HDFC Bank Q1 Results: HDFC बैंक का तिमाही मुनाफा ₹18,155 करोड़, शेयरधारकों को डिविडेंड और बोनस का तोहफा
देश के सबसे बड़े सबसे बड़े निजी ऋणदाता बैंक, एचडीएफसी बैंक ने शनिवार को वित्त वर्ष 26 की अपनी पहली तिमाही के नतीजे घोषित किए। बैंक के नतीजे शानदार रहे।

टैक्स के बाद बैंक का प्रॉफिट ₹18,155.21 करोड़ रहा, जो पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि के ₹16,174.75 करोड़ की तुलना में 12.24% अधिक है। शानदार नतीजों के साथ-साथ बैंक ने अपने शेयरधारकों को तोहफा दिया है। बैंक ने अंतरिम डिविडेंड और बोनस शेयर देने का ऐलान किया है।
नतीजों में आम आदमी के लिए क्या?
बैंक ने अपने शेयरधारकों के लिए प्रति शेयर 5 रुपए का स्पेशल अंतरिम डिविडेंड यानी लाभांश देने का ऐलान किया है। कंपनियां अपने मुनाफे का कुछ हिस्सा अपने शेयरधारकों को देती हैं, इसे डिविडेंड या लाभांश कहा जाता है।
बैंक ने शेयर-होल्डर्स के लिए 1:1 के रेश्यो में बोनस शेयरों का भी ऐलान किया। यानी शेयरहोल्डर्स को HDFC बैंक के हर एक शेयर पर 1 नया शेयर बोनस के तौर पर मिलेगा। इसके लिए रिकॉर्ड डेट 27 अगस्त 2025 तय की गई है।
ब्याज से कमाई और खर्च दोनों बढ़े
जून तिमाही में बैंक को ₹77,470 करोड़ की ब्याज से आमदनी हुई, जो पिछले साल के ₹73,033 करोड़ से करीब 6% ज्यादा है। इसी दौरान ब्याज पर खर्च भी बढ़कर ₹46,032.23 करोड़ हो गया, जो पिछले साल ₹43,196 करोड़ था।
नेट इंटरेस्ट इनकम में 5.4% का इजाफा
बैंक ने बताया कि जून 2025 तिमाही में नेट इंटरेस्ट इनकम (यानी ब्याज से कमाई और खर्च में फर्क) ₹31,439 करोड़ रही, जो पिछले साल इसी तिमाही में ₹29,839 करोड़ थी।
HDFC बैंक ने डिविडेंड और बोनस का किया ऐलान
HDFC बैंक के बोर्ड ने वित्त 5 रुपये प्रति शेयर के विशेष अंतरिम लाभांश और 1:1 बोनस इश्यू की भी मंजूरी दे दी है। यह विशेष अंतरिम लाभांश उन शेयरधारकों को दिया जाएगा जिनके नाम 25 जुलाई तक रजिस्टर में दर्ज हैं और भुगतान 11 अगस्त को निर्धारित है।
बोनस इश्यू, शेयरधारक और विनियामक अनुमोदन के अधीन है। शेयरधारकों को प्रत्येक शेयर के बदले एक बोनस शेयर मिलेगा, जिसकी रिकॉर्ड तिथि 27 अगस्त निर्धारित की गई है। अगर 27 अगस्त से पहले आपने इसके शेयर खरीद लिए तो आपको भी बोनस शेयर का लाभ मिलेगा।
नॉन परफॉर्मिंग एसेट या NPA क्या है?
जब कोई व्यक्ति या संस्था किसी बैंक से लोन लेकर उसे वापस नहीं करती, तो उसे बैड लोन या नॉन परफॉर्मिंग एसेट या NPA कहा जाता है। यानी इन लोन्स की रिकवरी की उम्मीद काफी कम होती है। नतीजतन बैंकों का पैसा डूब जाता है और बैंक घाटे में चला जाता है।
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के नियमों के मुताबिक, अगर किसी बैंक लोन की किस्त 90 दिनों तक यानी तीन महीने तक नहीं चुकाई जाती है, तो उस लोन को NPA घोषित कर दिया जाता है। अन्य वित्तीय संस्थाओं के मामले में यह सीमा 120 दिन की होती है। बुक को क्लियर करने के लिए बैंकों को ऐसा करना होता है।