Udaipur News: अब अंधेरा ही इनकी दुनिया: उदयपुर के एक परिवार के 7 बच्चों की आंखों की रोशनी खो गई
राजस्थान के उदयपुर जिले के लीलावास गांव में एक ही परिवार के सात बच्चे धीरे-धीरे दृष्टिबाधित हो गए हैं. डॉक्टरों ने माना कि शुरुआती दिनों में यदि सही इलाज हुआ होता तो बच्चों की स्थिति आज इतनी गंभीर नहीं होती.

उदयपुर के एक गरीब परिवार की कहानी दर्दनाक है, जहाँ सातों बच्चे अपनी आंखों की रोशनी लगभग खो चुके हैं। परिवार के पिता भंवरलाल मजदूरी करते हैं और परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर है। किसी भी सदस्य ने शिक्षा प्राप्त नहीं की है। बच्चों के जन्म के शुरुआती दो-तीन महीनों में ही माता-पिता ने उनकी आंखों में समस्या महसूस की, लेकिन इलाज के बजाय वे अंधविश्वास की ओर चले गए। देवी-देवताओं के दरबार में जाकर चांदी की आंख चढ़ाई गई और चमत्कार की उम्मीद की गई, लेकिन समय रहते सही इलाज न मिलने के कारण बच्चों की हालत खराब होती चली गई।
सातों बच्चों — विक्रम (4), खुशी (5), आशिक (7), पुष्कर (8), काजल (15), पायल (18) और पूजा (20) — पूरी तरह अंधकार में डूब गए। यदि शुरुआत में ही उचित इलाज होता तो शायद आज उनकी स्थिति इतनी गंभीर नहीं होती।
हाल ही में गायत्री सेवा संस्थान के प्रमुख शैलेंद्र पंड्या अपनी टीम के साथ इस गांव पहुंचे और उन्होंने परिवार को समझाया। इसके बाद बच्चों को उदयपुर के एमबी अस्पताल ले जाकर जांच करवाई गई। डॉक्टरों ने माना कि शुरुआती समय में सही इलाज होता तो यह स्थिति टली जा सकती थी। हालांकि अभी जांच प्रक्रिया जारी है और संभव है कि कोई दुर्लभ बीमारी हो।
शैलेंद्र पंड्या ने बताया कि यह कोई एकल घटना नहीं है। झाड़ोल और आसपास के कई गांवों में ऐसे परिवार हैं, जो गरीबी, अशिक्षा और प्रशासनिक उपेक्षा के कारण गंभीर बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। सबसे चिंताजनक बात यह है कि इस परिवार के सातों बच्चों की आंखों की रोशनी लगभग खत्म हो चुकी है। माता-पिता अब बस यही उम्मीद लगाए हुए हैं कि थोड़ी सी भी सुधार हो और बच्चे अपना भविष्य संवार सकें।
स्थानीय लोग कहते हैं कि यह कहानी सिर्फ एक परिवार की नहीं, बल्कि पूरे स्वास्थ्य तंत्र पर गंभीर सवाल खड़े करती है। जब सरकार स्वास्थ्य सुविधाओं और योजनाओं की बड़ी-बड़ी घोषणाएं करती है, तब भी ऐसे दुखद मामले सामने आते हैं। सवाल यह उठता है कि आखिर स्वास्थ्य सेवाएं उन तक क्यों नहीं पहुंच पातीं जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है?
उदयपुर के इस परिवार की पीड़ा हमें सोचने पर मजबूर करती है कि जब तक स्वास्थ्य सुविधाएं गांव-गांव और घर-घर तक ईमानदारी से नहीं पहुंचेंगी, तब तक ऐसे मासूम अंधेरे में ही जीने को मजबूर रहेंगे।

