Karwa Chauth Special 2024: आखिर क्यों करती है महिलाएं करवा चौथ का व्रत?: छलनी में चांद और पति का चेहरा क्यों देखते हैं?
करवा चौथ पति और पत्नी के बीच के प्रेम को दर्शाने वाला त्योहार है। आज पूरे देश में धूमधाम से इस त्योहार को मनाया जा रहा है। प्राचीनकाल से महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत करती चली आ रही हैं। इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की दीर्घायु के लिए व्रत करती है। और ईश्वर से आशीर्वाद प्राप्त करती है। यह त्योहार क्यों मनाया जाता है। और कैसे शुरू हुई इसको मनाने की परंपरा आज हम आपको इसके बारे में बताने जा रहे हैं।
आप सब को पता है आज करवा चौथ का व्रत है। लेकिन महिलाएं इस व्रत को करती है। लेकिन ये शायद ही किसी को पता होगा की इस व्रत को क्यों किया जाता है।
आखिर क्यों करती है महिलाएं करवा चौथ का व्रत?
करवा चौथ का व्रत मुख्य रूप से देश के उत्तर और पश्चिम राज्यों की महिलाएं रखती हैं। ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल से ही इन राज्यों के पुरुष सेना में काम करते आ रहे हैं। और पुलिस में भर्ती होते रहे हैं। तो इनकी सलामती के लिए इन राज्यों की महिलाएं करवा चौथ का व्रत करती हैं। जिससे कि उनके पति की दुश्मनों से रक्षा हो सके और उनकी आयु लंबी हो। वहीं जिस वक्त यह त्योहार मनाया जाता है। उन दिनों में रबी की फसल यानी गेहूं की फसल बोई जाती है। कुछ स्थानों पर महिलाएं करवा में गेहूं भी भरकर रखती हैं और भगवान को अर्पित करती हैं। ताकि उनके घर में गेहूं की शानदार फसल पैदा हो।
करवा चौथ के दिन छलनी पर दीया रखकर ही क्यों देखते हैं चांद?
एक पौराणिक कथा के अनुसार, चंद्रमा को भगवान गणेश ने कलंकित होने का श्राप दिया था और यह भी कहा था कि जो भी चंद्रमा को नग्न आँखों से देखेगा, उसे भी अपमान का दंश झेलना पड़ेगा। इसी वजह से करवा चौथ के दिन चंद्रमा को सीधा देखने के बजाय छलनी की आड़ से देखा जाता है। वहीं, छलनी पर दीया भी रखते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि दीया कलंक को काटने का काम करता है। दीये की लौ को सर्वाधिक पवित्र माना जाता है और दीये के प्रभाव से नकारात्मक ऊर्जा भी दूर होती है।
छलनी में चांद और पति का चेहरा क्यों देखते हैं?
करवा चौथ के दिन चांद और पति को छलनी से देखने को लेकर यह मान्यता है । कि छलनी में हजारों छेद होते हैं, जिससे चंद्रमा दर्शन करने से छेदों की संख्या जितने प्रतिबिंब दिखते हैं। उसके बाद पति को छलनी से देखा जाता है। तो पति की उम्र भी उतनी ही गुना बढ़ जाती है। इसलिए करवा चौथ के व्रत में चंद्रमा और पति को देखने के लिए छलनी का इस्तेमाल किया जाता है। मान्यता है कि इस विधि के बिना यह व्रत अधूरा होता है।
सरगी खाने का महत्व
दरअसल, सरगी इसलिए खाई जाती है। ताकि आप दिनभर के उपवास के लिए आपका शरीर तैयार रहे इसलिए सरगी में उच्च फाइबर और प्रोटीन वाले खाद्य पदार्थ शामिल किए जाते हैं। जिससे आप पूरा दिन ऊर्जावान बनी रहें।
करवा चौथ पर क्यों करते है 16 श्रृंगार ?
करवा चौथ के दिन सुहागिन महिलाएं पूजा-अर्चना से पहले सोलह श्रृंगार करती हैं। धार्मिक मान्यता है। कि श्रृंगार करने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है। और भाग्य भी खुलता है। इसके अलावा पति की लंबी आयु होती है। इन्हीं सभी वजहों से सोलह श्रृंगार किया जाता है। 16 श्रृंगार का मतलब होता है। महिलाएं सिर से लेकर पैर तक कुछ न कुछ सुहाग की निशानी को पहनती हैं।
क्या है 16 श्रृंगार ?
सिंदूर
सिंदूर सुहागिन महिलाओं का सबसे बड़ा श्रृंगार होता है। 16 श्रृंगारों में सिंदूर का स्थान सबसे ऊंचा है। इसे सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए अपनी मांग के बीच में सिंदूर भरती हैं। इसके साथ ही इस सिंदूर के जरिए महिलाएं अपने पति से जीवन भर साथ निभाने का वादा भी करती हैं।
बिंदी
बिंदी को कुमकुम के नाम से भी जाना जाता है। सुहागिन महिलाएं अपने माथे पर भौंहों के बीच बिंदी या कुमकुम लगाती हैं। माथे पर बिंदी भगवान शिव की तीसरी आंख का प्रतीक है। शादीशुदा महिलाएं अपने परिवार की खुशहाली के लिए माथे पर बिंदी लगाती हैं।
गजरा
बालों को सजाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला गजरा भी 16 श्रृंगारों की सूची में शामिल है। आज भी दक्षिण भारत में महिलाएं नियमित रूप से हरसिंगार के फूल से बना गजरा अपने बालों पर लगाती हैं। हिंदू धर्म में शादी के समय बालों पर गजरा सजाया जाता है। इसे महिलाओं के अखंड सौभाग्य का प्रतीक भी माना जाता है।
काजल
आंखों को सजाने के लिए काले काजल का इस्तेमाल किया जाता है। यह न केवल आंखों की खूबसूरती बढ़ाता है। बल्कि बुरी नजर के साये से भी बचाता है। 16 श्रृंगारों में काजल का भी अहम स्थान है।
मांग टीका
इसे सिर पर सजाया जाता है। शादी के समय मांग टीका सीधे सिर के बीचों-बीच पहना जाता है। इसका उद्देश्य यह है कि मांग टीके की तरह ही नवविवाहिता अपने जीवन में हमेशा सही रास्ते पर चले।
झुमके
कान के आभूषण भी सोलह श्रृंगार में शामिल हैं। विवाहित महिलाओं के साथ-साथ अविवाहित लड़कियां भी कान के आभूषण पहन सकती हैं। छोटे टॉप, झुमके या झुमके, इनमें से कोई भी कान के आभूषण के रूप में पहना जा सकता है। शादी के बाद कानों में कुछ पहनना बहुत जरूरी माना जाता है।
नथ
नथ नाक का आभूषण है। विवाहित महिलाओं को हमेशा अपनी नाक में कुछ न कुछ पहनना चाहिए। जरूरी नहीं है। कि आप नाक में बड़ी नथ पहनें, आप छोटी सी नथ या नथ भी पहन सकती हैं।
हार और मंगलसूत्र
गले का आभूषण। गले में पहना जाने वाला मंगलसूत्र विवाहित महिला की अपने पति के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक है। इसके साथ ही इसका वैज्ञानिक महत्व भी है। दरअसल गले के आसपास कुछ प्रेशर पॉइंट होते है। जिसकी वजह से गले में आभूषण पहनने से शरीर को फायदा होता है।
बाजूबंद
विवाहित महिलाएं कंगन के आकार का यह आभूषण अपनी बांहों पर बांधती हैं। बाजूबंद पहनने के पीछे मान्यता है कि इससे परिवार की संपत्ति की रक्षा होती है।
चूड़ियाँ
हाथों में पहनी जाने वाली लाल-हरी चूड़ियाँ सुहागिन महिलाओं के सौभाग्य का प्रतीक होती हैं। अलग-अलग रंगों की चूड़ियों में अलग-अलग राज छिपे होते हैं। लाल चूड़ियाँ खुशी और संतुष्टि का प्रतीक होती है। तो हरी चूड़ियाँ सुख-समृद्धि का प्रतीक होती हैं। करवा चौथ पर खास तौर पर लाल और हरी चूड़ियाँ पहनना अच्छा माना जाता है।
अंगूठी
अंगूठियों को सदियों से पति-पत्नी के बीच आपसी प्रेम और विश्वास का प्रतीक माना जाता रहा है। यही वजह है कि सदियों से दूल्हा-दुल्हन एक-दूसरे को अंगूठी पहनाकर अपना जीवनसाथी चुनते हैं। सोलह श्रृंगार में अंगूठी का भी अहम स्थान होता है।
मेहंदी
मेहंदी भी सोलह श्रृंगार में शामिल है। कहते हैं कि हाथों पर जितनी गहरी मेहंदी होती है, पति का प्यार उतना ही गहरा होता है। भारतीय महिलाएं हर त्योहार पर अपने हाथों में मेहंदी लगाती हैं। करवा चौथ पर भी महिलाएं अपने हाथों में मेहंदी लगाती हैं।
कमरबंद
कमर पर पहना जाने वाला आभूषण कमरबंद को भी 16 श्रृंगार में अहम स्थान दिया गया है। कमरबंद इस बात का प्रतीक है। कि शादी के बाद महिलाएं अपने घर की स्वामिनी होती हैं।
शादी का जोड़ा
हर महिला का शादी का जोड़ा बेहद खास होता है। 16 श्रृंगार में शादी का जोड़ा सबसे अहम स्थान रखता है। एक लड़की इसी जोड़े में अपना नया जीवन शुरू करती है। शादी के जोड़े के बिना सोलह श्रृंगार अधूरे हैं। करवा चौथ पर आप शादी के जोड़े की जगह अपने पति द्वारा गिफ्ट की गई साड़ी या लहंगा भी पहन सकती हैं।
पायल
16 श्रृंगार में पायल का भी अहम स्थान है। वैसे तो पायल अविवाहित और विवाहित दोनों महिलाएं पहन सकती हैं। लेकिन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार विवाहित महिलाओं को हमेशा पैरों में पायल पहननी चाहिए। चांदी की धातु से बना यह आभूषण इस बात का प्रतीकहै। कि इसकी खनक की आवाज की तरह ही महिलाएं अपने घर आंगन को खुशियों के संगीत से सजाएं।
बिछिया
यह पैरों की उंगलियों में पहना जाने वाला गहना है। बिछिया केवल सौभाग्यशाली महिलाएं ही पहनती हैं। इसे महिलाएं शादी के समय पहनती हैं। शादी के समय इसे पहनने की एक रस्म होती है। इसके बाद सौभाग्यशाली महिलाएं जीवन भर अपने पैरों की बीच की तीन उंगलियों में बिछिया पहनती हैं।
पंच तत्वों का प्रतीक है करवा
- मिट्टी का करवा पंच तत्व का प्रतीक है। मिट्टी को पानी में गला कर बनाते है। जो भूमि तत्व और जल तत्व का प्रतीकहै।, उसे बनाकर धूप और हवा से सुखाया जाता है जो आकाश तत्व और वायु तत्व के प्रतीकहै। फिर आग में तपाकर बनाया जाता है।
- भारतीय संस्कृति में पानी को ही परब्रह्म माना गया है।क्योंकि जल ही सब जीवों की उत्पत्ति का केंद्र है। इस तरह मिट्टी के करवे से पानी पिलाकर पति पत्नी अपने रिश्ते में पंच तत्व और परमात्मा दोनों को साक्षी बनाकर अपने दाम्पत्य जीवन को सुखी बनाने की कामना करते हैं।
- आयुर्वेद में भी मिट्टी के बर्तन में पानी पीने को फायदेमंद माना गया है। इस कारण वैज्ञानिक द्रष्टी से भी यह उपयोगी है।
क्या अविवाहित लड़कियां कर सकती करवा चौथ का व्रत ?
हाल के दिनों में अविवाहित लड़कियों द्वारा करवा चौथ व्रत का पालन करना एक चलन बन गया है। जो मुख्य रूप से एक आदर्श जीवन साथी पाने की इच्छा से प्रेरित है। जबकि परंपरागत रूप से यह उपवास अनुष्ठान विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की भलाई और दीर्घायु के लिए पूजा (प्रार्थना) करने के लिए आरक्षित है। अविवाहित लड़कियों ने इस अवसर से जुड़े उत्सव और अनुष्ठानों में भाग लेने के तरीके ढूंढ लिए हैं।
अविवाहित लड़कियों द्वारा करवा चौथ व्रत रखने के कई कारण हो सकते हैं :
सांस्कृतिक प्रभाव: कई समाजों में, सांस्कृतिक प्रथाएँ और अनुष्ठान व्यक्तियों के व्यवहार को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। करवा चौथ की परंपरा को विभिन्न प्रकार के मीडिया और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के माध्यम से रोमांटिक बनाया गया है। जिससे यह अविवाहित लड़कियों को आकर्षित करती है। जो विवाहित जीवन से जुड़े उत्सवों का अनुभव करने की इच्छा रखती हैं।
जीवनसाथी की चाहत: करवा चौथ व्रत रखने से एक उपयुक्त जीवनसाथी मिल सकता है । या उनके रोमांटिक जीवन में अनुकूल परिस्थितियाँ आ सकती हैं। यह अंतर्निहित मान्यता अविवाहित लड़कियों को इस अनुष्ठान में भाग लेने के लिए प्रेरित करती है। इसे एक प्यार करने वाले और सहायक साथी को पाने के लिए अपनी आस्था और प्रतिबद्धता को व्यक्त करने के तरीके के रूप में देखा जाता है।
सामुदायिक भागीदारी: ऐसे समुदाय का हिस्सा होना जहाँ करवा चौथ उत्साहपूर्वक मनाया जाता है। अविवाहित लड़कियों को उत्सव में शामिल होने के लिए प्रेरित कर सकता है। साथियों का दबाव या सामाजिक समारोहों में शामिल होने की इच्छा उन्हें बिना शादी किए भी व्रत रखने के लिए प्रेरित कर सकती है ।
व्यक्तिगत मान्यताएँ और भावनाएँ: कुछ अविवाहित लड़कियों की करवा चौथ से जुड़ी व्यक्तिगत मान्यताएँ या भावनाएँ हो सकती हैं। जैसे कि प्रार्थना की शक्ति में दृढ़ विश्वास या त्योहार के प्रतीकवाद से जुड़ाव। उनके लिए। व्रत रखना इन मान्यताओं के साथ तालमेल बिठाने और एक पूर्ण रोमांटिक रिश्ते की अपनी उम्मीदों को व्यक्त करने का एक तरीका है।
पारिवारिक परंपरा: जिन परिवारों में करवा चौथ एक पुरानी परंपरा है। वहां अविवाहित लड़कियां पारिवारिक रीति-रिवाजों और अनुष्ठानों का सम्मान करने के लिए इसमें भाग लेने के लिए मजबूर महसूस कर सकती हैं। बड़ों या परिवार के सदस्यों का प्रभाव जो उनकी भागीदारी को प्रोत्साहित करते हैं। वे भी व्रत रखने के उनके निर्णय में योगदान दे सकते हैं।