Sawan Somwar 2025: सावन का पहला दिन: देशभर में शिव मंदिरों में उमड़ा भक्तों का सैलाब, कांवड़ यात्रा हुई शुरू
आज सावन का पहला दिन है। इसके चलते देशभर के शिव मंदिरों में भक्तों की भीड़ नजर आ रही है। उत्तर प्रदेश के वाराणसी में काशी विश्वनाथ का विशेष श्रृंगार किया गया। वहीं, उज्जैन बाबा महाकाल का पंचामृत अभिषेक हुआ।

सावन का महीना शुरू होने के साथ कांवड़ यात्रा की शुरुआत भी हो जाती है. सावन के महीने को भोलेनाथ का महीना कहा जाता है। इस माह में भोलेनाथ अपने भक्तों पर अपनी कृपा दृष्टि रखते हैं और उनकी हर मनोकामना को पूर्ण करते हैं। सावन शुरू होते ही कांवड़िए भारी कांवड़ को उठाकर गंगाजल भरने के चल देते हैं। कांवड़ यात्रा सावन माह की पहचान है। साल 2025 में कांवड़ यात्रा की शुरुआत आज यानि 11 जुलाई, शुक्रवार से हो रही है। यह यात्रा सावन माह की प्रतिपदा तिथि से आरंभ होती है और सावन माह की शिवरात्रि तिथि तक चलती है।
परिवार संग कांवड़ यात्रा का महत्व
परिवार के साथ कांवड़ यात्रा निकालने का सबसे बड़ा महत्व आपसी प्रेम और एकजुटता में वृद्धि होती है। यात्रा के दौरान आने वाली चुनौतियों का मिलकर सामना किया जाता है. इससे पारिवारिक रिश्ते मजबूत होते हैं।
परिवार संग कांवड़ यात्रा का रहस्य
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब पूरा परिवार शिव के प्रति समर्पण की भावना से धार्मिक यात्रा करता है तो, वह केवल भौतिक यात्रा न होकर धार्मिक यात्रा भी बन जाती है। श्रावण मास में निकाली जाने वाली कांवड़ यात्रा कई लाभों का प्रतीक होती है। जहां हर कदम पर आत्मशुद्धि, संयम और भक्ति का भाव होता है।
परिवार के साथ कांवड़ यात्रा में शामिल होने से शिव भगवान की असीम कृपा प्राप्त होती है. ये यात्रा एक धार्मिक परंपरा होने के साथ-साथ भावनात्मक और आध्यात्मिक यात्रा भी है। जो भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का माध्यम है।
कांवड़ यात्रा कैसे शुरू हुई
समुद्र मंथन के दौरान 14 रत्न निकले थे। साथ ही, एक खतरनाक विष भी निकला था, जिसे हलाहल कहा गया। इस विष से पूरी सृष्टि खतरे में पड़ गई थी। तब भगवान शिव ने आगे बढ़कर उस विष को पी लिया। विष पीने से उनका गला नीला पड़ गया, इसलिए उन्हें नीलकंठ कहा जाने लगा। विष का असर बहुत तेज था, भगवान शिव के शरीर में बहुत जलन होने लगी। उन्हें असहनीय दर्द हो रहा था, देवताओं ने उन्हें इस पीड़ा से मुक्ति दिलाने के लिए पवित्र नदियों का ठंडा जल अर्पित करना शुरू कर दिया। रावण भगवान शिव के पहले कांवड़िया थे। वे कांवड़ में गंगाजल भरकर लाए थे। उन्होंने उत्तर प्रदेश में बागपत के पास पूरा महादेव मंदिर में शिवलिंग का जलाभिषेक किया। इससे शिवजी को विष की पीड़ा से राहत मिली। रावण को भगवान शिव का पहला कांवड़िया माना जाता है जो कांवड़ में गंगाजल भरकर लाया और बागपत के पास पूरा महादेव मंदिर में शिवलिंग का जलाभिषेक किया, जिससे शिवजी को विष की पीड़ा से राहत मिली।
कांवड़ यात्रा के नियम
कांवड़ यात्रा के लिए जरूरी सामग्री – कांवड़, गंगा जल भरने के लिए पात्र, सजावट के लिए लाल-पीले वस्त्र और फूल, भगवान शिव की मूर्ति या फोटो, त्रिशूल, डमरू, रुद्राक्ष आदि चीजें अपने साथ जरूर रखें। इसके अलावा अपने साथ लाल-पीले वस्त्र, गमछा, नी कैप, दातुन भी रखें।
जमीन पर सोना और ब्रह्मचर्य का पालन- कांवड़ यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं को जमीन पर सोना और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए. साथ ही इस यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं को स्वच्छता और पवित्रता का खास ध्यान रखना होता है, नहीं तो आपकी यात्रा फलित नहीं होती है। मान्यता इससे शिव जी रूष्ट होते हैं।

