इस सैटेलाइट को GSLV-F16 रॉकेट के जरिए शाम 5:40 बजे लॉन्च किया गया। यह सैटेलाइट 743 किलोमीटर की ऊंचाई पर सन-सिंक्रोनस कक्षा (Sun-Synchronous Orbit) में स्थापित किया गया है, जिसमें यह लगभग 18 मिनट में पहुंच गया। निसार लगभग 97 मिनट में पृथ्वी का एक चक्कर लगाता है और 12 दिनों में लगभग 1,173 चक्कर लगाकर पृथ्वी की हर इंच जमीन को मैप करेगा।
कितनी है कीमत?
क्या है खास बात?
NISAR सैटेलाइट के खासियत की बात की जाए तो इस सैटेलाइट का वजन 2,392 किलोग्राम है और यह ड्यूल-फ्रीक्वेंसी रडार सिस्टम से लैस है. यह पहला ऐसा सैटेलाइट है जो दो अलग-अलग रडार फ्रीक्वेंसी NASA के L बैंड और ISRO के S बैंड का उपयोग करेगा. इस मिशन का उद्देश्य पृथ्वी की सतह पर होने वाले बदलावों, जैसे भूकंप, ज्वालामुखी, भूस्खलन, ग्लेशियरों की हलचल और जलवायु परिवर्तन को ट्रैक करना है। यह सैटेलाइट हर 12 दिन में पृथ्वी की सतह का हाई-रिजॉल्यूशन नक्शा तैयार करेगा, जो आपदा प्रबंधन, कृषि और जल प्रबंधन में मदद करेगा। नासा ने इस मिशन के लिए L-बैंड रडार, GPS और डेटा रिकॉर्डर उपलब्ध कराए हैं, जबकि इसरो ने S-बैंड रडार, सैटेलाइट बस और लॉन्च सिस्टम का योगदान दिया है. इसरो की हिस्सेदारी इस प्रोजेक्ट में करीब 788 करोड़ रुपये की है।
अबतक का सबसे महंगा मिशन
इसरो के अन्य मिशनों की तुलना में NISAR की लागत कई गुना ज्यादा है. उदाहरण के लिए, इसरो का मंगलयान मिशन, जिसने भारत को मंगल ग्रह तक पहुंचाया, केवल 450 करोड़ रुपये में पूरा हुआ था. वहीं चंद्रयान-3, जिसने चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग की उसकी लागत थी 615 करोड़ रुपये, लेकिन NISAR की लागत करीब 788 करोड़ रुपये की है. निसार की लागत इतनी ज्यादा होने की वजह इसकी अत्याधुनिक तकनीक और नासा के साथ सहयोग है।
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