Devband पहुंचे तालिबान विदेश मंत्री मुत्तकी, जानिए दारुल उलूम से उनका क्या है कनेक्शन
अफगानिस्तान की तालिबान सरकार के विदेश मंत्री अमीर ख़ान मुत्तक़ी का भारत दौरा कई वजहों से चर्चा में है, लेकिन विशेष रूप से उत्तर प्रदेश के Devband में उनकी यात्रा ने राजनीतिक और धार्मिक दोनों ही हलकों का ध्यान खींचा है। शनिवार को मुत्तक़ी Devband पहुंचे और उन्होंने वहां की जानी-मानी इस्लामी शिक्षण संस्था दारुल उलूम देवबंद का दौरा किया। उनके इस दौरे को धार्मिक, वैचारिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से खास महत्व दिया जा रहा है।

भारत दौरे का उद्देश्य और पृष्ठभूमि
10 अक्टूबर को अमीर ख़ान मुत्तक़ी ने भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से मुलाकात की थी। यह पहली बार है जब तालिबान सरकार के किसी वरिष्ठ मंत्री ने भारत का आधिकारिक दौरा किया। हालांकि, भारत ने अब तक तालिबान सरकार को औपचारिक मान्यता नहीं दी है, लेकिन इस मुलाकात को दोनों देशों के बीच संपर्क बनाए रखने की एक रणनीतिक कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।
देवबंद की यात्रा: प्रतीकात्मक महत्व
भारत दौरे के दौरान मुत्तक़ी का दारुल उलूम देवबंद जाना केवल एक धार्मिक स्थल की यात्रा नहीं थी, बल्कि यह तालिबान के वैचारिक आधार की एक झलक भी प्रस्तुत करता है। देवबंद स्थित दारुल उलूम केवल एक इस्लामी शिक्षण संस्था नहीं, बल्कि एक विचारधारा का केंद्र है, जिससे तालिबान की वैचारिक जड़ें जुड़ी हुई हैं।

तालिबान के कई वरिष्ठ नेता पाकिस्तान के दारुल उलूम हक्कानिया से पढ़े हैं, जिसे ‘तालिबान की नर्सरी’ भी कहा जाता है। यह संस्था देवबंद के विचारों से प्रेरित होकर स्थापित की गई थी। इस प्रकार, देवबंद और तालिबान के बीच एक वैचारिक कड़ी पहले से मौजूद है।
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मुत्तक़ी का देवबंद में स्वागत
देवबंद पहुंचने पर मुत्तक़ी ने दारुल उलूम में नमाज़ अदा की और स्थानीय लोगों से मुलाकात की। उन्होंने अपने भाषण में कहा,
“Devband इस्लामी दुनिया का एक बड़ा केंद्र है और अफगानिस्तान से इसका गहरा रिश्ता है। यहां का स्वागत और मेहमाननवाज़ी बहुत खास रही। भारत और अफगानिस्तान के रिश्ते मुझे उज्ज्वल नज़र आ रहे हैं।”
जमीयत उलेमा-ए-हिंद का बयान
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने भी मुत्तक़ी की यात्रा का समर्थन करते हुए कहा कि तालिबान ने जिस तरह रूस और अमेरिका जैसी वैश्विक शक्तियों से संघर्ष किया, वह प्रेरणादायक है। उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम से इसकी तुलना करते हुए कहा,
“जिस तरह हमारे पूर्वजों ने ब्रिटिश हुकूमत को हराया, उसी तरह तालिबान ने भी बड़ी ताक़तों को चुनौती दी है। यही ताक़त उन्हें आज Devband तक ले आई है।”
दारुल उलूम की भूमिका और प्रतिक्रिया
दारुल उलूम Devband के मीडिया प्रभारी अशरफ़ उस्मानी ने बताया कि मुत्तक़ी की यात्रा के लिए संस्था द्वारा पूरी तैयारी की गई थी। उन्होंने कहा,
“हमारे यहां देश-विदेश से मेहमान आते रहते हैं। मुत्तक़ी साहब भी हमारे देश के गेस्ट हैं और हमने उसी तरह से उनका स्वागत किया है।”
हालांकि, दारुल उलूम ने यह स्पष्ट किया कि यह यात्रा केवल एक धार्मिक और शिष्टाचार मुलाकात थी और इसका किसी राजनीतिक उद्देश्य से संबंध नहीं है।

तालिबान और देवबंदी विचारधारा
देवबंदी विचारधारा मूलतः इस्लामी शिक्षा, शरीयत के पालन और धार्मिक परंपराओं को संरक्षित रखने पर जोर देती है। तालिबान की वैचारिक नींव इसी सोच से मेल खाती है, जो उन्हें Devband से जोड़ती है। हालांकि, दारुल उलूम Devband हमेशा से खुद को शुद्ध धार्मिक संस्था मानता है और किसी भी उग्रवाद या राजनीतिक हिंसा से खुद को अलग रखता आया है।
यह यात्रा दर्शाती है कि कैसे धार्मिक और वैचारिक संबंध अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अहम भूमिका निभा सकते हैं। भारत भले ही तालिबान सरकार को मान्यता नहीं देता, लेकिन संवाद और संपर्क की ये पहल दोनों देशों के भविष्य संबंधों को आकार देने में सहायक हो सकती है।

