Jaipur Literature Festival: जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में CODA दुभाषियों को मिला विशेष अवसर: समावेशिता को बढ़ावा
गुलाबी नगरी में दुनियाभर में पहचान बना चुका जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल गुरुवार से शुरू हो रहा है। 30 जनवरी से 3 फरवरी तक आयोजित होने वाले जयपुर लिट फेस्ट के 18वें संस्करण में यूरोपीय संघ (ईयू) एक बार फिर साझेदार के रूप में शामिल होगा।

जयपुर इस बार जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में सांकेतिक भाषा विशेषज्ञों को विशेष अवसर दिया गया है। आरसीआई (Rashtriya Swayamsevak Sangh) मान्यता प्राप्त और CODA (Children of Deaf Adults) दुभाषियों को मंच पर बुलाया गया है। इस पहल का उद्देश्य न केवल समावेशिता को बढ़ावा देना है। बल्कि सांकेतिक भाषा अनुवादकों की भूमिका को भी मजबूती से पहचान दिलाना है।
CODA दुभाषी कौन होते हैं?
CODA वे लोग होते हैं जिनके माता-पिता बधिर होते हैं। ये लोग बचपन से ही सांकेतिक भाषा में पारंगत होते हैं और बधिर समुदाय और श्रवण समुदाय के बीच सहज संवाद स्थापित करने में कुशल होते हैं। इनका अनुभव केवल भाषाई नहीं होता। बल्कि वे बधिर समुदाय की संस्कृति और जीवनशैली को भी गहराई से समझते हैं।
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में CODA दुभाषियों का विशेष योगदान
इस वर्ष, जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में जयपुर के स्थानीय CODA दुभाषियों को मंच पर अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर दिया गया है। इन दुभाषियों ने बधिर समुदाय के लिए संवाद को सुगम बनाने का काम किया। यह कदम न केवल उनकी मेहनत को पहचान दिलाएगा। बल्कि समाज में उनकी भूमिका के प्रति जागरूकता भी बढ़ाएगा।
यह पहल समाज में समावेशिता की भावना को बढ़ावा देती है और दर्शाती है कि सांकेतिक भाषा अनुवादक समाज में कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस कदम के द्वारा बधिर समुदाय के लिए संवाद और समझ को और भी आसान बनाने का प्रयास किया जा रहा है। जिससे वे भी अन्य समुदायों के साथ सहजता से संवाद कर सकें।