Mahashivratri 2025: महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है?: जाने महाशिवरात्रि पर जलाभिषेक का मुहूर्त
शिव आराधना का पर्व महाशिवरात्रि आज देश-प्रदेश में धूमधाम से मनाया जा रहा है। प्रदेश के प्रमुख शिवालयों में सुबह से ही श्रद्धालुओं की लंबी-लंबी कतारें लग रही है। भक्त भगवान भोलेनाथ का दूध, दही, गंगाजल से अभिषेक कर रहे हैं। शिवालयों में हर हर महादेव और ऊं नम: शिवाय के जयकारों से पूरा मंदिर परिसर शिवमय बना हुआ है।

महाशिवरात्रि का अर्थ है ‘शिव की रात‘. महाशिवरात्रि भगवान शिव के प्रति अपनी भक्ति और श्रद्धा प्रकट करने का एक विशेष अवसर माना जाता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर पहली बार भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग में प्रकट हुए थे और इसे महाशिवरात्रि के रूप में मनाया गया।

महाशिवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व
इसके पीछे की कथाओं को छोड़ दें, तो यौगिक परंपराओं में इस दिन का विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि इसमें आध्यात्मिक साधक के लिए बहुत सी संभावनाएँ मौजूद होती हैं। आधुनिक विज्ञान अनेक चरणों से होते हुए। आज उस बिंदु पर आ गया है, जहाँ उन्होंने आपको प्रमाण दे दिया है कि आप जिसे भी जीवन के रूप में जानते हैं। पदार्थ और अस्तित्व के रूप में जानते हैं। जिसे आप ब्रह्माण्ड और तारामंडल के रूप में जानते हैं। वह सब केवल एक ऊर्जा है। जो स्वयं को लाखों-करोड़ों रूपों में प्रकट करती है। यह वैज्ञानिक तथ्य प्रत्येक योगी के लिए एक अनुभव से उपजा सत्य है। ‘योगी’ शब्द से तात्पर्य उस व्यक्ति से है। जिसने अस्तित्व की एकात्मकता को जान लिया है। जब मैं कहता हूँ, ‘योग’ तो मैं किसी विशेष अभ्यास या तंत्र की बात नहीं कर रहा। इस असीम विस्तार को तथा अस्तित्व में एकात्म भाव को जानने की सारी चाह, योग है। महाशिवारात्रि की रात, व्यक्ति को इसी का अनुभव पाने का अवसर देती है।
कब हुआ था शिव विवाह ?
शिव पुराण प्रवक्ता आचार्य मृदुल कांत शास्त्री ने दावा किया है कि शिवरात्रि शिव और पार्वती के विवाह की तिथि नहीं है यह एक गलत परंपरा पिछले कुछ वर्षों से प्रारंभ कर दी गई है। जिसके कारण लगभग पूरे विश्व में हर सनातनी यही मानता है कि महाशिवरात्रि के दिन भगवान शंकर और पार्वती का विवाह हुआ था। इसी उपलक्ष्य में संपूर्ण देश के अलग-अलग स्थान में गांव में विभिन्न मंदिरों में शिव बारात निकाली जाती है। शिव पार्वती के विवाह उत्सव का आयोजन किया जाता है। जो की एक गलत परंपरा बन चुकी है। यह सनातन को अपने मुख्य धारा से भटकने का कुत्सित प्रयास है। आचार्य मृदुलकांत शास्त्री ने शिव महापुराण, श्री लिंग पुराण, श्री स्कंद पुराण आदि पुराणों के प्रमाण देते हुए स्पष्ट किया है कि मार्गशीर्ष के महीने में सोमवार के दिन भगवान शंकर पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था। दूसरी बात मार्गशीर्ष के महीने में ही जब ब्रह्मा और विष्णु का युद्ध हुआ। तब भगवान शंकर उस युद्ध को रोकने के लिए विशाल अग्नि स्तंभ के रूप में प्रकट हो गए थे। जिसका आदि और अंत न ब्रह्मा ने पाया ना भगवान नारायण ने इसी प्रसंग में झूठ बोलने पर भगवान शंकर ने भैरवनाथ को प्रकट किया। जिन्होंने झूठ बोलने वाले ब्रह्मा जी का पांचवा सर धड़ से अलग कर दिया। तब भगवान शंकर ने अपने अग्निस्तंभ के आकार को छोटा करके शिवलिंग के रूप में परिणत कर दिया।
सृष्टि की रचना और शिवलिंग प्रकट होने की कथा
स्कंद पुराण, पद्म पुराण और शिव पुराण में वर्णन है कि महाशिवरात्रि की रात ब्रह्मा, विष्णु और महादेव के बीच सृष्टि के कर्ता को लेकर विवाद हुआ। इस विवाद को सुलझाने के लिए भगवान शिव ने अनंत ज्योतिर्लिंग (अग्निस्तंभ) के रूप में प्रकट होकर अपनी महिमा दर्शाई। तभी से इस दिन को शिवलिंग पूजा का विशेष महत्त्व प्राप्त हुआ।
समुद्र मंथन और नीलकंठ रूप
महाशिवरात्रि का एक अन्य महत्वपूर्ण प्रसंग समुद्र मंथन से जुड़ा हुआ है। जब देवता और असुरों द्वारा समुद्र मंथन किया गया। तब हलाहल विष निकला, जिससे संपूर्ण सृष्टि के नष्ट होने का खतरा उत्पन्न हो गया। भगवान शिव ने इस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया और वे ‘नीलकंठ’ कहलाए। यह घटना महाशिवरात्रि के दिन हुई थी। इसलिए इस दिन को भगवान शिव के त्याग और कल्याणकारी रूप की आराधना के रूप में मनाया जाता है।
जलाभिषेक क्यों किया जाता है?
भगवान शिव को शांति और शीतलता का देवता माना जाता है। जलाभिषेक शिवलिंग पर जल चढ़ाने की परंपरा उन्हें शीतलता प्रदान करने के लिए की जाती है। जलाभिषेक उनके ताप को शीतल करने के लिए किया है।

शिवरात्रि – महीने का सबसे ज्यादा अँधेरे से भरा दिन
शिवरात्रि माह का सबसे अंधकारपूर्ण दिवस होता है। प्रत्येक माह शिवरात्रि का उत्सव तथा महाशिवरात्रि का उत्सव मनाना ऐसा लगता है मानो हम अंधकार का उत्सव मना रहे हों। कोई तर्कशील मन अंधकार को नकारते हुए, प्रकाश को सहज भाव से चुनना चाहेगा। परंतु शिव का शाब्दिक अर्थ ही यही है, ‘जो नहीं है’। ‘जो है’, वह अस्तित्व और सृजन है। ‘जो नहीं है’, वह शिव है। ‘जो नहीं है’, उसका अर्थ है, अगर आप अपनी आँखें खोल कर आसपास देखें और आपके पास सूक्ष्म दृष्टि है तो आप बहुत सारी रचना देख सकेंगे। अगर आपकी दृष्टि केवल विशाल वस्तुओं पर जाती है, तो आप देखेंगे कि विशालतम शून्य ही, अस्तित्व की सबसे बड़ी उपस्थिति है। कुछ ऐसे बिंदु, जिन्हें हम आकाशगंगा कहते हैं, वे तो दिखाई देते हैं, परंतु उन्हें थामे रहने वाली विशाल शून्यता सभी लोगों को दिखाई नहीं देती। इस विस्तार, इस असीम रिक्तता को ही शिव कहा जाता है। वर्तमान में, आधुनिक विज्ञान ने भी साबित कर दिया है कि सब कुछ शून्य से ही उपजा है और शून्य में ही विलीन हो जाता है। इसी संदर्भ में शिव यानी विशाल रिक्तता या शून्यता को ही महादेव के रूप में जाना जाता है। इस ग्रह के प्रत्येक धर्म व संस्कृति में, सदा दिव्यता की सर्वव्यापी प्रकृति की बात की जाती रही है। यदि हम इसे देखें, तो ऐसी एकमात्र चीज़ जो सही मायनों में सर्वव्यापी हो सकती है, ऐसी वस्तु जो हर स्थान पर उपस्थित हो सकती है, वह केवल अंधकार, शून्यता या रिक्तता ही है। सामान्यतः, जब लोग अपना कल्याण चाहते हैं, तो हम उस दिव्य को प्रकाश के रूप में दर्शाते हैं। जब लोग अपने कल्याण से ऊपर उठ कर, अपने जीवन से परे जाने पर, विलीन होने पर ध्यान देते हैं और उनकी उपासना और साधना का उद्देश्य विलयन ही हो, तो हम सदा उनके लिए दिव्यता को अंधकार के रूप में परिभाषित करते हैं।
महाशिवरात्रि पर जलाभिषेक का मुहूर्त
आज महाशिवरात्रि पर जल चढ़ाने के लिए 4 मुहूर्त हैं। आज सुबह 6 बजकर 47 बजे से सुबह 9 बजकर 42 बजे तक जल चढ़ाया जा सकता है. इसके बाद मध्यान्ह काल में भी सुबह 11 बजकर 06 बजे से लेकर दोपहर 12 बजकर 35 बजे तक जल चढ़ाया जा सकता है। फिर आज दोपहर 3 बजकर 25 बजे से शाम 6 बजकर 08 बजे तक भी जलाभिषेक किया जा सकता है। और आखिरी मुहूर्त आज रात में 8 बजकर 54 मिनट पर शुरू होगा और रात 12 बजकर 01 बजे तक रहेगा।