Delhi Humayun Tomb: हुमायूं के मकबरे में बड़ा हादसा: दरगाह पत्ते शाह की छत गिरी, 11 लोग घायल, रेस्क्यू जारी
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में स्थित ऐतिहासिक हुमायूं के मकबरे के कैंपस में शुक्रवार शाम बड़ा हादसा हो गया। मकबरे परिसर में स्थित दरगाह शरीफ पत्ते शाह के एक कमरे की छत अचानक गिर गई, जिससे अफरा-तफरी मच गई।

हादसा शुक्रवार शाम करीब 4 बजे हुआ। मौके पर मौजूद लोगों ने तुरंत पुलिस और फायर ब्रिगेड को सूचना दी। राहत एवं बचाव कार्य शुरू कर दिया गया है। अब तक 11 लोगों को सुरक्षित बाहर निकालकर अस्पताल भेजा गया है। वहीं, कुछ अन्य लोगों के फंसे होने की आशंका के चलते सर्च ऑपरेशन जारी है।
पहले फैली अफवाह, फिर सामने आई सच्चाई
शुरुआत में यह खबर तेजी से फैली कि हुमायूं के मकबरे का गुंबद गिर गया है, लेकिन बाद में पुलिस और पुरातत्व विभाग ने स्पष्ट किया कि गुंबद नहीं, बल्कि दरगाह पत्ते शाह की एक छत गिरी है, जो मकबरे परिसर के भीतर स्थित है।
प्रत्यक्षदर्शी ने सुनाई घटना की दास्तान
घटना के समय स्थल पर मौजूद प्रत्यक्षदर्शी विशाल कुमार, जो हुमायूं के मकबरे में कार्यरत हैं, ने बताया: “मैं हुमायूं के मकबरे में काम करता हूं। अचानक बहुत जोर की आवाज आई। मेरा सुपरवाइजर दौड़ता हुआ आया। हमने तुरंत लोगों और प्रशासन को बुलाया। धीरे-धीरे फंसे हुए लोगों को बाहर निकाला।”

प्रशासन अलर्ट, घायल अस्पताल में भर्ती
दिल्ली पुलिस, दमकल विभाग और एनडीआरएफ की टीमें मौके पर तैनात हैं। इलाके को सील कर दिया गया है और लोगों की आवाजाही फिलहाल बंद कर दी गई है। अस्पताल प्रशासन के मुताबिक, घायलों की हालत स्थिर बताई जा रही है।
16वीं सदी में बना था हुमांयूं का मकबरा
हुमायूं का मकबरा दिल्ली में 1565-1572 के बीच बनाया गया था। इसे हुमायूं की पत्नी, हाजी बेगम ने बनवाया था। यह मकबरा मुगल स्थापत्य कला का पहला प्रमुख उदाहरण है। इसी से प्रेरणा लेकर ताजमहल जैसे अन्य स्मारकों बनाए गए। इस मकबरे का निर्माण लाल बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर से किया गया है, जो उस समय की उच्च गुणवत्ता वाली सामग्री थी। ये पत्थर टिकाऊ और मौसम प्रतिरोधी होते हैं, जिसने इमारत को सदियों तक संरक्षित रखा। मुगल कारीगरों ने मजबूत नींव और संतुलित संरचना के साथ निर्माण किया। दोहरे गुंबद की तकनीक ने संरचना को स्थिरता दी और भूकंप जैसे प्राकृतिक आपदाओं से बचाने में मदद की। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और अन्य संगठनों द्वारा समय-समय पर किए गए संरक्षण कार्यों ने इसकी मजबूती को बनाए रखा है।

