ISRO Chairman K Kasturirangan Passes Away: इसरो के पूर्व अध्यक्ष डॉ. के. कस्तूरीरंगन का बेंगलुरु में निधन: 27 अप्रैल को रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट में अंतिम दर्शन
इसरो के पूर्व अध्यक्ष कृष्णस्वामी कस्तूरीरंगन का शुक्रवार को बेंगलुरु में निधन हो गया। बेंगलुरु आवास पर उन्होंने 84 साल की आयु में अंतिम सांस ली। सुबह 10 बजे के करीब उनकी मौत हुई।

नका पार्थिव शरीर 27 अप्रैल को रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट (RRI) में अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा। जहां वैज्ञानिक समुदाय, प्रशासनिक अधिकारी और आमजन उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे।
प्रख्यात वैज्ञानिक के कस्तूरीरंगन का जन्म 24 अक्तूबर 1940 को केरल के एर्नाकुलम में हुआ था। उन्होंने लंबे समय तक भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में सेवाएं दीं। वे 1994 से 2003 तक इसरो के चेयरमैन भी रहे। 2003 में इसरो से सेवानिवृत्त होने के बाद कस्तूरीरंगन इंडियन एकेडमी ऑफ साइंसेज के अध्यक्ष बने। इसके साथ ही मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सदस्य बने।
डॉ. कस्तूरीरंगन ने उच्च ऊर्जा एक्स-रे और गामा किरण खगोल विज्ञान के साथ-साथ प्रकाशीय खगोल विज्ञान में अनुसंधान किया। उन्होंने ब्रह्मांडीय एक्स-रे स्रोतों, आकाशीय गामा-किरण और निचले वायुमंडल में ब्रह्मांडीय एक्स-रे के प्रभाव के अध्ययन में व्यापक और महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
मिला था पद्म विभूषण
डॉ. कस्तूरीरंगन को विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए भारत सरकार ने पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित किया था। वे भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी और अन्य कई वैज्ञानिक संस्थानों के सम्मानित सदस्य भी रहे। बेंगलुरु स्थित उनके आवास पर अंतिम दर्शन के लिए वैज्ञानिक समुदाय, प्रशासनिक अधिकारी और आमजन की भीड़ उमड़ पड़ी।
27 अप्रैल को लोग कर सकेंगे अंतिम दर्शन
के. कस्तूरीरंगन नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के मसौदा समिति के अध्यक्ष भी थे। अधिकरियों ने बताया कि आज सुबह उनका निधान हुआ है। 27 अप्रैल को अंतिम दर्शन के लिए उनका पार्थिव शरीर रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट (RRI) में रखा जाएगा।
पीएम मोदी ने जताया दुख
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा- ‘मैं भारत की वैज्ञानिक और शैक्षिक यात्रा में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति डॉ. के. कस्तूरीरंगन के निधन से बहुत दुखी हूं. उनके दूरदर्शी नेतृत्व और राष्ट्र के प्रति निस्वार्थ योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा। उन्होंने इसरो में बहुत मेहनत से काम किया। भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। जिसके लिए हमें वैश्विक मान्यता भी मिली। उनके नेतृत्व में महत्वाकांक्षी उपग्रह प्रक्षेपण भी हुए और नवाचार पर ध्यान केंद्रित किया गया।