जयपुर डांस कॉन्क्लेव में नृत्य, कार्यशालाओं और पैनल चर्चाओं का दो दिवसीय भव्य समापन

जयपुर डांस कॉन्क्लेव का पहला संस्करण राजस्थान इंटरनेशनल सेंटर में संपन्न हुआ। दो दिन की श्रृंखला में नृत्य प्रस्तुतियां, कार्यशालाएं और पैनल चर्चा शामिल रही। राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता नृत्य गुरु और युवा कलाकारों के साथ भारतीय नृत्य परंपरा का समृद्ध अनुभव दर्शकों को प्राप्त हुआ।
jaipur : जयपुर डांस कॉन्क्लेव (जेडीसी) का पहला संस्करण राजस्थान इंटरनेशनल सेंटर में एक प्रेरक और विचारोत्तेजक अंदाज में संपन्न हुआ। कॉन्क्लेव के पहले दिन के क्रम को आगे बढ़ाते हुए, दूसरे दिन भी श्रोताओं के लिए नृत्य प्रस्तुतियों, कार्यशालाओं और सार्थक चर्चाओं का समृद्ध श्रृंखला पेश की गई। भारत की समृद्ध और विविध नृत्य परंपरा के प्रति जागरूकता और सराहना को बढ़ावा के उद्देश्य से आयोजित इस कॉन्क्लेव में दर्शकों को भारतीय नृत्य परंपरा की व्यापकता और विविधता से रूबरू कराया गया। इस दो दिवसीय फेस्टिवल के दौरान दर्शकों को देशभर के श्रेष्ठ नृत्य प्रदर्शन देखने, वरिष्ठ नृत्य गुरुओं के अनुभव सुनने, युवा कलाकारों से संवाद करने और नृत्य का उत्सव मनाने का अवसर प्राप्त हुआ। उल्लेखनीय है कि यह फेस्टिवल आर्टस्पॉट्स की पहल पर पर्यटन विभाग, राजस्थान सरकार; राजस्थान ग्रामीण आजीविका विकास परिषद (राजीविका), ग्रामीण विकास विभाग और राजस्थान इंटरनेशनल सेंटर के सहयोग से आयोजित किया गया। इस आयोजन की संकल्पना और क्यूरेशन मंजोत चावला और कुचिपुड़ी नृत्यांगना अमृता लाहिड़ी द्वारा की गई थी।
पैनल चर्चा: ‘द वे फ़ॉरवर्ड – न्यू डायरेक्शन्स इन कोरियोग्राफी एंड डांस पेडागॉजी’ :

कॉन्क्लेव का दूसरा दिन पैनल चर्चा से शुरू हुआ, जिसमें तीन राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त नृत्य गुरुओं पद्मश्री लीला सैमसन, पद्मश्री माधवी मुद्गल और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार विजेता प्रेरणा श्रीमाली ने नृत्य के भविष्य पर अपनी अंतर्दृष्टि साझा की। इस चर्चा का संचालन कला इतिहासकार दीप्ति शशिधरन ने किया।
लीला सैमसन ने नृत्य में आए विभिन्न परिवर्तनों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि नृत्यांगना की यात्रा का हर चरण अपनी चुनौतियां लेकर आता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आज की युवा पीढ़ी में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है, लेकिन उन्हें अनुशासन और कड़ी मेहनत विकसित करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि नृत्य मूल सिद्धांत कभी नहीं भूलने चाहिए। किसी भी शैली की गहराई और सच्ची सुंदरता तभी उजागर होती है जब मूल तत्वों ताल, रिद्म, मुद्राओं, भाव और तकनीक में निपुणता हासिल की जाए। उन्होंने विशेष रूप से स्कूल स्तर पर नृत्य शिक्षा की आवश्यकता पर भी जोर दिया, ताकि बच्चे कला के प्रति सजग होकर बड़े हों और भविष्य में इस कला को सार्थक रूप से अपनाने का विकल्प उनके पास हो।
माधवी मुद्गल ने कहा कि भारतीय शास्त्रीय नृत्य की आत्मा इसकी संगीत रचना में निहित है। उन्होंने राग, ताल और साहित्य की समझ को किसी भी कलाकार के लिए अनिवार्य बताया। उन्होंने साझा किया कि उनके जीवन का सबसे चुनौतीपूर्ण दौर तब आया जब उन्होंने कथक से ओडिसी नृत्य को चुना, जिसने उनके लय और रूप की समझ को पूरी तरह बदल दिया।
प्रेरणा श्रीमाली ने अपने विचार साझा करते हुए कहा कि नृत्य सीखने से पहले, संगीत, मूर्तिकला और चित्रकला की समझ आवश्यक है, और चित्रकला जैसी दृश्य कलाओं का अध्ययन नृत्य की भाषा को स्पष्ट करता है। उन्होंने साझा किया कि अपने गुरु के निधन के बाद का समय उनके लिए काफी चुनौतीपूर्ण रहा और यह उनके लिए प्रेरणा और अनुशासन का स्थायी स्रोत बन गया। उन्होंने बताया कि आप अपने गुरु से मानसिक और भावात्मक रूप से जुड़े होते हैं। श्रीमाली की प्रतिबद्धता का अंदाजा कांक्लेव के पहले दिन आयोजित कार्यशाला में 180 उत्साही प्रतिभागियों की भागीदारी से लगाया जा सकता है।
दीप्ति शशिधरन ने सत्र का संचालन संवेदनशीलता के साथ करते हुए नृत्य प्रशिक्षण की बारीकियों और आज के कलाकारों की बदलती जरूरतों को सामने रखा।
पुस्तक ‘वाईल्ड वुमेन’ पर चर्चा और प्रस्तुति :

कॉन्क्लेव के दौरान एक रोचक सत्र आयोजित हुआ, जिसमें लेखक अरुंधति सुब्रहमण्यम की चर्चित काव्य-संग्रह ‘वाईल्ड वुमेन’ पर विस्तार से चर्चा की गई। यह सत्र कविता, संगीत और नृत्य प्रस्तुति का एक अनूठा संगम रहा। सत्र के दौरान अरुंधति ने अपनी पुस्तक पर प्रकाश डालते हुए कि बताया कि इस संग्रह में भारतीय उपमहाद्वीप की महिलाओं की दिल को छू लेने वाली आवाज़ों को एक साथ पिरोया है। उन्होंने अपने वक्तव्य और पाठ के माध्यम से विभिन्न युगों और धर्मों की महिला कवियों पर केंद्रित आध्यात्मिकता की एक ऐसी परंपरा के बारे में बताया, जो कि पुराने बौद्ध भिक्षुणियों, भक्ति और सूफी रहस्यवादियों, तांत्रिकों और वेदांतियों की कविताओं से जुड़ी है।
उन्होंने रूपा भवानी, मीरा बाई और जनाबाई की कविताओं को केंद्र में रखते हुए बताया कि इन सभी स्त्रियों ने अलग-अलग राहें चुनीं, किसी ने तांत्रिक साधना का मार्ग अपनाया, किसी ने प्रेम और भक्ति में सत्य की खोज की, तो किसी ने अपने रोज़मर्रा के श्रम में ही ईश्वर तक पहुंचने का रास्ता पाया। परंतु इन सबका उद्देश्य एक ही था, अपने भीतर की आध्यात्मिक शक्ति, जिज्ञासा, इच्छाओं और स्वतंत्रता को खोज पाना।
इसके बाद गायिका सुधा रघुरमन और नृत्यांगना दक्षिणा वैद्यनाथन ने इन कवयित्रियों के भावों को संगीत और नृत्य की अभिव्यक्ति में पिरोकर एक मनोहर प्रस्तुति दी। उन्होंने अपनी कला के माध्यम से रूपा भवानी की शिव-भक्ति और “मैं ही शिव हूं” के अद्वैत भाव को सुंदरता से साकार किया। आगे, जनाबाई के विट्ठल (कृष्ण) के प्रति प्रेम और समर्पण को भावपूर्ण नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत किया गया—जहाँ कल्पना में ईश्वर स्वयं उनके प्रेम को स्वीकार करते और उनमें समाहित होते दिखाई देते हैं। इस सत्र का संचालन अखिला कृष्णमूर्ति ने किया।
‘व्हेन वॉल्स डांस’ – बच्चों के लिए विशेष वर्कशॉप :
जयपुर डांस कॉन्क्लेव के दूसरे दिन 7 से 12 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए एक रचनात्मक वर्कशॉप ‘व्हेन वॉल्स डांस’ का आयोजन किया गया, जिसका संचालन भरतनाट्यम नृत्यांगना, कोरियोग्राफर, क्यूरेटर और वॉयस आर्टिस्ट प्राची साथी ने किया। इस सत्र में बच्चों ने नृत्य, संगीत, अभिनय और तकनीक के माध्यम से स्टोरी टैलिंग की नई तकनीकों को सीखा।
इस वर्कशॉप में प्राची साथी के प्रोडक्शन ‘व्हेन वॉल्स डांस’ को प्रस्तुत किया गया। इस प्रस्तुति में वर्ली आर्ट, एनीमेशन, भरतनाट्यम और स्टोरीटेलिंग का अभिनव संगम के माध्यम से एक छोटी बच्ची और उसके चम्पा पेड़ की कहानी को दर्शाते हुए प्रकृति संरक्षण का संदेश दिया गया।। प्राची ने महाराष्ट्र के वर्ली कलाकारों के साथ काम करने के अपने अनुभव को भारतीय कला और नृत्य को एक साथ जोड़ते हुए प्रकृति संरक्षण का महत्व खूबसूरती से व्यक्त किया- एक ऐसा संदेश जो आज के समय में बेहद आवश्यक है।
राजस्थान की लोक संगीत परंपरा- विनोद जोशी के साथ :

राजस्थान की लोक-संस्कृति और परंपराओं के विशेषज्ञ विनोद जोशी और कथक नृत्यांगना गौरी दिवाकर के बीच एक गहन और ज्ञानवर्धक बातचीत आयोजित हुई। “राजस्थान की लोक संगीत परंपरा- विनोद जोशी के साथ” शीर्षक इस सत्र में दोनों वक्ताओं ने राजस्थान की परफॉर्मिंग आर्ट्स के सांस्कृतिक खजाने के पीछे छिपी कहानियों, बारीकियों और परंपराओं को विस्तार से समझाया। चर्चा का विशेष केंद्र सांप सपेरों के समुदाय की अनोखी नृत्य और संगीत परंपरा ‘कालबेलिया’ पर रहा, जिसकी ऐतिहासिक गहराई, सामाजिक संरचना और कलात्मक महत्ता पर सुंदर प्रकाश डाला गया। इस अवसर पर कालबेलिया कलाकारों ने नृत्य और संगीत की एक प्रस्तुति भी दी।
पिछले दो दशकों में राजस्थान की स्वदेशी परंपराओं और लोक संस्कृति का व्यापक दस्तावेज़ीकरण करने वाले विनोद जोशी ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि यह क्षेत्र दुनिया के सबसे जीवंत और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध क्षेत्रों में से एक क्यों माना जाता है। गौरी दिवाकर ने एक कलाकार के दृष्टिकोण से इन परंपराओं की प्रासंगिकता और प्रेरणास्रोत पहलुओं पर चर्चा की। यह सत्र दर्शकों के लिए राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत को नई दृष्टि से समझने का एक महत्वपूर्ण अवसर बना।
‘नृत्य तरंग’ – जयपुर कथक केंद्र की प्रस्तुति :

कॉन्क्लेव में जयपुर कथक केंद्र ने अपनी मनमोहक प्रस्तुति ‘नृत्य तरंग’ में ‘सुद्धा कथक’ प्रस्तुत किया। इस प्रदर्शन में कथक नृत्य की गरिमा, लय और सौंदर्य को शुद्धता के साथ दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया। कार्यक्रम की शुरुआत एक भावपूर्ण शिव स्तोत्रम् से हुई, जिसके बाद जयपुर घराने की विशिष्ट बनावट और ताक़त को दर्शाती ताल धम्मार में बंदिश और अंतिम चरण में द्रुत लय में तीनताल की प्रस्तुति हुई। नर्तकों ने अपनी सटीकता, ऊर्जा, गति, फुट वर्क और भावों की अभिव्यक्ति से जयपुर शैली की गहराई और विशिष्टता को बखूबी प्रस्तुत किया।
‘मंथन’ – कावड़ कथा और मोहिनीयट्टम प्रस्तुति
इसी कड़ी में शाम को मोहिनीयट्टम नृत्यांगना दिव्या वारियर और निर्देशक अक्षय गांधी ने राजस्थान की पारंपरिक कावड़ कथा और केरल की मोहिनीयट्टम नृत्य-शैली को मंच पर ‘मंथन’ प्रस्तुति के माध्यम से जीवंत किया। यह प्रस्तुति एक नृत्यांगना और एक कथाकार की उस यात्रा की कहानी है, जो अपने-अपने कला रूपों के माध्यम से सत्य की खोज में निकलते हैं। नृत्यांगना मोहिनी के विभिन्न रूपों – मोहक, प्रेमिका, योद्धा और अनेक भावों को आत्मसात करते हुए एक भावनात्मक यात्रा पर बढ़ती है। दूसरी ओर कथाकार, कावड़ पर उकेरी गई पौराणिक दुनिया के रास्तों से गुजरते हुए यथार्थ, मन–देह के द्वंद्व और इच्छाओं जैसे दार्शनिक प्रश्नों से सामना करता है। धीरे-धीरे दोनों की राहें एक-दूसरे से टकराती हैं और उनकी यह मुलाकात उन्हें अपनी व्यक्तिगत सीमाओं और अपने कला रूपों की संभावनाओं को और विस्तार से परखने की प्रेरणा देती है। समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से प्रेरित यह प्रस्तुति मिथकों की गहराइयों में उतरते हुए दर्शकों को एक अनोखी कलात्मक यात्रा पर ले गई।
ओडिसी प्रस्तुति ‘विस्तार’
कॉन्क्लेव का समापन ओडिसी प्रस्तुति ‘विस्तार’ के साथ हुआ। प्रस्तुति ने ओडिसी नृत्य की पारंपरिक संरचना को आधुनिक दृष्टिकोण के साथ जीवंत किया। इस प्रस्तुति में नृत्यांगनाओं ने समूह रूप में नृत्त (ताल और संरचना पर आधारित अमूर्त नृत्य) और अभिनय (भाव-अभिव्यक्ति) के माध्यम से ओडिसी के विविध पहलुओं को रचनात्मक रूप में प्रस्तुत किया, जिससे दर्शकों को एक संतुलित और अनोखा कलात्मक अनुभव प्रदान किया। यह प्रस्तुति दिल्ली की प्रख्यात ओडिसी नृत्यांगना और गुरु, पद्मश्री माधवी मुद्गल की शिष्याओं द्वारा दी गई।
Read More : नाहरगढ़ जैविक उद्यान में लायन सफारी और व्हाइट टाइगर ने पर्यटकों को रोमांचक अनुभव दिया

