शिव विधायक रविन्द्र सिंह भाटी का शिक्षा मंत्री को पत्र : सीमावर्ती जिलों में शिक्षकों की भारी कमी पर समान स्टाफिंग पैटर्न सिस्टम लागू करने की मांग

शिव विधायक रविन्द्र सिंह भाटी ने शिक्षा मंत्री मदन दिलावर को पत्र लिखकर सीमावर्ती जिलों में शिक्षकों की भारी कमी दूर करने हेतु समान ट्रांसफर एवं समान स्टाफिंग पैटर्न लागू करने की अपील की।
सीमावर्ती जिलों में शिक्षा संकट पर शिव विधायक की चिंता

राजस्थान के सीमावर्ती जिलों में शिक्षकों की भारी कमी और असमान स्टाफिंग व्यवस्था को लेकर शिव विधायक रविन्द्र सिंह भाटी ने राज्य के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर को पत्र लिखकर एक गंभीर मुद्दा उठाया है। उन्होंने आग्रह किया है कि राज्य के सभी सरकारी विद्यालयों में “समान स्टाफिंग पैटर्न सिस्टम” लागू किया जाए, ताकि प्रत्येक जिले में शिक्षकों का वितरण समान रूप से हो सके और शिक्षा संसाधनों की उपलब्धता संतुलित बनी रहे।
भाटी ने कहा कि सीमावर्ती जिलों में लगातार शिक्षकों के रिक्त पदों की संख्या बढ़ रही है, जिससे विद्यालयों में शिक्षण कार्य प्रभावित हो रहा है। उन्होंने इसे न केवल प्रशासनिक विफलता बल्कि सीमावर्ती विद्यार्थियों के भविष्य के साथ अन्याय बताया।
प्राथमिक शिक्षा विभाग में पद रिक्ति के चिंताजनक आंकड़े : शिव विधायक

भाटी द्वारा दिए गए आंकड़ों के अनुसार, प्राथमिक शिक्षा विभाग में शिक्षकों के पदों की स्थिति बेहद असमान है। राज्य स्तर पर औसतन 13.76% पद रिक्त हैं, जबकि सीमावर्ती जिलों में यह स्थिति और अधिक गंभीर है।
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बाड़मेर में शिक्षकों के 20.01% पद खाली,
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जैसलमेर में 21.13% पद रिक्त,
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बीकानेर में 16.87% पद रिक्त,
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और सिरोही में यह आंकड़ा 22.52% तक पहुंच गया है।
इन आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि सीमावर्ती जिलों में शिक्षकों की कमी राज्य के औसत से कहीं अधिक है, जिससे ग्रामीण और दुर्गम क्षेत्रों में शिक्षा की गुणवत्ता पर सीधा प्रभाव पड़ रहा है।
माध्यमिक शिक्षा विभाग में स्थिति और भी गंभीर
विधायक भाटी ने बताया कि माध्यमिक शिक्षा विभाग में शिक्षकों की स्थिति और भी चिंताजनक है। राज्य स्तर पर शिक्षकों के 26.93% पद रिक्त हैं, जबकि सीमावर्ती जिलों में यह प्रतिशत कहीं अधिक है —
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बाड़मेर में 40.32%,
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जैसलमेर में 40.56%,
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बीकानेर में 29.59%,
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और सिरोही में 34.07% पद खाली हैं।
भाटी ने कहा कि इन जिलों में सीमित संसाधनों और कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के बीच स्कूल संचालित हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में पर्याप्त शिक्षक न होना, विद्यार्थियों की सीखने की क्षमता और परीक्षा परिणामों को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है।
भौगोलिक चुनौतियों के बीच शिक्षा व्यवस्था की असमानता
भाटी ने अपने पत्र में उल्लेख किया कि सीमावर्ती क्षेत्रों में भौगोलिक कठिनाइयाँ, जनसंख्या का फैलाव, और सुविधाओं की कमी जैसे कारणों से वहां शिक्षकों की नियुक्ति और स्थायित्व चुनौतीपूर्ण है। कई शिक्षक ऐसे क्षेत्रों में कार्य करने से बचते हैं, जिसके चलते रिक्तियों की स्थिति वर्षों से बनी हुई है।
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को इस असमानता को दूर करने के लिए एक समान ट्रांसफर नीति और स्टाफिंग पैटर्न सिस्टम लागू करना चाहिए, जिससे हर जिले में शिक्षा संसाधनों का समान वितरण हो सके।
शिव विधायक भाटी का वक्तव्य — “शिक्षा हर बच्चे का अधिकार है”
विधायक भाटी ने अपने पत्र में कहा,
“शिक्षा हर बच्चे का अधिकार है — और इस अधिकार को समान रूप से लागू करने के लिए शिक्षकों का संतुलित वितरण अनिवार्य है। राज्य को ऐसी नीति अपनानी चाहिए जिससे किसी भी क्षेत्र के विद्यार्थी को शिक्षा के अवसरों से वंचित न होना पड़े।”
उन्होंने शिक्षा मंत्री से आग्रह किया कि आगामी शैक्षणिक सत्र से ही इस व्यवस्था को लागू किया जाए, ताकि राज्य के सीमावर्ती जिलों में भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित हो सके।
राज्य में शिक्षा सुधार की दिशा में संभावित पहल
यदि सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठाती है, तो यह न केवल सीमावर्ती जिलों में शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाएगा, बल्कि प्रदेश के सभी विद्यार्थियों को समान अवसर प्रदान करेगा। समान स्टाफिंग पैटर्न लागू होने से शिक्षक वितरण में पारदर्शिता आएगी, शिक्षकों पर भार कम होगा और ग्रामीण विद्यालयों की स्थिति में भी सुधार संभव होगा।
शिक्षा विशेषज्ञों का भी मानना है कि “समान स्टाफिंग पैटर्न सिस्टम” लागू करना समय की मांग है, क्योंकि यह केवल प्रशासनिक सुधार नहीं बल्कि सामाजिक समानता की दिशा में बड़ा कदम होगा।
निष्कर्ष
शिव विधायक रविन्द्र सिंह भाटी की यह पहल सीमावर्ती जिलों के विद्यार्थियों के लिए आशा की किरण है। उनका यह प्रयास शिक्षा के क्षेत्र में एक व्यापक सुधार की दिशा में ठोस पहल के रूप में देखा जा रहा है।
अब देखना यह होगा कि राज्य सरकार इस संवेदनशील मुद्दे पर कितनी तेजी से कदम उठाती है और सीमावर्ती इलाकों के हजारों विद्यार्थियों को बेहतर शिक्षा का अधिकार कब तक मिल पाता है।
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