Jaipur News: जयपुर BJP कार्यकारिणी विवाद: CM भजनलाल शर्मा ने जताई नाराजगी, शहर अध्यक्ष अमित गोयल पर बढ़ा दबाव
जयपुर शहर भाजपा कार्यकारिणी को लेकर चल रहा विवाद अब गंभीर राजनीतिक संकट का रूप ले चुका है। शहर अध्यक्ष अमित गोयल पर मुख्यमंत्री, संघ और पार्टी संगठन तीनों तरफ से दबाव बढ़ता जा रहा है। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने खुलकर नाराज़गी जताई है और सवाल उठाया है कि अगर नाम मुख्यमंत्री कार्यालय (CMO) से नहीं भेजे गए, तो अमित गोयल ने उन नामों को सूची में कैसे शामिल कर लिया।

मुख्यमंत्री ने इस पूरे मामले की जांच के आदेश देते हुए CMO से जुड़े अधिकारियों और संगठन से जुड़े पदाधिकारियों से जवाब-तलब किया है। यह पहली बार है जब एक शहर अध्यक्ष के फैसले ने सीधे मुख्यमंत्री कार्यालय को कठघरे में ला खड़ा किया है, और यह सख्ती अमित गोयल के लिए भारी पड़ सकती है। दूसरी ओर, संघ ने भी अपने स्तर से दूरी बना ली है। एक वरिष्ठ संघ पदाधिकारी ने स्पष्ट किया है कि संघ कभी किसी राजनीतिक नियुक्ति में नाम की सिफारिश नहीं करता, ऐसे में गोयल द्वारा संघ के नाम का उपयोग करना एक गंभीर चूक है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
उन्होंने कहा कि एक वरिष्ठ और अनुभवी नेता से यह अपेक्षा नहीं थी कि वह संगठन के नाम का राजनीतिक लाभ के लिए प्रयोग करे। इस बयान ने गोयल की स्थिति को और कमजोर कर दिया है। तीसरा प्रहार प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ की ओर से आया, जब शनिवार को गोयल अपनी टीम के कुछ सदस्यों के साथ प्रदेश कार्यालय पहुंचे। सूत्रों के अनुसार, राठौड़ ने तीखे शब्दों में फटकार लगाते हुए कहा कि गोयल ने पार्टी की साख को संकट में डाल दिया है, और यह स्थिति अब बर्दाश्त के बाहर है। उन्होंने यहां तक कह दिया कि आज तक किसी शहर अध्यक्ष ने इस स्तर पर संगठन की प्रतिष्ठा को नुकसान नहीं पहुँचाया। इसी दिन कई कार्यकर्ता भी प्रदेश कार्यालय पहुंचे और खुले तौर पर विरोध जताया।
कार्यकर्ताओं का कहना था कि इस कार्यकारिणी में निष्ठावान, संघर्षशील और ज़मीनी कार्यकर्ताओं को पूरी तरह नजरअंदाज़ कर दिया गया है, और सिर्फ सिफारिशी और चहेते लोगों को जगह दी गई है। उनका यह भी कहना था कि कार्यकारिणी कार्यकर्ताओं की नहीं, सिफारिशी चिट्ठियों की दुकान बन गई है। इस तरह अमित गोयल अब सरकार, संगठन और कार्यकर्ताओं तीनों से कटते जा रहे हैं, और उनकी राजनीतिक साख पर सवालिया निशान लग चुका है। इस पूरे घटनाक्रम के बाद अब अमित गोयल ने दिल्ली दरबार का रुख किया है।
सूत्र बताते हैं कि उन्होंने पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व से संपर्क साधा है और यह उम्मीद जताई है कि उन्हें मुख्यमंत्री और प्रदेशाध्यक्ष की नाराज़गी से राहत दिलाने में सिर्फ दिल्ली ही मदद कर सकती है। सवाल यह उठता है कि क्या भाजपा का शीर्ष नेतृत्व प्रदेश नेतृत्व के फैसले का सम्मान करेगा या एक नेता के आत्मसम्मान की आड़ में संगठन की मर्यादा को नजरअंदाज किया जाएगा।
यह केवल अमित गोयल का मामला नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश में भाजपा की साख और संगठनात्मक अनुशासन का इम्तिहान है। मुख्यमंत्री की सख्ती, संघ की नाराज़गी, प्रदेशाध्यक्ष की फटकार और कार्यकर्ताओं के खुलते मोर्चे के बाद अमित गोयल का दिल्ली जाना दर्शाता है कि वे अब भी पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। लेकिन अब फैसला दिल्ली को करना है कि पार्टी अनुशासन की जीत होगी या सियासी चतुराई बाज़ी मारेगी।

