Rajasthan News: हज़ारों करोड़ खर्च, फिर भी संरचनाएं नदारद’: विधानसभा में भाटी का वार
राजस्थान विधानसभा में शिव विधायक रविन्द्र सिंह भाटी ने भूजल संकट, भूमि आवंटन, जल संरचनाओं की कमी और पर्यावरणीय नुकसान पर तीखा हमला बोला।

राजस्थान विधानसभा में भूजल संकट और भूमि आवंटन पर शिव विधायक रविन्द्र सिंह भाटी का विस्फोटक हमला – “151% भूजल दोहन, 295 ब्लॉक डार्क ज़ोन, 16,560 गाँव ज़हरीला पानी पीने को मजबूर, हज़ारों करोड़ खर्च फिर भी संरचनाएँ नदारद, RO प्लांट बंद, खेजड़ी पेड़ों की कटाई, पर्यटन क्षेत्रों की जमीन लूट और सोलर-विंड प्रोजेक्ट्स के नाम पर विस्थापन – जनता को सिर्फ कागज़ी उपलब्धियाँ क्यों मिल रही हैं?
जयपुर। राजस्थान विधानसभा का सत्र मंगलवार को उस समय गरमा गया जब “भू-जल (संरक्षण और प्रबंध) प्राधिकरण विधेयक” पर चर्चा के दौरान शिव विधायक रविन्द्र सिंह भाटी ने प्रदेश की भयावह जल स्थिति और सरकारी योजनाओं की पोल खोल दी। भाटी ने बेहद आक्रामक अंदाज़ में कहा कि बीते एक दशक में राजस्थान में भूजल की स्थिति इतनी बदतर हो चुकी है कि अब राज्य देश में न्यूनतम भूजल वाले राज्यों में पहले पायदान पर पहुंच गया है। उन्होंने चेताया कि हालात आने वाले वर्षों में बड़े संकट का संकेत दे रहे हैं।
भाटी ने तथ्य पेश करते हुए कहा कि राजस्थान देश के उन तीन राज्यों में शामिल है जहां भूजल का दोहन, पुनर्भरण से कहीं ज्यादा है। नतीजा यह है कि भूजल भंडारों का अति-दोहन हो चुका है। प्रदेश के 74 प्रतिशत भूजल स्रोत अति-दोहन की श्रेणी में हैं और दोहन की दर 151 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है। विधानसभा में उन्होंने जोर देकर कहा कि राज्य के 301 ब्लॉकों में से 295 ब्लॉक डार्क ज़ोन में चले गए हैं।
योजनाएँ: दावे बड़े, नतीजे शून्य
भाटी ने सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा कि भूजल संकट के पीछे केवल प्राकृतिक परिस्थितियाँ नहीं बल्कि भ्रष्टाचार, पानी माफिया और कागज़ी योजनाएँ भी जिम्मेदार हैं। उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार प्रायोजित जल शक्ति अभियान के तहत 2021 से 2024 तक बाड़मेर ज़िले में लगभग 1,300 करोड़ रुपये खर्च दिखाए गए और दावा किया गया कि 47,000 से अधिक संरचनाएँ बनाई गई हैं। लेकिन केंद्रीय भूजल बोर्ड की आधिकारिक रिपोर्ट साफ कहती है कि 2014 से 2024 तक बाड़मेर के अधिकांश निगरानी केंद्रों पर भूजल स्तर में लगातार गिरावट दर्ज की गई है।
उन्होंने सवाल उठाया –
- जब हज़ारों करोड़ रुपये खर्च किए गए, तो भूजल क्यों नहीं बढ़ा?
- जिन 47,000 संरचनाओं का दावा किया जा रहा है, वे ज़मीन पर क्यों दिखाई नहीं देतीं?
- क्या यह पूरा अभियान सिर्फ कागज़ी उपलब्धियों और फर्जी दावों तक सीमित रह गया?”
इसी प्रकार, मनरेगा योजना के अंतर्गत 2021-22 से 2024-25 तक बाड़मेर ज़िले में 230 करोड़ रुपये खर्च दिखाए गए, लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि इन संरचनाओं का कोई अस्तित्व ही दिखाई नहीं देता।
भाटी ने कहा कि सिर्फ जल शक्ति अभियान और मनरेगा ही नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, अमृत योजना, अटल भूजल योजना, राज्य सरकार की योजनाएँ, DMFT फंड, RICDF फंड, MPLAD, MLALAD, CSR समेत लगभग 18 स्रोतों से भारी धनराशि भूजल पुनर्भरण के लिए आई, लेकिन नतीजा यही है कि पानी का स्तर लगातार गिर रहा है।
दूषित पानी और बंद पड़े RO प्लांट
भाटी ने सदन को बताया कि राजस्थान के लगभग 16,560 गाँव आज भी फ्लोराइडयुक्त पानी पीने को मजबूर हैं। बाड़मेर ज़िले के कई गाँवों में पानी का TDS स्तर 7000 ppm से ऊपर है, जबकि भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) की सीमा सिर्फ 50-150 ppm है। उन्होंने कहा कि इस जहरीले पानी ने ग्रामीणों के शरीर को खोखला करना शुरू कर दिया है।
उन्होंने विधानसभा क्षेत्र शिव के पादरिया सहित सीमावर्ती गाँवों का उदाहरण देते हुए कहा कि इन क्षेत्रों में विभाग द्वारा 55 RO प्लांट स्थापित किए गए थे, लेकिन आज इनमें से 30 प्लांट बंद पड़े हैं। इसका सीधा असर यह है कि लोग वर्षों से दूषित पानी पीने को मजबूर हैं। भाटी ने इसे विभागीय लापरवाही बताते हुए कहा कि यह ग्रामीणों के जीवन और स्वास्थ्य पर सीधा हमला है।
भूमि आवंटन पर सवाल
भूजल संकट के मुद्दे के बाद भाटी ने सदन में राजस्थान भू-राजस्व (संशोधन एवं विधिमान्यकरण) विधेयक पर चर्चा करते हुए सरकार से कठोर सवाल किए। उन्होंने पूछा कि संशोधन लाने से पहले रीको को आवंटित भूमियों के संबंध में किए गए उपविभाजन, विलयन और परिवर्तन किसके आदेश से हुए और क्या राज्य सरकार से इसकी वैधानिक अनुमति ली गई थी?
भाटी ने कहा कि बेशकीमती भूमि पर राज्य सरकार का प्रत्यक्ष नियंत्रण खत्म करके रीको को इतना अधिकार देना खतरनाक है। उन्होंने स्पष्ट किया कि औद्योगिक क्षेत्रों में सड़कों के निर्माण, रखरखाव, अवैध कब्जों और अतिक्रमणों से निपटने जैसे मामलों में जवाबदेही तय होनी चाहिए।
उन्होंने पश्चिमी राजस्थान में हो रही लैंड अलॉटमेंट की धांधलियों का भी मुद्दा उठाया। उदाहरण देते हुए कहा कि रेड़ाना जैसे पर्यटन क्षेत्रों की जमीन को उद्योगों के लिए अलवण्य कर दिया गया। उन्होंने कहा कि सरकार को कम से कम पर्यटन क्षेत्रों को बचाए रखना चाहिए क्योंकि ये न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था बल्कि राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर भी हैं।
पर्यावरण और पेड़ों की कटाई
भाटी ने खेजड़ी पेड़ों की अंधाधुंध कटाई पर भी गंभीर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में 25 से 26 हज़ार पेड़ काटे जा चुके हैं और आने वाले समय में यह संख्या 50 हज़ार तक पहुंच सकती है। उन्होंने कहा कि सरकार को तुरंत Tree Protection Act लागू करना चाहिए।
उन्होंने कहा, “खेजड़ी केवल बिश्नोई समाज की नहीं, बल्कि पूरे राजस्थान की जिम्मेदारी है। अगर अन्य राज्य Tree Protection Act ला सकते हैं, तो राजस्थान क्यों नहीं?”
उन्होंने एक हालिया घटना का ज़िक्र किया जिसमें बरियाड़ा क्षेत्र में खेजड़ी पेड़ों को कंपनी द्वारा काटकर ज़मीन में दफनाया गया, लेकिन अब तक कोई सख्त कार्रवाई नहीं हुई। भाटी ने सरकार से इस मामले में उदाहरण पेश करने की मांग की।
उद्योग और विस्थापन का संकट
भाटी ने यह भी कहा कि पश्चिमी राजस्थान के सीमावर्ती इलाकों की बड़ी आबादी पशुपालन और गौवंश पर निर्भर है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर इनकी जमीनें सोलर और विंड एनर्जी प्रोजेक्ट्स के नाम पर कंपनियों को दे दी गईं तो लोग और उनका पशुधन विस्थापन का शिकार हो जाएंगे।
उन्होंने कहा कि सरकार को चाहिए कि औद्योगिक क्षेत्रों में मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स लाए ताकि रोज़गार और विकास दोनों को बढ़ावा मिले, न कि केवल बड़े ऊर्जा प्रोजेक्ट्स के नाम पर ज़मीन हड़पी जाए।
विपक्ष पर कटाक्ष और निजता का मामला
भाटी ने विपक्ष को भी आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि विपक्ष को गंभीर मुद्दों पर शांति से चर्चा करनी चाहिए, लेकिन वे विधानसभा में केवल हंगामा कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “जब मुख्यमंत्री सदन में मौजूद थे, तब विपक्ष को जनता के मुद्दे उठाने चाहिए थे, पर उन्होंने सिर्फ शोर मचाना चुना।”
साथ ही उन्होंने कहा कि जब वे विश्वविद्यालय छात्रसंघ अध्यक्ष थे तब कांग्रेस सरकार ने उन पर झूठे मुकदमे दर्ज किए, जो आज तक चल रहे हैं। ऐसे में विपक्ष का निजता पर उपदेश देना जनता को गुमराह करने जैसा है।
भाटी की इस आक्रामक प्रस्तुति ने विधानसभा में भूजल संकट, दूषित पेयजल, सरकारी योजनाओं की नाकामी, भूमि आवंटन की धांधलियों और पर्यावरण संकट जैसे मुद्दों को केंद्र में ला दिया।

