिकारी (BEO) ने बताया कि ‘शून्य दर्ज संख्या’ को लेकर स्कूल प्रिंसिपल को दो बार नोटिस जारी किए जा चुके हैं। गांव वालों का कहना है कि यदि शिक्षक बच्चों को लाने की ईमानदारी से कोशिश करते, तो स्थिति कुछ और होती। आज सरकारी स्कूल केवल तनख्वाह उठाने और कुर्सियां तोड़ने का केंद्र बनकर रह गए हैं।

