PatnaTawaif Love Story: तवायफ की दर्दभरी प्रेम कहानी: जिसने प्यार के लिए दी खुद जान
पटना की खूबसूरत और मशहूर तवायफ ज़िया अज़ीमाबादी की प्रेम कहानी आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है। यह कहानी प्यार में समर्पण और बलिदान की मिसाल है, जिसने 19वीं और 20वीं सदी के बीच की पटना की सांस्कृतिक विरासत को अमर कर दिया।

ज़िया अज़ीमाबादी का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था। हालात ने उन्हें तवायफ बनने के लिए मजबूर किया। उनकी मां भी तवायफ थीं। जिन्होंने ज़िया को नृत्य, संगीत और शायरी की बारीकियां सिखाईं। ज़िया की महफिलें पटना के नवाबों, ज़मींदारों और अंग्रेज अफसरों के बीच मशहूर थीं। उनकी खूबसूरती की चर्चा दूर-दूर तक थी।
आंखें गहरी और नशीली, मुस्कान में दर्द और मिठास। उनकी आवाज़ में ऐसी कशिश थी कि जब वो ग़ज़ल गातीं, तो सुनने वाले सुध-बुध खो बैठते। उनकी महफिल में मौजूद नवाब ज़फर अली और अंग्रेज अफसर कैप्टन जॉनसन जैसे लोग भी उनके फन के कायल थे। कैप्टन जॉनसन ने ज़िया की आवाज़ की तारीफ करते हुए लिखा था“उसकी आवाज़ में पूर्व और पश्चिम का अद्भुत मेल है।”
मिर्ज़ा हसन से पहली मुलाकात और इश्क का आगाज़
ज़िया की जिंदगी में प्यार तब आया जब उनकी मुलाकात मिर्ज़ा हसन से हुई। मिर्ज़ा एक जमींदार परिवार के वारिस और शायरी के शौकीन थे। एक शाम जब ज़िया अपनी मधुर आवाज़ में ग़ज़ल गा रही थीं “तेरे बिना ज़िंदगी अधूरी सी लगे, जैसे चांद बिना रातें सूनी…” मिर्ज़ा की नज़रें ज़िया पर ठहर गईं। महफिल खत्म होने के बाद मिर्ज़ा ने ज़िया से बात करने की कोशिश की और उसी पल से दोनों के बीच एक अनकहा रिश्ता बन गया।
चांदनी रातों में बढ़ा प्यार, लेकिन मुश्किलें थीं साथ
मिर्ज़ा और ज़िया की मुलाकातें बढ़ने लगीं। गंगा के किनारे चांदनी रातों में दोनों घंटों बातें करते। दोनों का प्यार परवान चढ़ रहा था, लेकिन इस प्यार की राह में समाज और उनके परिवार की सख्त बंदिशें थीं। ज़िया एक तवायफ थीं और मिर्ज़ा एक ज़मींदार परिवार के वारिस। समाज की नजर में यह रिश्ता नामुमकिन था।
गुपचुप शादी का फैसला और विरोध की लहर
मिर्ज़ा ने एक दिन ज़िया से कहा,“ज़िया, मेरे साथ मेरे गांव चलो। हम एक नई जिंदगी शुरू करेंगे।” दोनों ने गुपचुप शादी करने का फैसला किया। लेकिन जैसे ही यह खबर मिर्ज़ा के परिवार तक पहुंची, घर में तूफान आ गया। मिर्ज़ा के पिता ने न सिर्फ इस रिश्ते को ठुकराया बल्कि मिर्ज़ा को घर में नज़रबंद कर दिया।
ज़िया को दी गई धमकी
ज़िया को भी धमकियां मिलने लगीं। उसे कहा गया कि अगर उसने मिर्ज़ा से मिलने की कोशिश की तो उसकी जान को खतरा हो सकता है।
बेबसी और दिल टूटने का दर्द
मिर्ज़ा के पिता ने उसे एक अमीर परिवार की लड़की से शादी करने के लिए मजबूर कर दिया। मिर्ज़ा ने बहुत विरोध किया लेकिन परिवार के दबाव में आकर शादी करनी पड़ी। शादी के दिन मिर्ज़ा ने ज़िया को एक खत भेजा, जिसमें उनकी बेबसी और टूटे दिल की दास्तान लिखी थी।
ज़िया ने प्यार के लिए दे दी जान
जब ज़िया को मिर्ज़ा की शादी की खबर मिली, तो उनका दिल टूट गया। उन्होंने तय कर लिया कि वह मिर्ज़ा के बिना जी नहीं सकतीं। एक रात, गंगा के किनारे, जहां दोनों ने प्यार की कसमें खाई थीं, ज़िया ने ज़हर पी लिया। मरने से पहले लिखी आखिरी ग़ज़ल:
“मोहब्बत की राहों में कांटे बिछे हैं,फिर भी ये दिल हर कदम पर तुझे ढूंढता है…”
मिर्ज़ा का टूट जाना और ज़िंदगीभर का दर्द
जब मिर्ज़ा को ज़िया की मौत की खबर मिली, तो वह अंदर से टूट गए। शादी के बंधन में बंधने के बाद भी वे कभी खुश नहीं रह सके। अक्सर गंगा के किनारे जाकर ज़िया की याद में ग़ज़लें लिखते और उनकी यादों में खोए रहते।
ज़िया और मिर्ज़ा की कहानी आज भी जिंदा है
ज़िया और मिर्ज़ा की प्रेम कहानी पटना में आज भी कही-सुनी जाती है। यह कहानी उस दौर की है जब तवायफें सिर्फ नाचने-गाने वाली नहीं थीं, बल्कि कला, अदब और संस्कृति की संरक्षक थीं। ज़िया अज़ीमाबादी की प्रेम कहानी ने इतिहास में प्रेम और बलिदान की एक अमर मिसाल कायम कर दी।