गंगासागर को प्रसाद व स्वदेश दर्शन योजना में शामिल न होने पर शेखावत ने बताई असली वजह
केंद्रीय संस्कृति व पर्यटन मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने लोकसभा में कहा कि गंगासागर को प्रसाद और स्वदेश दर्शन योजना में शामिल न करने का कारण केंद्र नहीं, बल्कि पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा आवश्यक प्रस्ताव और डीपीआर न भेजना है। केंद्र ने कई बार अनुरोध किया था।
गंगासागर को राष्ट्रीय तीर्थ विकास योजनाओं में शामिल न करने पर लोकसभा में उठा सवाल
नई दिल्ली : देश के दूसरे सबसे बड़े धार्मिक समागम गंगासागर को राष्ट्रीय स्तर की तीर्थ विकास योजनाओं—विशेषकर प्रसाद योजना और स्वदेश दर्शन में शामिल न किए जाने का मुद्दा सोमवार को लोकसभा में प्रमुखता से उठा। इस संबंध में तृणमूल कांग्रेस की सांसद प्रतिमा मंडल ने सरकार से सीधा प्रश्न पूछा और यह जानना चाहा कि गंगासागर जैसे महत्वपूर्ण आस्था स्थल को अभी तक योजनाओं में स्थान क्यों नहीं दिया गया।
गंगासागर, जहां हर वर्ष लाखों श्रद्धालु स्नान के लिए पहुंचते हैं, धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण माना जाता है। ऐसे में इसे पर्यटन और तीर्थ विकास योजनाओं में शामिल करने पर सवाल उठना स्वाभाविक है। लेकिन इस बार सांसद के प्रश्न ने संसद के भीतर इस मुद्दे को व्यापक चर्चा का विषय बना दिया।
केंद्रीय मंत्री शेखावत का सीधा जवाब—‘केंद्र को कोई आपत्ति नहीं, प्रस्ताव ही नहीं भेजा गया’
सांसद के प्रश्न का उत्तर देते हुए केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने स्थिति स्पष्ट की। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार की ओर से गंगासागर को किसी भी योजना में शामिल करने में न कोई बाधा है और न कोई आपत्ति। वस्तुस्थिति यह है कि पश्चिम बंगाल सरकार ने अब तक आवश्यक परियोजना प्रस्ताव और विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) ही नहीं भेजी।
-सौजन्य से संसद टीवी
शेखावत ने कहा—
“भारत सरकार गंगासागर के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को भलीभांति समझती है। परंतु किसी भी परियोजना को शुरू करने के लिए राज्य सरकार द्वारा प्रस्ताव और डीपीआर भेजना अनिवार्य है। जब तक राज्य प्रस्ताव नहीं भेजेगा, केंद्र आगे नहीं बढ़ सकता।”
केंद्र ने पहले भी पश्चिम बंगाल को दी है बड़ी सहायता
केंद्रीय मंत्री ने यह भी बताया कि केंद्र सरकार ने पहले भी पश्चिम बंगाल के विभिन्न पर्यटन परियोजनाओं को बड़ी वित्तीय सहायता दी है। इनमें प्रमुख हैं—
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कोस्टल सर्किट के लिए 68 करोड़ रुपये
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वेलूर मठ के विकास के लिए 31 करोड़ रुपये
उन्होंने कहा कि इससे यह स्पष्ट है कि केंद्र सरकार राज्य की सांस्कृतिक और पर्यटन परियोजनाओं के प्रति सहयोगी रवैया रखती है। लेकिन पिछली कुछ वर्षों से स्थिति बदल गई है क्योंकि—
“स्वदेश दर्शन 2.0, प्रसाद स्कीम, और अन्य सहायता कार्यक्रमों के तहत पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से एक भी परियोजना प्रस्ताव नहीं भेजा गया।”
केंद्र के बार-बार अनुरोध के बावजूद राज्य सरकार की चुप्पी
शेखावत ने खुलासा किया कि मंत्रालय की ओर से कई बार पश्चिम बंगाल सरकार को प्रस्ताव भेजने के लिए औपचारिक अनुरोध किया गया, लेकिन राज्य सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। इससे परियोजनाओं की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ सकी।
केंद्रीय मंत्री ने कहा—
“गंगासागर का महत्व अत्यंत विशिष्ट है, और केंद्र इसे योजनाओं में शामिल करने को लेकर पूरी तरह सकारात्मक है। मगर परियोजना शुरू करने की पहल राज्य सरकार को ही करनी होती है।”
गंगासागर का महत्व—धार्मिक, ऐतिहासिक और पर्यटन दृष्टि से अद्वितीय
गंगासागर भारत के सबसे पवित्र स्थलों में से एक है। हर वर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर यहां लाखों श्रद्धालु गंगा-सागर संगम में स्नान करते हैं।
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यह कुंभ के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा धार्मिक मेला माना जाता है।
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पुराणों में गंगासागर का विशेष वर्णन मिलता है।
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पर्यटन और तीर्थ विकास की दृष्टि से यहां अपार संभावनाएं मौजूद हैं।
ऐसे में इसे राष्ट्रीय तीर्थ योजनाओं में शामिल करने की मांग वर्षों से उठती रही है।
राज्य सरकार की जिम्मेदारी—DPR के बिना परियोजना संभव नहीं
केंद्रीय मंत्री ने पुनः दोहराया कि केंद्र की योजनाओं में शामिल होने के लिए राज्य सरकार का पहला कदम आवश्यक है।
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परियोजना प्रस्ताव (Project Proposal)
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विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (Detailed Project Report – DPR)
जब तक ये दोनों दस्तावेज भेजे नहीं जाते, केंद्र सरकार किसी भी परियोजना को मंजूरी नहीं दे सकती।
राजनीतिक मतभेद नहीं, प्रक्रिया में बाधा—केंद्र सरकार
शेखावत ने यह भी स्पष्ट किया कि गंगासागर को लेकर केंद्र और राज्य के बीच कोई वैचारिक या राजनीतिक मतभेद नहीं है।
मुद्दा केवल प्रक्रिया का पालन न होने का है।
उन्होंने कहा कि जैसे ही पश्चिम बंगाल सरकार आवश्यक दस्तावेज भेजेगी, केंद्र जल्द से जल्द इस महत्वपूर्ण परियोजना पर विचार करेगा।


